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कोविड-19: 'ग़लत जानकारी की महामारी' से मुक़ाबले में पत्रकारों की अहम भूमिका 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाहर राजदूत और यूएन अधिकारी मीडिया को संबोधित करते हैं.
UN Photo/Ryan Brown
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाहर राजदूत और यूएन अधिकारी मीडिया को संबोधित करते हैं.

कोविड-19: 'ग़लत जानकारी की महामारी' से मुक़ाबले में पत्रकारों की अहम भूमिका 

मानवाधिकार

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के संबंध में ग़लत जानकारियों की महामारी ख़तरनाक ढंग से फैलने की रोकथाम के प्रयासों में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने वैश्विक संकट के दौरान प्रैस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए सोमवार को आयोजित एक वर्चुअल संवाद के दौरान यह बात कही है.

इस ऑनलाइन संवाद का आयोजन संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने ‘विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस’ के अवसर पर किया था जो हर वर्ष 3 मई को मनाया जाता है.

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कार्यक्रम में दुनिया भर से पत्रकारों, मीडिया विशेषज्ञों और सरकारों व सोशल मीडिया कंपनियों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने नुक़सानदेह स्वास्थ्य परामर्शों, नफ़रत भरे संदेशों और मनगढ़ंत साज़िशों के उभार के दौर में निष्पक्ष समाचार मीडिया की महत्ता को रेखांकित किया है – ऐसे दौर में जब सरासर झूठी जानकारियाँ तेज़ गति से ऑनलाइन माध्यमों पर फैलाई जा रही हैं.

“ग़लत जानकारी फैलाए जाने की इस महामारी की औषधि तथ्यों पर आधारित ख़बरें व विश्लेषण है. यह मीडिया की स्वतंत्रता और स्वतंत्र रिपोर्टिंग पर टिका है.”

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने अपने संबोधन मे कहा कि युद्ध की तरह कोरोनावायरस महामारी के दौरान सच को ‘पहला पीड़ित’ माना जा सकता है. 

उन्होंने हर जगह सभी लोगों से स्वतंत्र और आज़ाद प्रैस की रक्षा करने और उसे सम्मान देने का आहवान किया. साथ ही आगाह किया कि मीडिया संगठनों को भी अपनी रिपोर्टों में सटीक जानकारी देने की ज़िम्मेदारी निभानी होगी और यह अपेक्षा डिजिटल व सोशल मीडिया से भी है.

“मुझे यह देकर बहुत ख़ुशी होती है कि ज़्यादा से ज़्यादा सोशल मीडिया नेटवर्क ग़लत जानकारी के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहे हैं, जैसा उन्हें करना चाहिए, और संकट के समय यह एक नियम होना चाहिए ना कि एक अपवाद.”

'फ़ेक न्यूज़' से मुक़ाबला

फ़ेसबुक में कंटेंट पॉलिसी विभाग में उपाध्यक्ष मोनिका बिकर्ट ने झूठी ख़बरों पर लगाम कसने के लिए फ़ेसबुक द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि 'फ़ेक न्यूज़' को दो हिस्सों में बॉंटा गया है: जानबूझकर लोगों को भ्रमित करना (Disinformation); और झूठी ख़बरें शेयर करना (Misinformation) जो अनजाने में भी हो सकता है. 

जानबूझकर ग़लत ख़बरें फैलाने के पीछे अक्सर वित्तीय मंशाएँ छिपी होती हैं और इसके लिए सोशल मीडिया पोस्ट्स की पहुँच बढ़ाने के लिए झूठे अकाउंट या ‘फ़ेसबुक लाइक्स’ को ख़रीदने का सहारा लिया जाता है.

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यहाँ असल मुद्दा ऐसी संदिग्ध सामग्री को ढूंढना और हटाना है क्योंकि यह फ़ेसबुक की नीतियों का उल्लंघन है, लेकिन अनजाने में झूठी ख़बरें शेयर किया जाना थोड़ी जटिल समस्या है.

फ़ेसबुक इस कार्य में तथ्यों की पड़ताल करने वाले 60 से ज़्यादा संगठनों के नेटवर्क की मदद लेता है. अगर वे किसी जानकारी के झूठी होने का बात कहते हैं तो उस जानकारी पर लेबल लगाया जाता है, तथ्यों की पड़ताल करने वाले संगठन से मिली जानकारी पोस्ट के बराबर में उपलब्ध कराई जाती है और फिर उस पोस्ट की पहुँच नाटकीय ढंग से कम कर दी जाती है. 

कोविड-19 ‘इन्फ़ोडेमिक’ का प्रकोप

यूएन प्रमुख ने बताया कि ग़लत सूचनाओं के फैलने की महामारी (Infodemic) से निपटने के लिए किस तरह प्रयास किए जा रहे हैं. 

उदाहरण के तौर पर, संयुक्त राष्ट्र सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को सुरक्षित व स्वस्थ रखने वाले संदेशों को बढ़ावा दे रहा है, और झूठ व ग़लत जानकारी का मुक़ाबला तथ्यों व विज्ञान के साथ किया जा रहा है. 

उन्होंने कहा कि तथ्यों और वैज्ञानिक तरीक़ों को बढ़ावा देने में अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सरकारों की अहम भूमिका है. 

“लेकिन इस महामारी के दौरान जनता तक सूचना व विश्लेषण पहुँचाने और अफ़वाहों व ग़लतबयानी से निपटने में कोई भी मीडिया का स्थान नहीं ले सकता.”

महासचिव ने इस अवसर पर पत्रकारों व अन्य मीडियाकर्मियों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि दुनिया के अनेक देशों में अपना काम करते समय उन्हें धमकियों, उत्पीड़न व हिंसा का सामना करना पड़ रहा है. वर्ष 2019 में 60 से ज़्यादा पत्रकारों की मौत हुई थी और महिला पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाया जाता है. 

वर्ष 2020 के लिए विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस पुरस्कार जीतने वाली कोलंबिया की पत्रकार जिनेथ बेडोया लीमा को भी निशाना बनाया जा चुका है.

फ़िलिपींस की खोजी पत्रकार मारिया रेस्सा ने कहा कि महामारी की वजह से मीडिया संस्थान व्यावसायिक तौर पर भी प्रभावित हुए हैं और तालाबंदी के कारण विज्ञापनदाता कम विज्ञापन दे रहे हैं.

उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि स्वतंत्र पत्रकारिता इस महामारी की बलि ना चढ़ जाए.