'इराक़ को तुच्छ राजनीति के दलदल से निकलकर रचनात्मक बनना होगा'

इराक़ में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अधिकारी जीनिन हैनिस प्लैसशाएर्ट ने कहा है कि इराक़ में कोविड-19 महामारी और घटते तेल भंडारों जैसे जटिल संकटों के बावजूद अगर राजनैतिक इच्छाशक्ति से काम लिया जाए तो देश को ज़्यादा ख़ुशहाल और समावेशी बनाया जा सकता है. इराक़ दूत ने देश के ताज़ा हालात की जानकारी देते हुए मंगलवार को सुरक्षा परिषद की एक वर्चुअल बैठक में ये बात कही.
इसमें इराक़ के नए प्रधानमंत्री की पिछले सप्ताह हुई नियुक्ति का ब्यौरा भी शामिल था. नए प्रधानमंत्री ने 22 सदस्यों वाली एक कैबिनेट भी बनाई है. नए प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट ने अपनी ज़िम्मेदारी इराक़ में कई महीनों तक चली राजनैतिक उठा-पटक और गतिरोध के बाद संभाली है.
वैश्विक महामारी कोविड-19 शुरू होने से पहले इराक़ में भ्रष्टाचार व बेरोज़गारी का ख़ात्म करने और ख़राब हालत वाली सार्वजनिक सेवाओं में सुधार की माँग के साथ कई महीने से बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे थे.
यूएन दूत ने कहा है कि महामारी शुरू होने के बाद सड़क प्रदर्शन तो ख़ामोश हो गए हैं लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि नई सरकार देश की भलाई की ख़ातिर प्रदर्शनकारियों की माँगों और आकांक्षाओं पर ध्यान देगी.
संयुक्त राष्ट्र की इराक़ दूत ने कहा, “मुझे पूरा यक़ीन है कि इराक़ मौजूदा जटिल संकटों वाली स्थिति में से एक ज़्यादा न्यायसंगत, ख़ुशहाल और सहनशील देश के रूप में उभरेगा. लेकिन ऐसा होने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति बुनियादी कारक है.”
जीनिन हैनिस प्लैसशाएर्ट इराक़ में संयुक्त राष्ट्र के सहायता मिशन की प्रमुख भी हैं.
विनाशकारी घटिया राजनीति से छुटकारा ज़रूरी
संयुक्त राष्ट्र की इराक़ दूत का कहना था, “इराक़ को कभी ना रुकने वाले आपदा प्रबन्धन में व्यस्त रहने के बजाय ज़्यादा उत्पादक रुख़ अपनाना होगा, देश और समाज दोनों ही स्तरों पर ज़्यादा सहनशीलता विकसित करनी होगी.”
“छोटी अवधि वाले राजनैतिक दाँवपेचों से देश के लंबी अवधि के हितों को कोई लाभ नहीं पहुँचता, बल्कि इसका उल्टा होता है. और हाँ, चुनौतियाँ बहुत सी हैं, मगर साथ ही बदलाव के अवसर भी हैं.”
यूएन दूत ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि नए प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं में महामारी का मुक़ाबला करना, सुरक्षा क्षेत्र में सुधार लागू करने, अर्थव्यवस्था को मज़बूती देना, और भ्रष्टाचार पर चोट करना शामिल हैं. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार, शायद देश में लकवा मार जाने वाले हालात पैदा करने के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है.
“इन वाजिब अपेक्षाओं को हक़ीकत में बदलने के लिए तात्कालिक रूप में कार्रवाई करना बहुत ज़रूरी है. और मैं बहुत ज़ोर देकर कहना चाहती हूँ: इराक़ के हाथ से समय फ़िसला जा रहा है और ये देश विनाशकारी घटिया राजनीति में व्यस्त नहीं रह सकता.”
इराक़ में काफ़ी लम्बे समय से राजनैतिक उथल-पुथल रही है लेकिन सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा सम्बन्धी संकट भी मौजूद रहे हैं. कोविड-19 ने इन चुनौतियों को और ज़्यादा गंभीर बना दिया है जिसके कारण वाणिज्यिक गतिविधियाँ बिल्कुल बन्दी सी हो गई हैं और लाखों लोगों की आजाविकाएँ ख़तरे में पड़ गई हैं.
तेल निर्भर देश इराक़ ने फ़रवरी और अप्रैल महीनों के बीच मासिक आय छह अरब डॉलर से घटकर एक अरब 40 करोड़ डॉलर के आसपास पहुँचते हुए भी देखी है. इसके अलावा इस वर्ष देश की अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत तक का संकुचन भी आने के अनुमान व्यक्त किए गए हैं. ग़रीबी की दर 40 फ़ीसदी तक पहुँचने की भी आशंका है.
इराक़ दूत ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि इराक़ में ये घटनाक्रम एक ऐसे समय में हो रहे हैं जब देश को अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता हासिल करना और भी ज़्यादा कठिन होगा. इराक़ को ख़ुद अपने संसाधनों और राजस्व का दायरा बढ़ाने की शायद बहुत ज़्यादा ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “बार-बार ये स्पष्ट किया जाता रहा है कि इराक़ को तेल पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी; अतिमहत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में सुधार करके उसे आधुनिक बनाना होगा; गुब्बारे की तरह फूलती मगर नकारा सार्वजनिक सेवाओं को सुधारना होगा; भरोसेमन्द व ज़िम्मेदार सार्वजनिक संस्थान बनाने होंगे; भ्रष्टाचार पर क़ाबू पाना होगा, और विदेशी निवेश आकर्षित करने के प्रयासों में घरेलू निजी सैक्टर को रियायतें देनी होंगी.”
इन चुनौतियों के बीच इलाक़ में हर समय घरेलू, क्षेत्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा घटनाकर्मो की दहल भी महसूस की जा सकती है.
इराक़ दूत ने कहा कि भड़काऊ माहौल और हमलों व जवाबी हमलों में हाल के सप्ताहों में कुछ कमी देखी गई है मगर उनका ख़तरा लगातार मौजूद है.
“और मैं ज़ोर देकर कहना चाहती हूँ: सशस्त्र तत्व, सशस्त्र संगठन जिनका सरकारी तंत्र से कोई सम्बन्ध है, इस समय वो जो कार्रवाई करेंगे, उससे उनके बारे में ना सिर्फ़ इराक़ी लोगों का बल्कि अन्य का नज़रिया भी निर्धारित होगा.”
“एक बार फिर, इराक़ में सत्ता के विभिन्न प्रतिस्पर्धियों या संघर्षों के एक थियेटर के रूप में इस्तेमाल होने की बिल्कुल भी क़ुव्वत नहीं है.”
संयुक्त राष्ट्र की इराक़ अधिकारी ने हिंसक अतिवाद के फिर से सिर उठाने के ख़िलाफ़ चेतावनी भरे अन्दाज़ में कहा कि सरकार के लिए आइसिल व इसी तरह के अन्य गुटों का मुक़ाबला करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ये हो सकता है कि आम लोगों की शिकायतों की जड़ में बैठे मुद्दों को हल किया जाए.