'बुज़ुर्गों के मानवाधिकारों व गरिमा का ध्यान ज़रूरी'
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि दुनिया भर में कोविड-19 महामारी से मौत का शिकार होने वाले कुल मरीज़ों में 80 वर्ष और उससे ज़्यादा उम्र के वृद्धों की संख्या पाँच गुना ज़्यादा है. उन्होंने शुक्रवार को बुज़ुर्गों के लिए सदी की इस भयावह महामारी के दौरान व बाद में भी अन्य अनेक चुनौतियों पर एक नई नीति पहल जारी करते हुए ये बात कही.
महासचिव ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, “कोविड-19 से निपटने के हमारे उपायों में बुज़ुर्गों के अधिकारों और उनकी गरिमा के लिए सम्मान अवश्य नज़र आना चाहिए.”
I had a wonderful call with @CaptainTomMoore, who has raised over £31m for the UK National Health Service - and today celebrated his 100th birthday!Captain Tom is a symbol of solidarity in the face of #COVID19, and an inspiration to us all.Happy birthday Captain Tom! pic.twitter.com/r3YMj61QJo
antonioguterres
उन्होंने कहा कि उम्र आधारित भेदभाव, वृद्ध लोगों की स्वायत्तता, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में असमानता और उनके पास निर्णय लेने की क्षमता की कमी होने के माहौल में, बुज़ुर्गों के लिए इस महामारी ने उनके मानवाधिकारों के लिए मौजूदा अन्तर और सामाजिक व आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा दिया है.
बुज़ुर्गों को अपने सभी मानवाधिकारों का आनन्द लेने के अवसरों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र विशेषज्ञ रोज़ा कॉर्नफ़ील्ड-मैट्टी का कहना है, “हमें बुज़ुर्ग लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होना होगा.”
उन्होंने कहा कि वृद्धावस्था के कारण तन्हाई और बेसहारा हो जाने और मौत का डर कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से वृद्ध लोगों के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह बढ़ता है, उनके ख़िलाफ़ भेदभाव बढ़ता है और अन्ततः वृद्धावस्था में उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है.
व्यक्तिगत पहलू!
यूएन प्रमुख ने कहा, “मैं ख़ुद एक बुज़ुर्ग हूँ और ख़ुद से भी ज़्यादा बुज़ुर्ग माँ की देखभाल के लिए ज़िम्मेदार हूँ, मैं इस महामारी के निजी स्तर पर, और समुदायों व समाजों पर इसके असर को लेकर भी बहुत चिन्तित हूँ.”
साथ ही उन्होंने ये भी ध्यान दिलाते हुए कहा कि बुज़ुर्ग लोग अपने परिवारों और समुदायों के जीवन में अकूत योगदान करते हैं – आमतौर पर वो अन्य लोगों की भलाई के लिए ख़ुद को भी नज़रअन्दाज़ करते हैं, और इसमें अपने बच्चों और उनके बच्चों की देखभाल भी शामिल है: “कोविड-19 का मुक़ाबला करने के हमारे प्रयासों में इन सभी मामलों को भी ध्यान में रखा जाए”, और “हम अनिवार्य रूप से बुज़ुर्गों के अधिकारों और गरिमा का सम्मान करें.”
बुज़ुर्गों की ज़रूरतों पर ध्यान
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा, “कोई भी इंसान, चाहे वो युवा हो या वृद्ध, बेकार नहीं है.”
यूएन प्रमुख ने कहा, “जीवन व स्वास्थ्य के लिए अन्य लोगों की ही तरह वृद्ध लोगों के भी समान अधिकार हैं. जीवनदायी चिकित्सा देखभाल सेवाओं के बारे में मुश्किल निर्णयों में सभी की गरिमा व मानवाधिकारों का सम्मान करना बहुत ज़रूरी है.”
साथ ही उन्होने ये भी कहा कि बेशक शारीरिक दूरियाँ बनाए रखना बहुत ज़रूरी है, मगर हमें ये भी याद रखना होगा कि “हम सभी एक समुदाय हैं और हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.”
“बुज़ुर्गों की ज़रूरी देखभाल, उनकी मदद और उनके सामाजिक समावेश के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने के वास्ते डिजिटल टैक्नॉलॉजी में सुधार किया जाना चाहिए.”
