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कोविड-19: अमेरिकी जनता को राहत के लिए बेहतर रणनीति की दरकार

अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर कोरोनावायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है.
UN Photo/Evan Schneider
अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर कोरोनावायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है.

कोविड-19: अमेरिकी जनता को राहत के लिए बेहतर रणनीति की दरकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के  स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ फ़िलिप एल्सटन ने कहा है कि कोविड-19 से प्रभावित अमेरिकी मध्यवर्ग के लाखों-करोड़ों लोगों को ग़रीबी के चक्र में घिरने से बचाने के लिए तत्काल अतिरिक्त क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि रिकॉर्ड संख्या में लोगों के रोज़गार छिने हैं, सामाजिक सुरक्षा का ताना-बाना कमज़ोर है और सरकार मुख्यत: व्यवसायों और संपन्न लोगों को ध्यान में रखकर ही कार्रवाई कर रही है. 

चरम ग़रीबी और मानवाधिकारों के मुद्दे पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर फ़िलिप एल्सटन ने कहा, “लंबे समय से हो रही उपेक्षा व भेदभाव के कारण निम्न-आय वाले और निर्धन लोग कोरोनावायरस से कहीं ज़्यादा जोखिम झेल रहे हैं. अव्यवस्थित व कॉरपोरेट हितों को ध्यान में रखकर हुई संघीय कार्रवाई उनके लिए विफल रही है.”

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उन्होंने सचेत किया कि आने वाले दिनों में अगर अमेरिकी संसद ने दूरगामी कार्रवाई नहीं की तो फिर बड़ी संख्या में लोग ग़रीब और अभाव से ग्रस्त होंगे. 

पिछले चार हफ़्तों में दो करोड़ से ज़्यादा लोग बेरोज़गार हुए हैं और अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि गर्मियों तक यह संख्या बढ़कर साढ़े चार करोड़ से ज़्यादा हो सकती है.  

लोगों की मदद के लिए शुरू किए गए ‘फ़ूड बैंक’ का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर हो रहा है और अमेरिका में एक तिहाई से ज़्यादा किराएदार अप्रैल महीने के लिए अपना किराया समय पर नहीं दे पाए हैं.  

निर्धन समुदायों पर गहरा संकट

यूएन रैपोर्टेयर ने बताया कि पहले से ही निर्धनता में घिरे लोगों पर कोरोनावायरस का ज़्यादा असर होने की आशंका है. 

“उनके ऐसी जगहों पर काम करने की संभावना ज़्यादा होती है जहां संक्रमित होने का जोखिम ज़्यादा होता है, वे भीड़-भाड़ भरे और असुरक्षित और वायु प्रदूषण वाले इलाक़ों में रहते हैं, और उन्हें स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं होती.”

उन्होंने कहा कि अश्वेत समुदाय को ख़ासतौर से ख़तरे का सामना करना पड़ रहा है और उनकी मौत होने की दर भी कहीं ज़्यादा है. निर्धन समुदायों के पास आर्थिक झटकों को सहने के लिए ज़रूरी संसाधनों का अभाव होता है, उनके रोज़गार जाने की आशंका भी अधिक होती है, जबकि बच्चों के पास ऑनलाइन कक्षाओं में हिस्सा लेने के संसाधन नहीं होते.

“इन गंभीर जोखिमों के बावजूद, संघीय राहत इनमें से बहुत से ज़रूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है और संकट की व्यापकता व दीर्घकालिक असर के नज़रिए से बुनियादी रूप से अपर्याप्त है.”

उन्होंने कहा कि एक बार में दी जाने वाली सहायता राशि एक महीने के वेतन से भी कम है और बिना दस्तावेज़ वाले लेकिन टैक्स देने वाले आप्रवासी इसके दायरे से बाहर हैं. 

27 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दो ट्रिलियन डॉलर के ऐतिहासिक आपात राहत पैकेज को मंज़ूरी दी थी ताकि कोविड-19 से प्रभावित लोगों, छोटे व्यवसायों और उद्योग जगत को मदद मुहैया कराई जा सके.

मानवाधिकार विशेषज्ञ फ़िलिप एल्सटन ने कहा कि आधे से ज़्यादा कर्मचारी बीमारी के लिए सवैतनिक अवकाश पर क़ानून का हिस्सा नहीं हैं, निजी कंपनियों से क़र्ज़ लेने वाले छात्रों को राहत नहीं मिल पाएगी और जिन लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है उनके उपचार के लिए क़दम नहीं उठाए गए हैं. 

उन्होंने कोविड-19 के लिए सुलभ और किफ़ायती उपचार की पुकार लगाई है ताकि वैक्सीन विकसित होने पर वो सिर्फ़ धनी लोगों के लिए उपलब्ध होने के बजाय सभी को मिल सके. 

अमेरिका में वर्ष 2018 के ऑंकड़े दर्शाते हैं कि तीन करोड़ 80 लाख से ज़्यादा लोग निर्धनता में जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं. निर्धन अमेरिकी लोग बदहाल व असुरक्षित हालात में काम करते हैं, उनकी आय बेहद कम है, उनके लिए किराए के मकानों में रहना भी मुश्किल है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा कवरेज का अभाव है. 

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिकी सरकार को तत्काल और ज़्यादा राहत मुहैया करानी होगी, जैसे मासिक किराए में सहायता प्रदान करना और क़र्ज़ अदायगी को रोकना.

इसके अतिरिक्त छात्रों के क़र्ज़ों को माफ़ करना होगा और दीर्घकालिक उपायों के तहत अर्थव्यवस्था में स्फूर्ति लाने के लिए पैकेज लाना होगा. 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.