कोविड-19: पर्यावरण संरक्षण को कमज़ोर करना 'अतार्किक व ग़ैरज़िम्मेदाराना'

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ डेविड बॉयड ने आगाह किया है कि कोविड-19 से जूझ रहे देशों को महामारी का इस्तेमाल पर्यावरण संरक्षण के उपायों को कमज़ोर करने के रूप में नहीं करना चाहिए. उन्होंने इस तरह के क़दमों को अतार्किक और ग़ैरज़िम्मेदाराना क़रार दिया है.
अनेक देशों ने पर्यावरणीय मानकों को कम करने या अन्य ऐसे क़दम उठाए जाने की घोषणा की है जिनके मद्देनज़र मानवाधिकार और पर्यावरण मामलों पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर डेविड बॉयड की ओर से यह बयान आया है.
उन्होंने कहा कि वैश्विक पर्यावरणीय संकट कोविड-19 से भी पहले से है और इस तरह की कार्रवाई अतार्किक व ग़ैरज़िम्मेदार है, और नाज़ुक हालात में रहने वाले लोगों के अधिकारों को जोखिम में डालती है.
#COVID19 is not an excuse to roll back environmental protection & enforcement – @SREnvironment, after a number of governments announced that they are lowering environmental standards, suspending monitoring requirements & restricting public participation 👉 https://t.co/Lg2HYLUYO9 pic.twitter.com/P1j4gjZCjJ
UN_SPExperts
“इस तरह के नीतिगत निर्णयों का नतीजा पर्यावरण को त्वरित क्षति पहुँचने के रूप में सामने आ सकता है और इसके विविध प्रकार के मानवाधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव होंगे. इनमें जीवन, स्वास्थ्य, जल, संस्कृति और भोजन के अधिकार के साथ-साथ स्वस्थ पर्यावरण में रहने का अधिकार शामिल है.”
विशेष रैपोर्टेयर बॉयड ने कहा कि कोविड-19 से उपजे हालात सुरक्षित, स्वच्छ और टिकाऊ प्राकृतिक पर्यावरण में रहने की अहमियत को रेखांकित करते हैं.
“विज्ञान स्पष्ट है. जो लोग ज़्यादा वायु प्रदूषण वाले इलाक़ों में रह रहे हैं, उनके लिए कोविड-19 से असामयिक मौत का जोखिम ज़्यादा है. इसी तरह, स्वच्छ जल की सुलभता भी वायरस के फैलने और लोगों को संक्रमित होने की रोकथाम करने के लिए आवश्यक है.”
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने बताया कि अब तक जो संक्रामक बीमारियां उभरी हैं उनमें तीन-चौथाई से ज़्यादा बीमारियों की वजह पशुओं से व्यक्तियों तक संक्रमण का फैलना है.
इनमें इबोला, सार्स (SARS), मर्स (MERS) और अब कोविड-19 शामिल हैं.
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कोविड-19 बीमारी नए कोरोनावायरस के कारण होती है जिसका पहला मामला चीन के वूहान शहर में दिसंबर 2019 में सामने आया था.
“वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि वनों की कटाई, औद्योगिक स्तर पर कृषि, ग़ैरक़ानूनी वन्यजीव व्यापार, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के अन्य प्रकारों से भविष्य में विश्वव्यापी महामारियों का ख़तरा बढ़ रहा है, जिससे मानवाधिकारों के हनन की आशंका भी बढ़ जाएगी.”
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी से नज़र आता है कि अरबों लोगों के अधिकार किस तरह कमज़ोर हो सकते हैं, ख़ासतौर पर उनके जिनका जीवन पर्यावरण क्षरण के कारण पहले से ही प्रभावित है.
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इसके अलावा निर्धन समुदायों, अल्पसंख्यकों, वृद्धजनों, आदिवासी समुदायों, महिलाओं व बच्चों पर भी इसका असर होता है.
यूएन के विशेष रैपोर्टेयर के तौर पर ‘विशेष प्रक्रियाओं’ के तहत संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा डेविड बॉयड की नियुक्ति की गई थी.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.