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कोविड-19: बढ़ती असहिष्णुता व धार्मिक नफ़रत के ख़िलाफ़ चेतावनी

विशेष रैपोर्टेयर अहमद शहीद यूएन महासभा को संबोधित करते हुए.
UN Photo/Manuel Elias
विशेष रैपोर्टेयर अहमद शहीद यूएन महासभा को संबोधित करते हुए.

कोविड-19: बढ़ती असहिष्णुता व धार्मिक नफ़रत के ख़िलाफ़ चेतावनी

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ अहमद शहीद ने कहा है कि कोविड-19 के फैलाव के मद्देनज़र सरकारों को यह ध्यान रखना होगा कि ऐहतियाती उपायों का इस्तेमाल राजनैतिक या आर्थिक लाभ उठाने के लिए ना किया जाए. साथ ही इस संकट का दोष धार्मिक व जातीय समूहों पर मढ़ने वाले नफ़रत भरे संदेशों पर लगाम लगानी होगी. 

धर्म व आस्था की आज़ादी के मुद्दे पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर अहमद शहीद ने बुधवार को अपने संदेश में कहा कि महामारी के कारण कई देशों में धार्मिक असहिष्णुता की भावना को हवा मिली है. 

“मैं नफ़रत भड़काए जाने और ईसाईयों, यहूदियों व मुस्लिमों सहित धार्मिक व आस्थावान समुदायों को बलि का बकरा बनाने की घटनाओं के बढ़ने से चिंतित हूं.” 

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“प्रवासियों, शरणार्थियों और शरण की तलाश कर रहे विभिन्न अल्पसंख्यक समूह के लोगों को इसी तरह कलंकित किया गया है.”

उन्होंने कहा कि लोगों के साथ शाब्दिक दुर्व्यवहार किया गया, मौत की धमकियां दी गई हैं, शारीरिक हमले हुए हैं और सार्वजनिक सेवाओं की सुलभता में उन्हें भेदभाव का अनुभव करना पड़ा है. उन्हें महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी मना कर दिया गया. 

“नफ़रत के लिए किसी प्रकार का उकसावा या धर्म, आस्था और जातीयता पर आधारित हिंसा को किसी भी तरह से स्वीकार्य नही किया जा सकता.”

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि ग़लत सूचनाओं को फैलने से रोकने के लिए देशों को असरदार रणनीतियां तैयार करनी होंगी और सटीक व भरोसेमंद सूचना लोगों तक पहुंचाने के माध्यम प्रदान करने होंगे. 

उन्होंने कहा कि नफ़रत भरे संदेशों को रोकने के लिए राजनैतिक नेतृत्व द्वारा मज़बूत संकल्प का लिया जाना इस संबंध में बेहद ज़रूरी है. साथ ही इस कार्य में धार्मिक नेताओं की भी अहम भूमिका है. 

यूएन विशेषज्ञ के मुताबिक सभी आस्थाओं के लोगों में एकजुटता का होना हाल के समय में पहले इतना कभी अहम नहीं रहा है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि हाशिए पर रह रहे समुदायों तक कोविड-19 से जुड़ी सूचनाओं और उससे बचाव के उपायों को पहुंचाना आसान नहीं है  

इसलिए नागरिक समाज और आस्था-आधारित संगठनों से नाज़ुक हालात में रह रहे समुदायों व लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने में मदद प्रदान करने का आग्रह किया गया है.

संवाद व समावेशन पर ज़ोर

उन्होंने कहा कि ज़रूरतमंदों की मदद करते समय राज्यसत्ताओं को भी भेदभाव बरते जाने से परहेज़ करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एक व्यक्ति के पास सार्वजनिक व स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुंच हो. 

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“समावेशी संदेश यह सुनिश्चित करेगा कि सभी समुदाय स्वेच्छा से ज़रूरी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करें और उनका पालन करें.”

हालात के मुताबिक धार्मिक रिवायतों में भी बदलाव करते हुए वर्चुअल माध्यमों पर धार्मिक गतिविधियों और प्रार्थना सभा में शामिल हुआ जा सकता है. 

यूएन रैपोर्टेयर ने कहा कि राज्यसत्ताओं, सभी धार्मिक नेताओं और आस्थावान पक्षों को सामाजिक समावेशन और एकजुटता के प्रयास बढ़ाने होंगे और शिक्षा व संवाद के ज़रिए नफ़रत भड़काए जाने का मुक़ाबला करना होगा.

उन्होंने सभी से नफ़रत और बहिष्करण को ख़ारिज करने और उन समुदायों के पक्ष में खड़े होने की पुकार लगाई है जिन पर इस कठिन समय में संकट का ठीकरा फोड़ा जा रहा है.  

मालदीव के अहमद शहीद को वर्ष 2016 में यूएन मानवाधिकार परिषद ने धर्म या आस्था की आज़ादी पर विशेष रैपोर्टेयर नियुक्त किया था. 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.