सूडान में महिला ख़तना पर प्रतिबंध, मगर रास्ता बहुत कठिन है... (ब्लॉग)

जहाँ पूरी दुनिया कोरोनावायरस महामारी के दौरान एक अदृश्य दुश्मन से जंग लड़ने में में लगी हुई है, वहीं सूडान ने महिला जननांग विकृति पर रोक लगाने के उपायों के तहत इस प्रथा को अपराध क़रार दे दिया गया है. यह ऐतिहासिक उपाय 1 मई को विश्व मज़दूर दिवस के मौक़े पर लागू हो गया है. लेकिन इन उपायों के तहत महिलाओं को इस दर्दनाक प्रथा से मुक्ति दिलाना कितना मुश्किल व आसान होगा? इस विषय पर केनया में संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, सिद्धार्थ चैटर्जी का ब्लॉग...
सूडान हमेशा मेरे लिए बहुत ख़ास रहा है.
1941 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सूडान को आज़ादी दिलाने के लिए शहीद हुए भारतीय सैनिकों के सम्मान में सूडानी सरकार ने भारत को 100,000 पाउंड की रक़म भेंट की थी. इसका उपयोग भारत ने पुणे शहर में स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में सूडान ब्लॉक के निर्माण के लिए किया. मैं उसी एनडीए का एक गौरवान्वित स्नातक हूँ, जहाँ से भारतीय सेना में एक अधिकारी के रूप में मेरा करियर शुरू हुआ.
यही कारण है कि मुझे इस बात से बहुत संतुष्टि मिली है कि सूडान ने हाल ही में देश भर में महिला जननांग विकृति यानि महिला ख़तना (FGM) पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है.
सूडान के साथ मेरे संबंध में 2004 का भी ख़ास महत्व है, जब मैं वहाँ यूनीसेफ़ के आपातकालीन समन्वयक के रूप में कार्यरत था और दारफ़ुर में मानवीय सहायता कार्य की ज़िम्मेदारी पूरी कर रहा था. आतंक और संघर्ष के बीच में ही, मैंने ख़ुद देखा कि जंगली पोलियो वायरस का प्रकोप होने पर किस तरह सभी दल संघर्ष के दौरान भी, शान्ति के दिन सुनिश्चित करने और मानवीय गलियारों को खोलकर, बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए एकजुट हो गए.
2000 में दक्षिणी सूडान के रुमबेक शहर में मैंने संयुक्त राष्ट्र का पहला कार्यालय शुरू किया था. उस दौरान मैंने उत्तर और दक्षिण सूडान के बीच संघर्ष की वजह से दिल दहला देने वाली त्रासदियाँ देखीं, ख़ासतौर पर महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा और क्रूरता सारे पैमाने पार कर गई.
लेकिन इस सबके बीच उम्मीद भी नज़र आई. मैंने 2001 में संघर्ष के दौरान बाल सैनिकों को हथियार त्यागते हुए देखा और फिर 2005 में उत्तर और दक्षिण सूडान के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते का भी गवाह बना.
मेरे लिए ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ये सुंदर और स्वाभिमानी देश और इसके लोग सूडान में महिलाओं के साथ हुई ऐतिहासिक ग़लती को ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं.
महिला ख़तना की भयावह प्रथा के अपराधीकरण के निर्णय के साथ, सूडान के पास अब एक अवसर है कि वो महिलाओं के अधिकारों के मुद्दे पर इस क्षेत्र और विश्व का नेतृत्व करे.
महिला ख़तना 30 देशों में प्रचलित है, जिसकी चपेट में 20 करोड़ लड़कियाँ और महिलाएँ आती हैं - विशेषकर मध्य पूर्व और हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्रों में. इनमें से लगभग आधे देशों में, लड़कियों को पाँच वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले ही इस दर्दनाक प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है.
महिला ख़तना की ये हानिकारक परंपरा जिस तरह सूडान की रूढ़िवादी सामाजिक संरचना में जड़ें जमाए हुए है, उसे देखते हुए सूडान के लिए यह क़दम उठाना आसान नहीं था. 15 से 49 आयु वर्ग की सूडानी महिलाओं में से 87% महिला ख़तना की दर्दनाक प्रक्रिया से गुज़र चुकी हैं.
ये प्रक्रिया न केवल बेहद क्रूर और दर्दनाक है, बल्कि इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी बहुत से नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, जिनमें जैनिटो-मूत्र संक्रमण, प्रजनन संबंधी समस्याएँ और प्रसव में जटिलताएँ शामिल हैं. अध्ययनों में उन महिलाओं को पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) होने का सम्बन्ध भी पाया गया है, जिन्होंने महिला ख़तना का सामना किया है.
हालाँकि, इस ऐतिहासिक क़दम का जश्न मनाने के साथ-साथ ये भी ज़रूरी है कि आगे आने वाली संभावित चुनौतियों की वास्तविकताओं को भी समझा जाए.
इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने और उसका अपराधीकरण करना केवल पहला क़दम है. मध्य पूर्व और अफ्रीका के 29 देशों में, जहाँ महिला ख़तना अभी भी प्रचलित है, वहाँ हुए यूनीसेफ़ के एक अध्ययन में पता चला कि इनमें से 24 देशों में पहले से ही इसके ख़िलाफ़ क़ानूनी प्रतिबंध मौजूद हैं. लेकिन इनके बावजूद, लंबे समय से अनेक समुदायों में छुपकर महिला ख़तना जारी है, जिसके लिए पूरी तरह से निराधार, सफ़ाई और कौमार्य से जुड़ी परंपराएँ ज़िम्मेदार हैं.
