कोविड-19: बंगाल की खाड़ी में फँसे हज़ारों लोगों की जान पर संकट

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 से उपजे संकट के बीच दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में भरी नावों में फँसे लोगों के लिए करुणा दिखाने का अनुरोध किया है. यूएन एजेंसियों ने आशंका जताई है कि ज़रूरी मदद के अभाव में हज़ारों लोगों की ज़िंदगियों के लिए जोखिम पैदा हो जाएगा.
समुद्र में फँसे लोगों में रोहिंज्या समुदाय के सैकड़ों लोग भी हैं जो मूलत: म्यॉंमार के पश्चिमी क्षेत्र से हैं. म्यॉंमार में सुरक्षा बलों के अभियान और हिंसा के कारण लाखों की संख्या में लोगों ने बांग्लादेश में शरण ली थी.
"We are deeply concerned by reports that boats full of vulnerable women, men and children are unable to come ashore."@UNmigration @UNODC and @Refugees call for greater protection of #Rohingya currently at seahttps://t.co/SFcKndGMSf pic.twitter.com/FKsB0Q0A22
labovitz
यूएन के पूर्व मानवाधिकार उच्चायुक्त ज़ायद राद अल हुसैन ने उनकी पीड़ा की तुलना 'जातीय सफ़ाए' की कोशिश से की थी.
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM), संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) और मादक पदार्थों एवं अपराध पर यूएन कार्यालय (UNODC) ने कहा है कि समुद्री मार्ग में फँसे हज़ारों लोगों को बचाया जाना होगा नहीं तो उनके लिए जान का जोखिम पैदा हो जाएगा.
यूएन की तीनों एजेंसियों ने एक साझा वक्तव्य में कहा, “हमें उन रिपोर्टों पर गहरी चिंता है जिनके मुताबिक भरी हुई नावों में महिलाएँ, पुरुष और बच्चे वहीं सागर में फँसे हुए हैं और किनारे तक नहीं आ पा रहे हैं, भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता के बग़ैर, जिसकी उन सभी को तत्काल आवश्यकता है.”
इससे पॉंच वर्ष पहले भी बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में ऐसा ही संकट सामने आया था जब मानव तस्करों ने हज़ारों शरणार्थियों व प्रवासियों को अधर में छोड़ दिया था.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों नेआपात हालात में क्षेत्रीय स्तर पर समाधान के लिए देशों को समर्थन देने की पेशकश की है ताकि शरण तलाश रहे लोगों, शरणार्थियों व नाज़ुक हालात में फँसे प्रवासियों के लिए मदद मुहैया कराई जा सके. साथ ही लोगों की अनियमित आवाजाही से निपटने के लिए उनकी क्षमता मज़बूत बन सके.
साझा बयान के मुताबिक कुछ देशों ने पहले ही दिखाया है कि स्वास्थ्य जाँच और और अलग रखे जाने का इंतज़ाम लागू किया जा सकता है जिनके ज़रिए समुद्र में फँसे लोगों को सुरक्षित, नियमित व गरिमामय ढंग से उतारा जा सकता है.
एजेंसियों का मानना है कि समुद्री मार्ग से शरणार्थियों व प्रवासियों की अनियमित आवाजाही से निपटने का कोई आसान समाधान नहीं है.
यूएन ने अपनी अपील में ज़ोर देकर कहा है कि लोगों की आवाजाही की मनाही ना सिर्फ़ जीवन के लिए ख़तरा है बल्कि बुनियादी मानवाधिकार, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और समुद्री क्षेत्र क़ानून का भी उल्लंघन है.
यूएन एजेंसियों ने स्पष्ट किया है कि लोगों की जिंदगियाँ बचाया जाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. सुरक्षा, संरक्षण और जीवन की बुनियादी ज़रूरतों की तलाश लोगों को आवाजाही के लिए मजबूर करेगी, चाहे फिर उनके रास्तों में कितने ही अवरोध आएँ.
“हम मानते हैं कि देशों ने कोविड-19 महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य के जोखिमों से निपटने के उपायों के तहत सीमा प्रबंधन उपाय अपनाए हैं.”
“लेकिन इन उपायों का नतीजा... शरण के लिए दरवाज़े बंद करना, या लोगों को ख़तरनाक परिस्थितियों में वापस लौटने या बिना किसी स्वास्थ्य जॉंच या एकांतवास के गुपचुप ढंग से किनारे पर उतरने के लिए मजबूर करना नहीं होना चाहिए.”
वर्ष 2015 में संकट के बाद संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें मानव तस्करों का शिकार लोगों ने आपबीती सुनाते हुए लंबी और मुश्किल यात्राओं का विवरण दिया था.
उन्होंने दावा किया था कि कई मौक़ों पर स्थानीय प्रशासनों ने उन्हें एक जलक्षेत्र से दूसरे जलक्षेत्र में भेज दिया था.
पाँच साल पहले पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों को मानव तस्करों ने समुद्र में एक साथ अधर में छोड़ दिया था. इसके बाद पीड़ितों को बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यॉंमार और थाईलैंड में उतरने की इजाज़त मिली थी.
नाविक दल के सदस्यों ने बताया था कि भूख, पानी की कमी, बीमारी और दुर्व्यवहार के कारण 70 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी.