वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
वियतनाम में एक महिला पर्यावरण अनुकूल जैव-ईंधन सामग्री तैयार कर रही है.

बढ़ती विषमता से निपटने के लिए सार्वभौमिक बुनियादी आय की पुकार

UN Photo/Kibae Park
वियतनाम में एक महिला पर्यावरण अनुकूल जैव-ईंधन सामग्री तैयार कर रही है.

बढ़ती विषमता से निपटने के लिए सार्वभौमिक बुनियादी आय की पुकार

आर्थिक विकास

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 महज़ एक स्वास्थ्य संकट भर नहीं है बल्कि यह दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोगों के लिए एक आर्थिक त्रासदी भी साबित हुआ है. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक वरिष्ठ अधिकारी ने देशों से अपने नागरिकों को सार्वभौमिक बुनियादी आय देने का आग्रह किया है ताकि उन लाखों-करोडों लोगों की मदद हो सके जिनके रोज़गार और आमदनी महामारी पर क़ाबू पाने के लिए उठाए गए क़दमों की भेंट चढ़ गए हैं. 
 

यूएन विकास कार्यक्रम (UNDP) एशिया-प्रशांत ब्यूरो की प्रमुख कननी विग्नाराजा ने यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में बताया कि सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income) यानि सरकारों द्वारा नागरिकों को दी जाने वाली एक न्यूनतम रक़म के सुझाव को समर्थन क्यों मिल रहा है. 

कोविड-19 के फैलाव ने अर्थव्यवस्थाओं को बुनियादी रूप से हिला दिया है और लोग मौजूदा आर्थिक मॉडलों पर सवाल उठा रहे हैं: इस बीमारी ने अन्याय और विषमता के मौजूदा स्तर को दुनिया भर में उजागर कर दिया है.

इसलिए निडर विचारों की ज़रूरत है, उनकी भी जिन्हें पहले ख़ारिज कर दिया गया था. 

यूएन में हमारा कहना है कि अगर ऐसे संकट के माहौल में किसी निश्चित आय का स्तर नहीं है तो लोगों के पास फिर कोई अन्य विकल्प नहीं है. अपनी गुज़र-बसर के लिए कुछ साधन ना होने पर उनके भुखमरी या बीमारी का शिकार होने की आशंका ज़्यादा है, कोविड-19 का निवाला बनने से पहले ही.  

लाखों-करोड़ों की संख्या में लोगों के रोज़गार छिन गए हैं. कामगारों की एक बड़ी संख्या अनौपचारिक सैक्टर में काम करती है, बिना किसी कॉन्ट्रैक्ट, बीमा या रोज़गार सुरक्षा के. 

उन विस्थापितों, शरणार्थियों और बिना दस्तावेज़ वाले लोगों के बारे में भी सोचिए जो पहले से ही औपचारिक प्रणाली का हिस्सा नहीं होते थे.

इसलिए यूएन विकास कार्यक्रम के लिए सार्वभौमिक बुनियादी आय पर विचार-विमर्श करने और इसे देशों द्वारा आर्थिक स्फूर्ति प्रदान करने के लिए दिए जाने वाले पैकेज का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने पर बातचीत करना ज़रूरी है. 

एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सरकारों से आपको कैसा रुख़ देखने को मिला है?

अतीत से कहीं ज़्यादा. पहली बार ऐसा हुआ है कि निर्बलों पर जानकारी एकत्र करने के लिए पहले से कहीं ज़्यादा आँकड़े एकत्र किए जा रहे हैं. हम उन सामाजिक सुरक्षा पैकेजों पर बेहद लक्षित सवाल पूछ रहे हैं जिनकी लोगों तक कवरेज है. हमें पता चला है कि एशिया-प्रशांत में 60 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों के पास किसी भी रूप में सामाजिक सुरक्षा नहीं है और फ़िलहाल वहाँ जो विकल्प उपलब्ध हैं, वो उनकी पहुँच से बाहर हैं. 

सहायक महासचिव और यूएनडीपी एशिया-प्रशांत के क्षेत्रीय ब्यूरो में निदेशक कननी विग्नाराजा.
UNDP
सहायक महासचिव और यूएनडीपी एशिया-प्रशांत के क्षेत्रीय ब्यूरो में निदेशक कननी विग्नाराजा.

लोगों को किसी भी प्रकार का सुरक्षा कवच प्रदान करने में धन का निवेश कहीं ज़्यादा किफ़ायती विकल्प है, बजाय इसके कि पूरी अर्थव्यवस्थाओं को मदद देने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किए जाएँ, या फिर जीवाश्म ईंधनों को सब्सिडी दी जाए. 

लेकिन क्या सार्वभौमिक बुनियादी आय विकल्प बहुत ख़र्चीला नहीं है?

एशिया-प्रशांत के अधिकांश देश या तो ऊँचे घरेलू क़र्ज़ में हैं या फिर बाहरी ऋण में दबे हैं. और हम क़र्ज़ के भार को और बढ़ता नहीं देखना चाहते क्योंकि इससे आने वाली पीढ़ियों के लिए और ज़्यादा मुसीबतें खड़ी होंगी. 

लेकिन इस क्षेत्र के अधिकांश देशों में टैक्स और जीडीपी का अनुपात बेहद कम है, और अधिकतर सार्वजनिक धन पुरातन, अप्रत्यक्ष करों से आता है. दूसरे शब्दों में, असल में ग़रीब को ही टैक्स की मार झेलनी पड़ती है और इसे बदला जाना होगा.   

‘वित्तीय दीमक’ देश के टैक्स राजस्व को खा जाती हैं: देश टैक्स में छूट और उससे बचने के आश्रयों की अनुमति देते हैं. इसके अलावा वे बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधनों में सब्सिडी देते हैं. इसका सार्वजनिक संसाधनों पर भारी असर पड़ता है. 

साथ ही, विकासशील देश हर साल एक ट्रिलियन से भी ज़्यादा धनराशि ग़ैरक़ानूनी वित्तीय लेनदेन में खो देते हैं और घरेलू स्तर पर भ्रष्टाचार और अक्षमताओं की तो अभी गिनती ही नहीं की गई है. 

हमें वित्तीय संसाधनों को व्यर्थ में बहने से रोकना होगा. किसी भी हिस्से को ठीक करने से सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income) के लिए पर्याप्त धन हासिल होगा.

UBI हमेशा के लिए नहीं होगी लेकिन कोविड-19 के कारण जो सामाजिक और आर्थिक प्रभाव हुए हैं, उसके मद्देनज़र इसकी अभी ज़रूरत है.

एशिया-प्रशांत के देश इससे किस तरह टिकाऊ ढंग से उबर सकते हैं, ताकि विषमता भी घटे? 

कोरोनावायरसों के संक्रमण का एक प्रमुख कारण उनका पशुओं से मनुष्यों में इतनी तेज़ी से प्रवेश करना है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने अपने पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा है. 

हमने प्राकृतिक पर्यावास इस हद तक तबाह कर दिए हैं कि जानवरों से लोगों तक बीमारी का फैलाव टालना मुश्किल प्रतीत होता है.   

इसलिए कोरिया गणराज्य में विश्वव्यापी महामारी के दौरान सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न होते देखना उत्साहजनक था. जीतने वाली पार्टी ने कम-कार्बन पर आधारित अर्थव्यवस्था और वर्ष 2050 तक नैट शून्य उत्सर्जन के वादे पर चुनाव लड़ा था. 

इन वादों के लिए भरपूर समर्थन दर्शाता है कि मतदाता अब चीज़ों को समझने लगे हैं. और मैं आशा करती हूँ कि यह पूरी दुनिया के लिए सच हो. वे सिर्फ़ आर्थिक और स्वास्थ्य संकट नहीं देख रहे हैं बल्कि समझ रहे हैं कि यह एक जलवायु व पर्यावरण से जुड़ा संकट भी है.  

इसलिए यूएन में हम आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थायित्व, पृथ्वी व लोगों को एक साथ लाने और दोनों में निवेश करने की अहमियत पर बल दे रहे हैं.

कंबोडिया में एक गारमेंट फ़ैक्ट्री में कपड़ों की सिलाई का काम
World Bank/Chhor Sokunthea
कंबोडिया में एक गारमेंट फ़ैक्ट्री में कपड़ों की सिलाई का काम

यह कोई ऐसा सपना नहीं है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता या जिसे संभव बनाना बहुत ख़र्चीला हो. जीवाश्म ईंधनों और कोविड-19 जैसी बीमारियों के साथ रहना कहीं ज़्यादा महंगा है. ना सिर्फ़ दीर्घ-काल में बल्कि अल्प-अवधि में भी. 

एशिया के अनेक देशों पर स्वचालन (Automation) जैसी नई टैक्नॉलॉजी का असर पड़ने की संभावना है. और अब महामारी के कारण लाखों रोज़गार छिन जाने की आशंका भी है. क्या UBI इस क्षेत्र को बचा सकती है?

सार्वभौमिक बुनियादी आय इस क्षेत्र की आर्थिक मुश्किलों का समाधान नहीं हैं, लेकिन यह लोगों को खाई में गिरने से बचा लेगी. क्षेत्र में रोज़गार संकट बढ़ रहा है और अर्थव्यवस्थाओं को सभी लोगों की भागीदारी के साथ आगे बढ़ाने की ज़रूरत है. 

कुछ अपवादों को छोड़ कर, एशिया के कई देशों में युवाओं की संख्या बढ़ रही है, इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा लोग रोज़गार के बाज़ार में आ रहे हैं. उनकी शिक्षा का स्तर सुधर रहा है और वे योगदान देने के लिए तैयार हैं.

लेकिन रोज़गार बाज़ार में उतनी तेज़ी से बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है. साथ ही इसे हरित और सुरक्षित बनाए जाने की भी आवश्यकता है.

इसके अलावा, विश्व अर्थव्यवस्थाओं के आपस में जुड़े होने से नई समस्याएँ पैदा हो रही हैं. जैसे बांग्लादेश में कोविड-19 के बेहद कम मामले थे लेकिन परिधान उद्योग में दस लाख से ज़्यादा लोगों का रोज़गार छिन गया. 

जब महामारी शुरू हुई थी तो चीन में विनिर्माण ठप हो गया था, सप्लाई चेन टूट गई और ज़रूरी पुर्ज़े जैसे बटन और ज़िपर भी नहीं भेजे जा सके थे. इससे बांग्लादेश की फ़ैक्ट्रियों में ताला लग गया.

जिन कामगारों के रोज़गार गए हैं, उन्हें एक हफ़्ते का वेतन मिला लेकिन सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं है. अनेक स्थानों पर बिल्कुल बेसहारा हैं. 

एक दूसरा उदाहरण उन देशों का है जो ख़ासतौर पर पर्यटन पर निर्भर हैं. जैसे मालदीव्ज़, थाईलैंड, श्रीलंका और भूटान. अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की यात्राएँ रुकने से इन देशों की अर्थव्यवस्थाएँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. 

इस संकट से अर्थव्यवस्थाओं की सहनक्षमता पर अनेक सवाल उठे हैं. उदाहरणस्वरूप, आपको भावी संकटों का सामना करने के लिए घरेलू स्तर पर कितना उत्पादन करना चाहिए ताकि सुरक्षित रह सकें? वैश्विक रूप से जुड़े रहने के साथ-साथ हम मुश्किल हालात में यह समझ रहे हैं कि ग्लोबल सप्लाई चेन भी उनकी सबसे कमज़ोर कड़ी के बराबर ही मज़बूत है. जब वो कड़ी टूट जाती है तो पूरी अर्थव्यवस्थाएँ ढह जाती हैं.