कोविड-19: ज़िंदगियाँ बचाने के लिए खाद्य आपूर्ति जारी रखना अहम

संयुक्त राष्ट्र, सरकारी और ग़ैर-सरकारी एजेंसियों का एक साझा अध्ययन दर्शाता है कि वर्ष 2019 में 55 देशों में 13 करोड़ से ज़्यादा लोग अस्थाई रूप से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे और उन्हें जीवन-यापन के लिए भोजन, पोषण व आजीविका की तत्काल आवश्यकता थी. रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण हालात और भी गंभीर हो सकते हैं इसलिए खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (फ़ूड सप्लाई चेन) की निरंतरता बरक़रार रखनी होगी.
खाद्य संकटों के ख़िलाफ़ वैश्विक नैटवर्क - ‘Global Network Against Food Crises’ ने ये रिपोर्ट मंगलवार को रोम में जारी की है जिसमें वैश्विक खाद्य संकटों के मुख्य कारणों के संबंध में जानकारी दी गई है और बताया गया है कि कोविड-19 के कारण लाखों लोगों के लिए हालात और भी विकट हो सकते हैं.
ग्लोबल नेैटवर्क ने आशंका जताई है कि खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे लोगों की वास्तविक संख्या अध्ययन में अनुमानित संख्या से कहीं ज़्यादा हो सकती है.
वहीं विश्व खाद्य कार्यक्रम ने एक चेतावनी जारी करके कहा है कि कोविड-19 के कारण वर्ष 2020 के अंत तक अस्थाई रूप से भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या दोगुनी, यानी 25 करोड़ से ज़्यादा होने की आशंका है.
Before #COVID19 hit, 135 million people were facing acute food insecurity.As challenges to food security multiply & cross borders, we must work together to protect the most vulnerable👉 https://t.co/A8KPYnSpqo#GlobalFoodCrises #FightFoodCrises pic.twitter.com/qxUsmW6rkF
FAO
इनमें 47 देशों में 18 करोड़ से ज़्यादा अतिरिक्त लोग बेहद तनाव भरी परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं और कोविड-19 जैसे झटकों के कारण खाद्य असुरक्षा का निवाला बनने के कगार पर हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक खाद्य संकट का सामना कर रहे इन लोगों में 55 देशों में साढ़े सात करोड़ बच्चे नाटेपन का शिकार हैं और डेढ़ करोड़ से ज़्यादा बच्चों का पर्याप्त विकास नहीं हो पा रहा है. इनमें से 90 लाख बच्चे खाद्य संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित 10 देशों में हैं.
हालात की गंभीरता के ग्लोबल नैटवर्क ने कहा है राहत प्रयास किसी भी परिस्थिति में नहीं रोके जा सकते.
खाद्य संकट से पीड़ित देशों पर कोरोनावायरस का असर होने की भी आशंका मंडरा रही है. भुखमरी से पीड़ित लोगों का स्वास्थ्य पहले से ही कमज़ोर है और इससे वायरस का मुक़ाबला कर पाने की उनकी क्षमता कमज़ोर होती है.
ऐसे में अगर इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं और खाद्य प्रणालियों पर महामारी के कारण असर पड़ता है तो वे उसे झेल पाने के लिए तैयार नहीं है.
अध्ययन में खाद्य संकट से पहले से पीड़ित लोगों के लिए भोजन सामग्री की आपूर्ति को बरक़रार रखने की अहमियत पर बल दिया गया है, “हमें अति-आवश्यक फ़ूड सप्लाई चेन को जारी रखना होगा ताकि लोगों की जीवन जीने के लिए ज़रूरी भोजन तक पहुंच बनी रहे.”
इस रिपोर्ट में जिन देशों का उल्लेख किया गया है वहाँ स्वास्थ्य प्रणाली या आर्थिक सुरक्षा का ताना-बाना कोविड-19 जैसी विकराल चुनौती के नज़रिए से बेहद कमज़ोर है इसलिए इन देशो को दी जाने वाली सहायता का स्तर बढ़ाने की पुकार लगाई गई है.
रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा रुझानों के मुख्य कारण हिंसक संघर्ष और अशांति (सात करोड़ 70 लाख लोग प्रभावित), चरम मौसम की घटनाएँ (तीन करोड़ 40 लाख प्रभावित) और आर्थिक व्यवधानों (दो करोड़ 40 लाख प्रभावित) का आना है.
ये भी पढ़ें: कोविड-19: विश्व में कामकाजी घंटों और रोज़गार में भारी नुक़सान की आशंका
रिपोर्ट के मुताबिक किसी अन्य क्षेत्र के देशों की तुलना में अस्थाई खाद्य असुरक्षा का ज़्यादा असर अफ़्रीकी देशों पर हुआ है.
गंभीरता की दृष्टि से पिछले साल सबसे ख़राब खाद्य संकट इन देशों में देखे गए: यमन, कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य, अफ़ग़ानिस्तान, वेनेज़्वेला, इथियोपिया, दक्षिण सूडान, सीरिया, सूडान, हेती.
इन देशों में आठ करोड़ से ज़्यादा लोग अस्थाई रूप से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे और इस समस्या से पीड़ित कुल लोगों की संख्या का 65 प्रतिशत हिस्सा थे.
खाद्य असुरक्षा से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में कृषि, पोषण व खाद्य सुरक्षा के लिए मानवीय राहत पहुँचाने के लिए वर्ष 2016 में पाँच अरब 30 करोड़ डॉलर का योगदान किया था और 2018 में यह रक़म बढ़कर छह अरब 50 करोड़ डॉलर हो गई.
विशेषज्ञों का मानना है कि टिकाऊ आर्थिक वृद्धि, सहनशील आजीविका और सतत शांति के लिए एक समग्र योजना की ज़रूरत होगी ताकि मानवीय व विकास संबंधी प्रयासो समन्वित ढंग से आगे बढ़ाए जा सकें.
खाद्य सुरक्षा, पोषण व कृषि आधारित आजीविका को मज़बूत बनाने के इरादे से किए जाने वाले प्रयास ना सिर्फ़ खाद्य संकट के लक्षणों को बल्कि उनके साथ-साथ उनके मूल कारणों को भी हल करते हैं.
ग्लोबल नैटवर्क के मुताबिक अगर विश्वव्यापी महामारी के कारण लोगों की आजीविका के साधन चले गए तो फिर स्वास्थ्य संकट ख़त्म होने के बाद एक और बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा.
ग्लोबल नैटवर्क द्वारा लिए गए संकल्प: