ख़ुद की ज़िन्दगी जोखिम में डाल, नन्हीं जानों को दुनिया में लाती दाइयॉं

संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को ‘अन्तरराष्ट्रीय दाई दिवस’ पर सभी देशों की सरकारों व साझीदार संगठनों से इन अहम स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा व स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिये हरसम्भव उपाय किये जाने की पुकार लगाई है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की प्रमुख नतालिया कनेम ने कहा है कि कोविड-19 के कारण कठिन परिस्थितियों में भी दाइयॉं गर्भवती महिलाओं, माताओं व नवजात शिशुओं को मूल्यवान सेवाएँ मुहैया करा रही हैं.
गर्भावस्था, प्रसव और बच्चे के जन्म के बाद हर चरण में दाइयॉं महिलाओं का भरोसेमन्द व महत्वपूर्ण सहारा होती हैं.
Thank your mother.Thank a midwife.Save a life.As the #coronavirus sweeps through the world, @UNFPA is celebrating the mothers and midwives risking their lives to bring new life into the world. Join us today: https://t.co/GRYQpoCcUG#COVID19 pic.twitter.com/YvyHyPv51E
UNFPA
वे महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य पर ध्यान देने और उसे एक सकारात्मक अनुभव सम्भव बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं.
भारत में गर्भावस्था, प्रसव के दौरान और जन्म के बाद हर साल 35 हज़ार महिलाओं की मौत होती है, दो लाख 72 हज़ार मृत बच्चे पैदा होते हैं और साढ़े पॉंच लाख से ज़्यादा नवजात शिशुओं की मौत जीवन के पहले महीने में ही हो जाती है.
दाइयाँ, ऐसी बहुत सी मौतों को टालने में, बहुत अहम भूमिका निभा सकती हैं.
यूएन जनसंख्या कोष की प्रमुख नतालिया कनेम ने 'अन्तरराष्ट्रीय दाई दिवस' के अवसर पर जारी अपने सन्देश में कोविड-19 संकट काल में मिडवाइफ़ यानि दाइयों के साहस, सहनक्षमता और अथक प्रयासों की प्रशंसा की है.
उन्होंने कहा कि विश्वव्यापी महामारी में भी बच्चों का जन्म नहीं रुकता और ना ही दाइयों की सेवाएँ रुकती हैं.
कोविड-19 संकट से अनेक देशों की राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी असर हुआ है.
उन्होंने चिन्ता जताई कि बुरी तरह प्रभावित देशों में मातृत्व स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ समझी जाने वाली दाइयॉं, कोरोनावायरस से संक्रमित हो रही हैं और निजी बचाव सामग्री के अभाव में दम तोड़ रही हैं.
“बहुत से स्वास्थ्य केन्द्रों में दाइयॉं को वायरस से निपटने के लिये पुनर्तैनात किया जा रहा है और इस वजह से महिलाओं के लिये जीवनरक्षक और आपात सेवाओं की उपलब्धता ख़त्म हो रही है.”
यूएन एजेंसी प्रमुख ने महामारी के ख़िलाफ़ समग्र कार्रवाई के एक हिस्से के तौर पर मातृत्व और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा कि यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और महिला अधिकारों को मज़बूती देने के प्रयासों में हर जगह दाइयों को समर्थन देने के नज़रिये से यह संकट एक अवसर प्रदान करता है.
उदाहरण के तौर पर, अनेक देशों में प्रजनन और अपनी पसन्द के अनुसार चयन का अधिकार ख़तरे में हैं.
ऐसे स्थानों पर दाइयॉं परिवार नियोजन के साधनों की उपलब्धता के अभाव और मातृत्व काल में होने वाली उन मौतों के बारे में बताती हैं जिन्हें टाला जा सकता है.
“वे लिंग आधारित हिंसा, महिला ख़तना और बाल विवाह जैसी नुक़सानदेह प्रथाओं पर ख़तरे की घंटी बजाती हैं. वे लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति की वाहक हैं.”
कोरोनावायरस संकट के दौरान, यूएन एजेंसी दुनिया भर में दाइयों को निजी बचाव सामग्री व उपकरण मुहैया कराने के काम में जुटी है. साथ ही यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है कि गर्भवती व स्तनपान करा रही महिलाओं की ज़रूरी देखभाल होती रहे.
ध्यान रहे कि वर्ष 2020 ‘नर्सों व दाइयों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष’ के रूप में मनाया जा रहा है.
यूएन एजेंसी लोगों में दाइयों के काम के प्रति जागरूकता का प्रसार करने और पर्याप्त संसाधन निवेश सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को ‘दाइयों के अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ पर सभी लोगों से दोपहर में इन स्वास्थ्यकर्मियों का ताली बजाकर अभिवादन करने की पुकार लगाई.
यूएन एजेंसी ने कहा है कि महामारी से उपजे मुश्किल हालात में भी दाइयाँ (Midwife) महिलाओं और नवजात शिशुओं को अहम सेवाएँ उपलब्ध करा रही हैं.
महानिदेशक टैड्रॉस ने कहा कि दाइयों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ अनेक परिवारों व समुदायों के लिये जीवनरेखा के समान हैं.
रीसर्च के मुताबिक उनकी मदद से प्रसवकाल में होने वाली और नवजात शिशु सम्बन्धी 80 फ़ीसदी मौतों को टाला जा सकता है.
उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को परामर्श देने, उनका ख़याल रखने और जन्म देने के अहम क्षण के दौरान दाइयाँ अहम भूमिका निभाती हैं.
यूएन प्रमुख ने और ज़्यादा संख्या में दाइयों की ज़रूरत को रेखांकित किया है, ख़ासकर कम संसाधन वाले देशों में.