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भोपाल जैसी त्रासदियों की रोकथाम के लिए 'मानवाधिकारों पर काम करे' रसायन उद्योग जगत

कनाडा के टोरंटो में एक फ़ैक्टरी परिसर में चिमनियों से निकलता धुआँ. (फ़ाइल)
UN Photo/Kibae Park
कनाडा के टोरंटो में एक फ़ैक्टरी परिसर में चिमनियों से निकलता धुआँ. (फ़ाइल)

भोपाल जैसी त्रासदियों की रोकथाम के लिए 'मानवाधिकारों पर काम करे' रसायन उद्योग जगत

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ मानवाधिकार विशेषज्ञ बास्कुट तुनचक ने कहा है कि भारत में पिछले सप्ताह एक रासायनिक संयन्त्र (कैमिकल प्लान्ट) में घातक गैस का रिसाव होना रसायन उद्योग जगत को नीन्द से जगा देने वाली घण्टी है. उन्होंने आगाह किया है कि मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए व्यवसायों को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी. 7 मई को आन्ध्र प्रदेश राज्य के विशाखापट्टनम शहर के पास स्थित एक रसायन फ़ैक्ट्री से स्टायरीन गैस रिस जाने से 12 लोगों की मौत हो गई थी और एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की तबीयत बिगड़ गई थी. 

स्टायरीन का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने में किया जाता है लेकिन इससे कैन्सर बीमारी के अलावा स्नायु-तन्त्र और प्रजनन क्षमता को नुक़सान पहुँचने का भी ख़तरा होता है और ये प्रभाव अक्सर गैस के सम्पर्क में आने के कई वर्षों बाद दिखाई देते हैं. 

यह रासायनिक संयन्त्र दक्षिण कोरिया की कम्पनी एलजी कैम (LG Chem) द्वारा सन्चालित है. 

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विशेष रैपोर्टेयर ने इस हादसे की जाँच शुरू किए जाने का स्वागत किया है जिसमें लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार होने के आरोपों की पड़ताल होगी. 

ख़तरनाक पदार्थों और कचरे सम्बन्धी मामलों पर विशेष रैपोर्टेयर तुनचक ने हाल ही में हुई त्रासदी की तुलना 1984 में भारत के भोपाल प्रदेश में हुई ज़हरीली गैस लीक होने की घटना से करने को ठीक बताया है.

भोपाल गैस त्रासदी में अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कम्पनी के प्लान्ट में गैस का रिसाव होने से हज़ारों लोगों की मौत हो गई थी.    

उन्होंने कहा कि ताज़ा हादसा ध्यान दिलाता है कि अनियन्त्रित उपभोग और प्लास्टिक के उत्पादन से किस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

उन्होंने वर्ष 2019 में भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल पूरे होने पर जारी अपनी अपील मे रसायन उद्योग से मानवाधिकारों की रक्षा के लिए तत्परता से प्रयास करने की पुकार लगाई थी.

उन्होंने अपनी वो अपील को दोहराते हुए प्रशासन से पूर्ण रूप से पारदर्शिता बरते जाने और दोषियों की जवाबदेही तय करने का आग्रह किया है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इस हादसे का शिकार हुए लोगों के स्वास्थ्य के प्रति चिन्ता जताई है. “मैं यह सुनिश्चित करने के लिए चिन्तित हूँ कि हादसे का शिकार हुए लोगों को बाद में बीमार या विकलांग होने की स्थिति में असरदार उपचार मिल सके.” 

“मैं भारतीय व दक्षिण कोरियाई प्रशासन और प्रभावित व्यवसाय से उसी तरह की ग़लतियों और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग से बचने का आग्रह करता हूँ जिनकी वजह से भोपाल त्रासदी के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला, जो आज तक पीड़ा में झुलस रहे हैं.”

मानवाधिकार संरक्षण सर्वोपरि

विशेष रैपोर्टेयर ने ज़हरीली गैस लीक हादसे के पीड़ितों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट की है. उन्होंने रसायन उद्योग जगत में इसे एक ऐसी त्रासदी बताया है जिसे टाला जा सकता था और जिससे मासूम कामगारों और स्थानीय समुदायों को भयावह पीड़ा का सामना करना पड़ा है. 

यूएन स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि ऐसे हादसे ध्यान दिलाते हैं कि दुनिया भर में भोपाल गैस त्रासदी की गम्भीरता वाले जैसे छोटे हादसों का स्तब्ध करने वाली नियमिता के साथ होना जारी है. 

उद्योग जगत ने वर्ष 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद 1986 में ज़िम्मेदारी से रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए ‘Responsible Care’ पहल शुरू की थी ताकि रसायन बनाने वाले व्यवसायों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की रोकथाम हो सके. 

लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि उद्योग जगत की इस पहल के सिद्धान्त में मानवाधिकारों का कोई उल्लेख नहीं है ना ही वो नीतियाँ सही मायनों में लागू हो पाई हैं जिनका ज़िक्र व्यवसाय और मानवाधिकारों पर यूएन के दिशानिर्देशों में किया गया है.”

विशेष रैपोर्टेयर बास्कुट तुनचक ने भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल पूरे होने पर रसायन निर्माताओं से अपनी ज़िम्मेदारी समझने और मानवाधिकारों का सम्मान करने की अपील की थी.

उन्होंने सचेत किया था कि स्वैच्छिक रूप से मानवाधिकार मानक अपनाने की प्रक्रिया में कमज़ोरियाँ निहित हैं और इसलिए मज़बूत क़ानूनी विकल्पों की तत्काल आवश्यकता है.

संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि वर्ष 2030 तक रसायन उद्योग आकार में दोगुना हो जाएगा और इसी वजह से मानवाधिकारों पर उसका ख़ासा असर होने की आशंका भी बढ़ेगी.

यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि उत्पादन केन्द्रों और रासायनिक उत्पादों का यथोचित परीक्षण बेहद आवश्यक है और इसे एक मानक के रूप में स्थापित किया जाना होगा.

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.