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हमारे पाठक नॉवल कोरोनावायरस के बारे में संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन व अन्य यूएन एजेंसियों द्वारा उपलब्ध जानकारी व दिशा-निर्देश यहाँ देख सकते हैं. कोविड-19 के बारे में यूएन न्यूज़ हिंदी के दैनिक अपडेट के लिए यहाँ क्लिक करें.महासचिव ने कहा कि ऐसा किया जाना बेहद ज़रूरी है क्योंकि तालाबंदी और अन्य पाबन्दियों के माहौल में बुज़ुर्ग लोगों को तन्हाई व अन्य तरह की भारी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ सकता है.
उन्होंने कहा कि महामारी के तात्कालिक स्वास्थ्य प्रभावों से भी आगे, इसके कारण वृद्ध लोगों का जीवन ग़रीबी, भेदभाव और अकेले छोड़ दिए जाने का गंभीर ख़तरा भी पैदा हो रहा है.
”ख़ासतौर से विकासशील देशों में उन बुज़ुर्गों की ज़िन्दगी पर बहुत तबाही वाला असर पड़ने की आशंका है जहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ और सामाजिक सुरक्षा सेवाएँ इस वायरस के बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रही हैं.”
इससे भी ज़्यादा ये ज़रूरी है कि इस महामारी से निपटने के लिए किए जा रहे सभी सामाजिक, आर्थिक और मानवीय उपायों में बुज़ुर्ग लोगों की ज़रूरतों को ख़ासतौर पर ध्यान में रखा जाए और ये ख़याल सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, पेंशन, आमदनी वाले कामकाज और सामाजिक सुरक्षा में भी रखा जाए.
“बुज़ुर्गों में ऐसी महिलाओं की संख्या ज़्यादा है जिनके जीवन के इस दौर में ग़रीबी में दाख़िल होने की आशंका ज़्यादा है और उन्हें स्वास्थ्य सेवाएँ भी हासिल नहीं हैं. सभी नीतियों में उन बुज़ुर्गों की ज़रूरतों का ख़याल रखना जाना बहुत ज़रूरी है.”
बुज़ुर्गों केे योगदान को मिले पहचान
बुज़ुर्ग लोगों को अदृश्य या शक्तिहीन नहीं समझा जाना चाहिए बल्कि उनके विविध अनुभवों और संकट का सामना करने के उपायों में उनके विविध योगदान के लिए उनकी अहमियत दर्ज होनी चाहिए.
उन्होंने तर्क देते हुए कहा, “बहुत से बुज़ुर्ग लोग किसी आमदनी पर निर्भर हैं और पूरी तरह से कामकाज में लगे हैं, परिवार में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं, शिक्षण और सिखाने की गतिविधियों में सक्रिय हैं और अनेय लोगों की देखभाल कर रहे हैं.”
बुज़ुर्गों के वजूद,उनकी भागीदारी और महामारी से निपटने में उनके योगदान की पहचान होनी चाहिए, साथ ही उनके ज्ञान, अनुभव और अच्छी आदतों को पुनर्बहाली के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए.
यूएन प्रमुख ने कहा, “उनकी आवाज़ और नेतृत्व मायने रखते हैं.”
साथ मिलकर उबरना
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा, “इस महामारी से एक साथ उबरने के लिए हमें वैश्विक और राष्ट्रीय स्तरों पर एकजुटता में उछाल व समाज के सभी सदस्यों के योगदान की ज़रूरत है, और इनमें बुज़ुर्ग भी शामिल है.”
इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर समुचित व उपयुक्त क़ानूनों की ज़रूरत है, बुज़ुर्ग लोगों के मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन को वैश्विक स्तर पर बल देना, और स्वास्थ्य सेवाओं, देखभाल व सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में और ज़्यादा धन निवेश करना भी बहुत ज़रूरी है जिससे वृद्ध लोगों के अधिकार व गरिमा सुनिश्चित किए जा सकें.
यूएन प्रमुख ने कहा, “जैसे-जैसे हम महामारी से बेहतर ढंग से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, हमें ज़्यादा समावेशी, टिकाऊ और आयु मित्र समाज बनाने के लिए महत्वाकांक्षा और दृष्टि की ज़रूरत होगी, ऐसे समाज जो भविष्य के लिए सटीक हों.”