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इसराइल संचालित जेलों में बन्दी फ़लस्तीनी बच्चों की रिहाई की पुकार

फ़लस्तीन में स्कूल के रास्ते में पड़ती एक सुरक्षा चौकी से गुज़रता मारवान नामक एक बच्चा. इसे एच2 इलाक़ा कहा जाता है. (12 जुलाई 2018)
© UNICEF/UN0222683/Izhiman
फ़लस्तीन में स्कूल के रास्ते में पड़ती एक सुरक्षा चौकी से गुज़रता मारवान नामक एक बच्चा. इसे एच2 इलाक़ा कहा जाता है. (12 जुलाई 2018)

इसराइल संचालित जेलों में बन्दी फ़लस्तीनी बच्चों की रिहाई की पुकार

मानवाधिकार

मध्य पूर्व क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के तीन बड़े अधिकारियों ने इसराइल द्वारा संचालित जेलों में बन्द फ़लस्तीनी बच्चों को रिहा करने का आहवान किया है. उनका कहना है कि मौजूदा हालात में उन बच्चों का कोविड-19 महामारी के संक्रमण में आने की बहुत ज़्यादा आशंका है. इनका कहना है कि मार्च के अन्त तक के आँकड़ों के अनुसार 194 फ़लस्तीनी बच्चों को बन्दी बनाकर इसराइल द्वारा संचालित जेलों में रखा गया था.

ये आहवान करने वाले पदाधिकारियों के नाम हैं – इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र के लिए मानवीय सहायता संयोजक जेमी मैक्गोल्डरिक; फ़लस्तीन में यूनीसेफ़ की विशेष प्रतिनिधि जेनिवीव बाउतिन; और इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र के लिए यूएन मानवाधिकार कार्यालय के प्रमुख जेम्स हीनान.

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इन पदाधिकारियों ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि इनमें ज़्यादातर बच्चे ऐसे हैं जिनका कोई दोष साबित नहीं हुआ है, बल्कि उन्हें मुक़दमा चलाए जाने से पहले की स्थिति में बन्दी बनाकर रखा गया है.

अत्यधिक जोखिम

वक्तव्य में कहा गया है, “बन्दी बनाकर रखे गए बच्चों के कोविड-19 महामारी के संक्रमण की चपेट में आने की बहुत ज़्यादा आशंका है क्योंकि वहाँ अक्सर सामाजिक दूरियों की पाबन्दियाँ व अन्य ऐहतियाती उपाय सख़्ती से लागू नहीं हो रहे हैं, या फिर उन्हें लागू कर पाना ही कठिन है.”

उन्होंने कहा कि इसराइल में जब से महामारी ने दस्तक दी है, तमाम क़ानूनी प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है और जेल में बन्दियों से मिलने के लिए आगन्तुकों की लगभग सारी सुविधाएँ भी रद्द कर दी गई हैं. 

इन यूएन पदाधिकारियों ने इस सम्बन्ध में बच्चों के अधिकारों पर अन्तरराष्ट्रीय कन्वेन्शन की तरफ़ ध्यान दिलाया है जिसे इसराइल और फ़लस्तीन दोनों ने ही मंज़ूरी दी है. उनका कहना है कि सामान्य परिस्थितियों में भी बच्चों को गिरफ़्तार किया जाना अन्तिम विकल्प ही होना चाहिए – और यथा सम्भव कम से कम अवधि के लिए.

उन्होंने ये भी कहा कि अलबत्ता महामारी के दौर में तो देशों को बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा ज़रूरतों पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए.

“बन्दी बनाकर रखे गए बच्चों के अधिकार किसी भी देश में एक भयावह महामारी के दौर में सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीक़ा तो ये हो सकता है कि उन्हें बन्दीगृहों से रिहा किया जाए और बन्दीगृहों में नए बच्चों को लाने पर स्वैच्छिक रोक लगाई जाए.”

पदाधिकारियों ने कहा, “हम इसराइल और फ़लस्तीनी प्राधिकारियों से तुरन्त ऐसा ही करने का आग्रह करते हैं.”

पहले की यूएन अपील

इन पदाधिकारियों द्वारा जारी वक्तव्य से पहले यूनीसेफ़ की प्रमुख हेनरिएटा फ़ोर ने भी 13 अप्रैल को इसी तरह के आहवान में बन्दी बनाकर रखे गए बच्चों को रिहा करने का आग्रह किया गया था.

उन बच्चों को उनके परिवारों या सम्बन्धियों को वापिस लौटना या फिर इसी तरह के कोई अन्य विकल्प मुहैया कराने के लिए कहा गया था. इनमें सामुदायिक देखभाल केन्द्रों का शामिल करना भी सुझाया गया था.

बिल्कुल इसी तरह की अपील बाल अधिकारों पर समिति भी कर चुकी है जिसमें किसी भी तरह की बन्दी परिस्थितियों में रखे गए बच्चों को जब भी सम्भव हो, रिहा करने का आग्रह किया गया था.

यह समिति बाल अधिकारों पर कन्वेन्शन के क्रिन्यान्वयन की निगरानी करने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक पैनल है. इस समिति ने अपनी अपील में ये भी कहा था कि जिन बच्चों को रिहा नहीं किया जा सकता, उन्हें अपने परिवारों से सम्पर्क साधने के साधन मुहैया कराए जाएँ. 

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने भी 25 मार्च को उन सभी को रिहा करने का आहवान किया था जिन्हें बिना समुचित क़ानूनी आधार के बन्दी बनाकर रखा गया है – इनमें राजनैतिक बन्दी और अन्य ऐसे लोग शामिल हैं जिन्हें आलोचनात्मक या असहमति वाले विचार व्यक्त करने के लिए बन्दी बनाया गया है.