कोविड-19: कारगर उपचार के लिए सात अरब यूरो का संकल्प

विश्व नेताओं ने विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के ख़िलाफ़ कारगर दवाएँ बनाने के लिए आयोजित एक संकल्प सम्मेलन में सात अरब 40 करोड़ यूरो की धनराशि जुटाने का संकल्प लिया है. संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी – विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने इसे वैश्विक एकजुटता का शक्तिशाली और प्रेरणादायी उदाहरण बताया है.
महामारी के लिए वैक्सीन विकसित करने व असरदार दवा की शिनाख़्त की रफ़्तार तेज़ करने के लिए हाल ही में ‘Access to COVID-19 Tools (ACT)’ एक्सेलरेटर नामक पहल शुरू हुई है. इस प्रयास के लिए धनराशि जुटाने के उद्देश्य से सोमवार को एक वर्चुअल संकल्प सम्मेलन आयोजन किया गया था.
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WHO
यूएन एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने जिनीवा से पत्रकारों को संबोधित करते हुए बताया, “आज सभी देशों ने एक साथ आकर ना सिर्फ़ वित्तीय मदद का संकल्प लिया है बल्कि कोविड-19 के लिए जीवनरक्षक औज़ारों की उपलब्धता सभी तक सुनिश्चित करने का संकल्प लिया है. ऐसे उत्पादों को विकसित करने की रफ़्तार तेज़ करने और साथ ही सभी के लिए सुलभ बनाने.”
महानिदेशक टैड्रॉस ने ज़ोर देकर कहा कि वास्तविक सफलता नई दवाएँ तेज़ी बनाने पर नहीं बल्कि उनके न्यायसंगत वितरण पर निर्भर करेगी, “एक ऐसी दुनिया क़तई स्वीकार नहीं की जा सकती जहाँ कुछ लोगों को तो सुरक्षा हासिल हो जबकि अन्य को नहीं. हर किसी की रक्षा की जानी चाहिए.”
उन्होंने सभी देशों व साझीदारों के साथ मिलकर काम करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के संकल्प को रेखांकित किया ताकि दवाएँ बनाने और उनके उत्पादन की गति तेज़ करने में मदद मिल सके और फिर उन्हें बराबरी से वितरित किया जा सके.
“दुनिया के लिए यह साथ आने और साझा ख़तरे का मुक़ाबला करने के साथ-साथ एक साझा भविष्य बनाने का भी अवसर है. एक ऐसा भविष्य जिसमें सभी लोगों के पास सबसे अच्छा स्वास्थ्य हासिल करने का अधिकार हो, और वे उत्पाद भी जो इस अधिकार को संभव बनाएंँ.”
लेकिन सोमवार को जो संकल्प लिए गए हैं उनसे कोविड-19 के ख़िलाफ़ कार्रवाई का एक ही अंश पूरा होता है.
बताया गया है कि आने वाले महीनों में निजी बचाव सामग्री व उपकरणों (पीपीई), अस्पतालों में देखभाल के लिए ऑक्सीजन व अन्य ज़रूरी आपूर्ति की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए और ज़्यादा धनराशि की आवश्यकता होगी.
इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन जल्द ही ‘रणनैतिक तैयारी और जवाबी कार्रवाई’ (Strategic Preparedness and Response Plan) पर ताज़ा जानकारी जारी करेगी जिसका उद्देश्य इस साल के अंत तक अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई और राष्ट्रीय योजनाओं को सहारा देने के लिए ज़रूरी संसाधनों का ख़ाका पेश करना है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कोविड-19 सहित अन्य बीमारियों को दूर रखने के लिए सबसे सरल उपाय अपनाने की अहमियत पर बल दिया है.
इस संकट के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाथों की अच्छे ढंग से साफ़-सफ़ाई को बढ़ावा दिया है ताकि कोरोनावायरस संक्रमण का ख़तरा कम किया जा सके.
मंगलवार को हाथों की स्वच्छता के दिवस से पहले यूएन एजेंसी ने लोगों को इस बुनियादी आदत की महत्ता के प्रति ध्यान आकृष्ट किया है.
“हाथ साफ़ करने जैसा सरल काम भी मौत और ज़िंदगी के बीच का फ़ासला तय कर सकता है, और यह अब भी लोगों, परिवारों, व समुदायों को कोविड-19 सहित अन्य बीमारियों से बचाने का सबसे अहम सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय है.”
लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया भर में लाखों लोग बुनियादी साफ़-सफ़ाई और जल सुलभता से वंचित हैं.
महानिदेशक टैड्रॉस ने बताया कि विश्व भर में दो-तिहाई से भी कम स्वास्थ्य केंद्रों में हाथों की साफ़-सफ़ाई के इंतज़ाम हैं जबकि तीन अरब लोगों के घरों में पानी और साबुन उपलब्ध नहीं हैं.
“अगर हमें कोविड-19 या संक्रमण के किसी अन्य स्रोत को रोकना है, और स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षित रखना है तो हमें नाटकीय ढंग से साबुन, जल सुलभता और एल्काहॉल से बनी हाथ धोने की सामग्री में निवेश बढ़ाना होगा.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को ‘दाइयों के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ पर सभी लोगों से दोपहर में इन स्वास्थ्यकर्मियों का ताली बजाकर अभिवादन करने की पुकार लगाई है.
यूएन एजेंसी ने कहा है कि महामारी से उपजे मुश्किल हालात में भी दाइयाँ (Midwife) महिलाओं और नवजात शिशुओं को अहम सेवाएँ उपलब्ध करा रही हैं.
महानिदेशक टैड्रॉस ने कहा कि दाइयों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ अनेक परिवारों व समुदायों के लिए जीवनरेखा के समान हैं.
रीसर्च के मुताबिक उनकी मदद से प्रसवकाल में होने वालीं और नवजात शिशु संबंधी 80 फ़ीसदी मौतें टाली जा सकती हैं.
उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को परामर्श देने, उनका ख़याल रखने और जन्म देने के अहम क्षण के दौरान दाइयाँ अहम भूमिका निभाती हैं.
यूएन प्रमुख ने और ज़्यादा संख्या में दाइयों की ज़रूरत को रेखांकित किया है, ख़ासकर कम संसाधन वाले देशों में.