कोविड-19: देशों से दासिता का जोखिम रोकने का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र के एक मानवाधिकार विशेषज्ञ ने तमाम देशों की सरकारों से उन करोड़ों कामगारों की सुरक्षा बढ़ाने का आग्रह किया है जो कोविड-19 महामारी के कारण शोषक कामकाजी परिस्थितियों में धकेल दिए जाने के ख़तरे का सामना कर रहे हैं, ऐसे हालात जो दासता के समान होते हैं.
दासता के समकालीन प्रकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष मानवाधिकार रैपोर्टेयर तोमोया ओबोकाता ने कहा है, “कोविड-19 महामारी के गंभीर सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण आधुनिक काल की दासता का अभिशाप और भी ज़्यादा बढ़ने का डर है, जबकि ये महामारी शुरू होने से पहले के हालात में भी दुनिया भर में लगभग चार करोड़ लोग इसकी चपेट में थे.”
UN expert @TomObokata urges Governments worldwide to increase protection for those most vulnerable to drifting into exploitative jobs. Inaction could lead to a sharp rise in the number of people being pushed into slavery because of the #COVID19 crisis 👉 https://t.co/yDVjM6SzH9 pic.twitter.com/x1ZlGkXRul
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तोमोया ओबोकाता ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के स्पेशल रैपोर्टेयर की ज़िम्मेदारी मई के शुरू में ही संभाली है.
विश्व के अनेक देशों में कोविड-19 महामारी के कारण लागू की गई तालाबंदी से उपजे हालात में बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हो रहे हैं. इससे पहले से ही नाज़ुक परिस्थितियों में काम करने वाले बहुत से कामकाजी लोग और भी ज़्यादा ख़तरनाक हालात में धकेल दिए गए हैं जिन्हें किसी भी तरह की सुरक्षा व संरक्षण हासिल नहीं हैं.
तोमोया ओबोकाता ने आगाह करते हुए कहा, “इन कारकों ने लोगों के शोषण का शिकार होने के हालात और ज़्यादा आसान बना दिए हैं, जिसकी परिणति दासता जैसी परिस्थितियों में हो सकती है.”
विशेष रैपोर्टेयर ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि वैसे तो कोविड-19 महामारी ने अरबों लोगों को प्रभावित किया है, मगर जो लोग अनौपचारिक सैक्टर में काम करते हैं, उन पर ज़्यादा भीषण असर हुआ है. इनमें दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूर, अस्थाई कर्मचारी और ऐसे लोग शामिल हैं जिन्हें किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं है.
इनमें से बहुत से महिलाएँ और प्रवासी कामकार हैं.
और इन हालात में बच्चों के लिए हालात और भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं क्योंकि वित्तीय झटकों और अपर्याप्त सरकारी सहायता के अभाव में उनके बाल मज़दूरी के बेहद ख़राब हालात में धकेल दिए जाने का ख़तरा मौजूद है.
तोमोया ओबोकाता का कहना है, “समकालीन दासता के शिकार लोगों की शिनाख़्त और उनका पुनर्वास इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि इससे जुड़ी आपराधिक परिस्थितियों के रूप छुपे होते हैं. बहुत से देश महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में सुरक्षा संसाधनों में कटौती कर रहे हैं तो चुनौतियाँ और भी ज़्यादा गंभीर हो रही हैं.”
उन्होंने देशों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कोरोनावायरस स्वास्थ्य आपदा के ख़िलाफ़ लड़ाई के दौरान उन लोगों की पहचान की जाए जो बहुत ज़्यादा जोखिम का सामना कर रहे हैं, “अगर इस बार में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो ऐसा बहुत ज़्यादा ख़तरा है कि बहुत ज़्यादा लोग तत्काल और दीर्घकाल के लिए दासता में धकेल दिए जाएँगे.”
उन्होंने साथ ही ये भी ध्यान दिलाया कि देशों द्वारा ऐसे क़दम तेज़ी से उठाना टिकाऊ विकास लक्ष्यों के एजेंडा में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अति महत्वपूर्ण है जिनमें वर्ष 2030 तक दासता का उन्मूलन किया जाना है.
उन्होंने कहा कि अगले तीन वर्षों तक वो विभिन्न मुद्दों पर काम करेंगे जिनमें दासता के समकालीन रूपों के बढ़ते ख़तरे का कोविड-19 के सामाजिक व आर्थिक प्रभावों के साथ संबंध का मुद्दा भी शामिल होगा.
स्पेशल रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा कि जाती है जो मानवाधिकार से जुड़े किसी ख़ास मुद्दे या किसी देश में किसी ख़ास स्थिति पर जाँच-पड़ताल करके रिपोर्ट करते हैं. ये पद मानद होता है और ये विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र का स्टाफ़ नहीं होते हैं, और ना ही उनके काम के लिए उन्हें कोई वेतन दिया जाता है.