
'कोविड-19 ने वैश्विक कमज़ोरियाँ व असमानताएँ उजागर की हैं'
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण दुनिया भर में विकसित और विकासशील देश बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. बड़ी संख्या में संक्रमण के मामल सामने आने, लोगों की मौतें होने और तालाबंदी के कारण आर्थिक संकट उत्पन्न होने से चिंता व्याप्त है. संयुक्त राष्ट्र की उपमहासचिव आमिना जे. मोहम्मद ने यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में बताया कि इस संकट से हमारे समाजों की ख़ामियाँ और असमानताएँ उजागर हो गई हैं.
यूएन उपप्रमुख आमिना मोहम्मद ने बताया कि कोरोनावायरस से एक वैश्विक संकट खड़ा हो गया है लेकिन इसका इस्तेमाल टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू करने के लिए भी किया जा सकता है.
टिकाऊ विकास का 2030 एजेंडा वैश्विक कार्ययोजना का एक ऐसा ब्लूप्रिंट है जिसमें ग़रीबी दूर करने, समान व शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण करने और पृथ्वी के संरक्षण का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने की बात कही गई है.
यूएन न्यूज़: कोरोनावायरस महामारी के फलस्वरूप वैश्विक असमानताओं के और भी ज़्यादा गहरे होने के प्रति आप कितना चिंतित हैं?
यूएन उपमहासचिव अमीना मोहम्मद: मैं बहुत चिंतित हूँ. कोविड-19 ख़तरों को बढ़ाने वाला है. हम एक स्वास्थ्य एमरजेंसी, मानवीय राहत एमरजेंसी और अब एक विकास एमरजेंसी में हैं. ये आपात हालात पहले से ही मौजूद असमानताओं को और ज़्यादा बढ़ा रहे हैं.
विकसित अर्थव्यवस्थाओं में हम हाशिए पर रहने वाले समूहों में अन्य समुदायों के मुक़ाबले ज़्यादा मृत्यु दर देख रहे हैं, और विकासशील देशों में यह संकट निर्बल जनसंख्याओं पर उससे भी ज़्यादा प्रभवित करेगा.
कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणालियाँ इसका मुक़ाबला नहीं कर पाएँगी. अधूरी सामाजिक संरक्षण प्रणालियों में लाखों लोगों के ग़रीबी में घिरने का जोखिम है. और जिन देशों के पास आर्थिक संसाधनों की कमी है, वे उसके असर को कम करने या तेज़ी से उबरने के क़ाबिल नहीं होंगे. इस विश्वव्यापी महामारी से सभी प्रभावित होंगे.
और इससे कोई भी अकेले नहीं निकल पाएगा. कोविड-19 से मज़बूती से बाहर आने के लिए हमें सभी लोगों के लिए अभूतपूर्व एकजुटता दर्शाने की ज़रूरत होगी, नहीं तो विशाल जनसंख्याओं के और भी पीछे रह जाने का जोखिम है.
आबादी के बीच संसाधनों की उपलब्धता में मौजूद खाइयों के गहरी होने से लोगों के ग़रीबी में घिरने का जोखिम होता है – मेहनत से हासिल हुई प्रगति खो जाती है और अगली आपात स्थिति से निपटने की हमारी प्रणालियों की क्षमता कमज़ोर होती है.
विकासशील दुनिया में पहले से ही ग़रीबी की बदहाल स्थिति आपके विचार में कोविड-19 के कारण और कितना ज़्यादा ख़राब होगी?
हम अनेक स्तरों पर देख रहे हैं कि इस महामारी के कारण किस तरह हमारे समाजो की ख़ामियाँ और असमानताएँ उजागर हुई हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था इस वर्ष -3 प्रतिशत सिकुड़ जाएगी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने चेतावनी दी है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में लगभग एक अरब 60 करोड़ कामकाजी लोगों की आजीविका बन्द होने का तत्काल ख़तरा है जोकि वैश्विक कार्यबल की क़रीब आधी आबादी है.

विकासशील देशों को भेजी जाने वाली रक़म में लगभग 20 फ़ीसदी की गिरावट आई है.
इन सभी कारणों से ग़रीबी की दर में और इज़ाफ़ा होगा. विश्व बैंक ने अनुमान व्यक्ति किया है कि चार करोड़ 90 लाख लोग फिर से चरम ग़रीबी का शिकार हो सकते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि इसे टाला नहीं जा सकता. वैश्विक स्तर पर हमारे पास ऐसे औज़ार हैं जो विकासशील देशों को दिए जा सकते हैं ताकि उनके यहाँ निर्धन लोगों को सहारा देने के लिए वित्तीय संसाधनों का इंतज़ाम किया जा सके; सबसे ख़राब प्रभावों से उनके समुदायों की रक्षा हो सके और उबरने के लिए तैयार किया जा सके.
और इन प्रयासों के ज़रिए हम बेहतर ढंग से उबर सकते हैं – ज़रूरी सेवाओं की उपलब्धता के दायरे को बढ़ाकर, हरित पुनर्बहाली के लिए हरित रोज़गारों के सृजन से.
क्या आपको लगता है कि महिलाएँ इस महामारी से कहीं ज़्यादा प्रभावित होंगी?
महिलाएँ कोविड-19 के ख़िलाफ़ अग्रिम मोर्चे पर हैं. वे पहली पंक्ति के राहतकर्मियों के तौर पर लोगों की ज़िंदगियों की रक्षा कर रही हैं, नवप्रवर्तकों (Innovator) के तौर पर समाधान तलाश कर रही हैं और राजनैतिक नेताओं के तौर पर महामारी का मुक़ाबला कर रही हैं.
