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रोहिंज्या पर समुद्री मुसीबत, हमदर्दी और दयालुता दिखाने की पुकार

म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
IOM/Mohammed
म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.

रोहिंज्या पर समुद्री मुसीबत, हमदर्दी और दयालुता दिखाने की पुकार

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी – UNHCR आश्रय स्थल के ज़रूरतमन्दों के प्रति हमदर्दी और दयालुता दिखाने की पुकार लगाई है. एजेंसी ने ये आहवान उस घटना के बाद किया है जिसमें म्याँमार से सुरक्षा के लिए निकले कम से कम 30 रोहिंज्या लोगों की बंगाल की खाड़ी में डूब जाने से मौत हो गई. ये लोग उस नाव में सवार थे जो लगभग दो महीने से समुद्र में ही ठहरी हुई थी क्योंकि उसे किसी देश में किनारे पर पहुँचने की इजाज़त नहीं मिली थी.

उस नाम में सवार लगभग 400 अन्य लोग बचने में तो कामयाब हो गए मगर वो बुरी तरह कुपोषित थे, उनमें पानी व अन्य पोशक तत्वों की कमी थी और उन्हें तुरन्त चिकित्सा सहायता व देखभाल की ज़रूरत थी. इन लोगों को गुरूवार को बांग्लादेश में किनारे पर पहुँचाया गया और वहाँ यूएन शरणार्थी एजेंसी व उसके साझीदारों के ज़रिए उनकी मदद की जा रही है.

शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता रिचर्ड कॉलविले ने शुक्रवार को कहा, “हम ऐसी ख़बरों से वाक़िफ़ हैं कि इस नाव ने सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचने के लिए बार-बार गुज़ारिश की थी, लेकिन ये नाव मलेशिया में किनारे पर नहीं लग पाई थी.”

“निसन्देह, लोगों की तस्करी को रोकने के लिए जो भी उपाय किए जाएँ, ऐसे मौक़ों पर उन लोगों के लिए हमदर्दी व दरियादिली दिखाने की ज़रूरत है जिन्हें मदद व हिफ़ाज़त की सख़्त ज़रूरत होती है.” 

इसी तरह के हालात वाली नावें अब भी समुद्र में मौजूद हैं. ऐसे हालात में शरणार्थी एजेंसी ने देशों से आग्रह किया है कि वो तत्काल तलाशी अभियान चलाकर उन्हें बचाने की कोशिश करें.

देशों को याद दिलाया गया है कि वो ऐसे मामलों में किसी भी तरह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार व शरणार्थी क़ानूनों के अनुरूप होनी चाहिए, और नावों को किनारों पर पहुँचने से रोकने जैसे ख़तरनाक क़दमों से बचा जाना चाहिए.

समुद्री हादसा एक दुखद चेतावनी

प्रवक्ता कॉलविले ने कहा कि शरणार्थियों की ये यात्रा इस घटनाक्रम की एक दुखद यादगार है कि पिछले चार वर्षों के दौरान लाखों रोहिंज्या लोगों को म्याँमार के उत्तरी राज्य रख़ाइन से सुरक्षा के लिए भागना पड़ा है.

जीवित बचे लोगों में बड़ी संख्या में महिलाएँ व बच्चे हैं. वो सभी बहुत कमज़ोर अवस्था में हैं. इन सभी को नयापाड़ा और उखिया स्थित चिकित्सा सुविधाओं में पहुँचाया गया है.

बांग्लादेश में दाख़िल होने वाले सभी लोगों के लिए जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इन लोगों की भी व्यापक चिकित्सा जाँच की जाएगी, ये देखने के लिए कि कहीं उन्हें कोविड-19 का संक्रमण तो नहीं है.

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मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि उनमें से कुछ लोग कोविड-19 से संक्रमित हो सकते हैं, मगर शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि अभी इन मीडिया ख़बरों में सच्चाई का कोई आधार नहीं पाया गया है. 

ध्यान रहे कि रोहिंज्या म्याँमार में रहने वाले मुस्लिम अल्पसंख्यक समूह के लोग हैं जिन्हें वहाँ की नागरिकता हासिल नहीं है. म्याँमार में प्रताड़ना व असुरक्षा से बचने के लिए सात लाख से भी ज़्यादा रोहिंज्या लोगों ने भागकर बांग्लादेश में पनाह ली है.

इन लोगों को म्याँमार से निकलने का जो भी तरीक़ा मिल रहा है उसके ज़रिए वहाँ से निकलकर बांग्लादेश व अन्य पड़ोसी देशों में पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं, इसमें पानी और ज़मीनी रास्ते शामिल हैं. 

अगस्त 2017 में म्याँमार की सेना व सुरक्षा बलों द्वारा शुरू किए गए दमकारी अभियान के बाद एक ही झटके में लगभग छह लाख 70 हज़ार रोहिंज्या लोगों ने वहाँ से भागकर बांग्लादेश में पनाह ली थी.

इन लोगों को बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में स्थित कॉक्सेज़ बाज़ार स्थित शरणार्थी शिविरों में रखा गया है.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि म्याँमार के रख़ाइन और पड़ोसी चिन राज्य में हालात फिर से बेहद ख़तरनाक हैं. नस्लीय अराकान आर्मी समूह और राष्ट्रीय बलों के बीच हाल ही में हिंसा में तेज़ी आने से सभी जातीय समूहों की आम आबादी प्रभावित हुई है. 

हिंसा व इंटरनेट पर पाबन्दी

प्रवक्ता कॉलविले ने बताया कि म्याँमार की सेना ने घनी आबादी वाले इलाक़ों में लगभग रोज़ाना ही हवाई हमले किए हैं और बमबारी की है.

23 मार्च 2020 के बाद से कम से कम 32 लोग मारे गए हैं और 70 से ज़्यादा घायल हुए हैं. ये हमले संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश द्वारा कोविड-19 महामारी से निपटने के प्रयासों के दौरान वैश्विक युद्धविराम की अपील के बावजूद किए गए हैं, यानि इस अपील को बिल्कुल नज़रअंदाज़ कर दिया गया.

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प्रवक्ता का कहना था, “हालात को और ज़्यादा पेचीदा बनाने के लिए रख़ाइन और चिन प्रान्तें के नौ शहरों और क़स्बों में जून 2019 से ही इंटरनेट पूरी तरह बन्द रखा गया है.” 

“इंटरनेट पर लगी पाबन्दी के कारण भरोसमन्द सार्वजनिक सूचना पाने के प्रयासों को भारी धक्का लगा है जिसमें स्वच्छता, शारीरिक दूरी बनाए रखने के ऐहतियाती और

अन्य बचाव उपायों के बारे में जानकारी का अभाव शामिल है. बांग्लादेश में भी रोहिंज्या शरणार्थियों के शिविरों में इंटरनेट पाबन्दियाँ लगाई गई हैं.” 

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने संघर्ष से सम्बन्धित सभी पक्षों से यूएन प्रमुख की वैश्विक युद्धविराम की अपील पर अमल करने का आहवान किया है.

यूएन एजेंसी ने म्याँमार सराकर से इंटरनेट पर लगी पाबन्दियाँ हटाने का आग्रह करते हुए संघर्ष प्रभावित इलाक़ों में मावीय सहायता पहुँचाना आसान बनाने का भी आग्रह किया है.

साथ ही बांग्लादेश से भी रोहिंज्या शरणार्थियों को सूचना और संचार के मुफ़्त साधन मुहैया कराने के लिए कहा गया है.