सच तो ये है कि महिला ख़तना को लेकर मुक़दमा चलाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि इसे लेकर जो डर और गोपनीयता की संस्कृति है उससे अपराधियों को शह मिलती है और इसके पीड़ितों को इंसाफ़ नहीं मिल पाता. यहाँ तक कि अति विकसित मानवाधिकार और क़ानून की संरचना वाले ब्रिटेन जैसे देश में भी आज तक इस पर केवल एक मुक़दमा कामयाब साबित हुआ है.
सूडान को इस मज़बूत फैसले को पूर्ण रूप से लागू करना चाहिए जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि इस नए क़ानून का कड़ाई से पालन हो और नागरिकों की सुरक्षा हो सके.
1. समुदायों और ख़ासतौर पर पुरुषों के लिए व्यापक जागरूकता अभियान और लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर महिला ख़तना के प्रतिकूल प्रभाव और इसके लाभों के बारे में आधारहीन अंधविश्वासों पर चर्चा हो.
2. स्थानीय और क्षेत्रीय दूत तैयार किए जाएँ जो महिला ख़तना की परंपरा को पूरी तरह से समाप्त करने की आवश्यकता का महत्वपूर्ण संदेश फैला सकें.
3. जो धार्मिक नेता और समुदाय इस प्रथा के उन्मूलन में योगदान देते हैं उनको मान्यता दी जाए.
4. सभी लड़कियों के लिए सार्वभौमिक रूप में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य और मुफ़्त उपलब्ध हो.
5. सूडान के सभी हिस्सों से आए सेना के अनुभवी दिग्गजों के ज़रिए उनके गांवों और समुदायों में सकारात्मक परिवर्तन लाने के प्रयास करना.
6. महिला ख़तना करने, उसका समर्थन करने या उसे प्रोत्साहन देने वालों के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून और सख़्त सज़ा का प्रावधान.
महिला ख़तना को ग़ैरक़ानूनी घोषित किया जाना एक ऐसा आशाजनक संकेत है कि सूडान महिलाओं के लिए समानता की ओर ज़रूरी क़दम बढ़ा रहा है.
सूडान में महिला शिक्षा में पहले से ही एक लंबी परंपरा है. हाल के महीनों में, एक प्रतिबंधात्मक क़ानून देखा गया था जिसमें "महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने से रोकने और डराने" की कोशिश की गई थी और जिसके ज़रिए महिलाओं के ख़ास तरीक़े से कपड़े पहनने और व्यवहार करने को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था.
उमर अल-बशीर के दमनकारी शासन को ख़त्म करने के इन आंदोलनों में महिलाएँ विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे थीं.
सूडान की छात्रा, अला सालाह जैसी महिलाएँ इस विरोध आंदोलन का प्रतीक बन गईं.
ये सभी क़दम मुझे उस देश के लिए आशा से भर देते हैं जिसका मैं बहुत सम्मान करता हूँ. अपने परिवार समेत, हर जगह पर महिलाओं की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक मुक्ति के एक नारीवादी और चैंपियन के रूप में, मुझे ये स्पष्ट है कि मज़बूत नेतृत्व, साहस और अटूट नैतिक ताक़त ये सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि महिलाएँ दुनिया में पूर्ण समानता हासिल करें.
महिलाओं के लिए समानता के माध्यम से ही आने वाले दशकों में दुनिया प्रगति की उम्मीद कर सकती है. मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में पाया गया है कि महिलाओं को समानता का दर्जा देने से 2025 तक वैश्विक घरेलू सकल उत्पाद में 12 खरब डॉलर की वृद्धि की जा सकती है.
विश्व स्तर पर महिलाओं के अधिकारों और नेतृत्व की भूमिकाओं तक उनकी पहुँच के बारे में बातचीत एक निर्णायक मोड़ पर है.
विशेषज्ञ वर्तमान कोरोनावायरस महामारी के प्रभाव और महिलाओं की शारीरिक सुरक्षा व मानसिक स्वास्थ्य पर लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन कर रहे हैं. महिला अधिकारों पर हुआ विकास कोविड-19 के कारण पिछड़ रहा है और लाखों महिलाएँ जबरन अपने अत्याचारी साथियों के साथ रहने और अंतरंग साथी की हिंसा झेलने को मजबूर हैं.
इन विफलताओं के बावजूद, सूडान द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए ये महत्वपूर्ण क़दम उठाया जाना बहुत प्रसन्नता की बात है. मैं एक तरफ़ सूडान को महिला ख़तना पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के लिए बधाई देता हूँ, वहीं इस अवसर का सदुपयोग कर, एक ऐसा प्रेरणास्त्रोत बनने की भी गुज़ारिश करता हूँ, जो महिलाओं और लड़कियों को प्रभावित करने वाले अहम मुद्दों का हिमायती बनकर बाल विवाह और महिलाओं के प्रति सभी प्रकार की हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए.
प्रधानमंत्री अब्दुल्ला एडम हमदोक की प्रशंसा करता हूँ. आपके नेतृत्व में सूडान में एक नया युग शुरू हो रहा है, जिसके प्रकाश से पूरा विश्व रैशन होगा.
सिद्धार्थ चैटर्जी केनया में संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर हैं. वो संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष(UNFPA), यूनीसेफ़, यूएनडीपी, यूएन शांति रक्षा सेना और रेड क्रॉस मूवमेंट के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत रहे हैं.