इस वायरस से महिलाओं की तुलना में पुरुषों की मौत ज़्यादा हो रही है लेकिन अन्य मामलों में महिलाओं को महामारी का भार सहना पड़ रहा है.
अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी लगभग 60 फ़ीसदी है, वे कम आय अर्जित करती हैं और उनके ग़रीबी में घिरने की संभावना ज़्यादा होती है.
विश्व के वृद्धजनों में उनकी पचास फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी है, उनके अकेले रहने की संभावना ज़्यादा होती है और इंटरनेट या मोबाइल फ़ोन की सुविधा सुलभ नहीं होती जिससे अलग-थलग पड़ने का जोखिम बढ़ जाता है.
हमने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा में भयावह बढ़ोत्तरी देखी है. हम जानते हैं कि घर पर सीमित हो जाने से घरेलू हिंसा के तूफ़ान के लिए अनूकूल हालात बन रहे हैं. हम जानते हैं कि लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकार सभी के लिए एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए ज़रूरी हैं, और मैं उन महिला नेताओं से प्रेरित हूँ जिन्होंने आगे बढ़कर महामारी का सामना किया है और एकजुटता में सभी को एक साथ लाने के लिए उभर रही हैं.
वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस तरह प्रभावित हुई है उससे विकास के लिए धनी देशों से मिलने वाली धनराशि में कमी आने के बारे में आपकी क्या चिंताएँ हैं?
इस समय हमें विकसित देशों से मिलने वाले विकास धन कमी नहीं दिख रही है. संयुक्त राष्ट्र ने स्पष्टता से कहा है कि दुनिया द्वारा की जाने वाली कार्रवाई अभी वैसी है जैसेकि सबसे कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली.
और देश जानते-समझते हैं कि यह वायरस सीमाओं का सम्मान नहीं करता है. वो ये भी जानते हैं कि अगर वायरस मानवीय संकट से प्रभावित इलाक़ों या विकासशील देशों में फैला तो राजनैतिक अस्थिरता, हिंसक संघर्ष या विस्थापन का ख़तरा बेहद वास्तविक है. इससे किसी का फ़ायदा नहीं होगा.

इस संकट के दौरान जलवायु में अल्प-अवधि के लिए कुछ लाभ हो सकता है लेकिन जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्रवाई दीर्घकाल में किस तरह प्रभावित होगी, जो ग़रीबी कम करने के लिए अहम है?
अनुमान दर्शाते हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में क़रीब छह फ़ीसदी की कमी आएगी. लेकिन हम जानते हैं कि महामारी के कारण आर्थिक व औद्योगिक मंदी सतत जलवायु कार्रवाई का स्थान नहीं ले सकती.
अर्थव्यवस्थाएँ बढ़ सकती हैं, और महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के साथ-साथ रोज़गार सृजन हो सकता है, बशर्ते के विश्व अर्थव्यवस्थाओं की कार्बन पर निर्भरता कम करने के लिए तेज़ी से सही निवेश किए जाएँ.
कोरोनावायरस पोर्टल व न्यूज़ अपडेट
हमारे पाठक नॉवल कोरोनावायरस के बारे में संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन व अन्य यूएन एजेंसियों द्वारा उपलब्ध जानकारी व दिशा-निर्देश यहाँ देख सकते हैं. कोविड-19 के बारे में यूएन न्यूज़ हिंदी के दैनिक अपडेट के लिए यहाँ क्लिक करें.हमें अगले कई वर्षों तक सतत जलवायु कार्रवाई की ज़रूरत है ताकि पैरिस समझौते के लक्ष्य हासिल किए जा सकें.
असमानताओं को घटाने और इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए क्या इस संकट को उत्प्रेरक के रूप में बदलना संभव है?
बिलकुल. और कुछ मायनों में यहाँ कोई और विकल्प नहीं है. हम फिर से एक ऐसे विश्व में नहीं लौट सकते जो संकट से पहले जैसा हो. इसका अर्थ होगा उन निर्बलताओं और ख़ामियों को ऐसे ही छोड़ दिया जाए जो इस संकट के कारण आसानी से देखी जा सकती हैं.
स्वास्थ्य और सामाजिक संरक्षण में अल्पनिवेश; वैश्विक और स्थानीय स्तर पर भारी असमानता; प्रकृति की तबाही और जलवायु विनाश की दिशा में क़दम बढ़ना; लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन जो अधिकारों और सामाजिक समरसता की रक्षा करने के केंद्र में हैं.
हमारे पास अभी एक अप्रतिम अवसर है कि इस संकट से कार्रवाई के दशक की शुरुआत करके टिकाऊ विकास लक्ष्य पूरए किए जाएँ.
क्या असमानताएँ घटाने के लक्ष्य हासिल करने के लिए बनी समय-सारिणी अब अवास्तविक लगती है?
इस संकट ने पहले ही दिखा दिया है कि अगर राजनैतिक इच्छाशक्ति और उद्देश्यों में एकरूपता हो तो व्यापक बदलाव लाना संभव है.
टिकाऊ विकास लक्ष्य दूरस्थ भविष्य के लिए निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्य नहीं हैं. सभी के लिए एक सुरक्षित, ज़्यादा न्यायसंगत और ज़्यादा टिकाऊ विश्व के निर्माण के लिए इतनी न्यूनतम ज़रूरत तो होगी.
अगर ग़रीबी, भुखमरी और जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में पूरे समाज के नेता इसी स्तर पर अहमियत और तात्कालिकता दिखाएँ तो हमें टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई के दशक में सफलता मिल जाएगी.