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कोविड-19 और जलवायु एमरजेंसी से निपटने के लिए ख़र्च बढ़ाने पर ज़ोर

वियतनाम के मेकांग डेल्टा में एक महिला नाव-चालक (23 जुलाई 2014).
ESCAP/Taufan Wijaya
वियतनाम के मेकांग डेल्टा में एक महिला नाव-चालक (23 जुलाई 2014).

कोविड-19 और जलवायु एमरजेंसी से निपटने के लिए ख़र्च बढ़ाने पर ज़ोर

आर्थिक विकास

एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग (UNESCAP) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में कहा है कि इस क्षेत्र को कोविड-19 महामारी के दूरगामी आर्थिक और सामाजिक नतीजों का सामना करना पड़ रहा है. व्यापार, पर्यटन और वित्तीय संबंधों के कारण कोरोनावायरस के असर देश की सीमाओं से परे भी दिखाई दे रहे हैं.

बुधवार को जारी ‘Economic and Social Survey of Asia and the Pacific 2020’ सर्वे में इस क्षेत्र में भविष्य के लिए आर्थिक अनुमानों पर कोविड-19 महामारी के तात्कालिक असर को रेखांकित किया गया है.

बताया गया है कि कोरोनावायरस के कारण पहले से चली आ रही आर्थिक मंदी और ज़्यादा गहराने के आसार हैं. हालांकि महामारी के साथ अनेक अनिश्चितताएं भी जुड़ी हैं, लेकिन उनका असर काफ़ी नकारात्मक होने की प्रबल आशंका  है.

आयोग के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया में निदेशक डॉक्टर नागेश कुमार ने बताया, “रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 विश्व अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा झटका है.  दूसरे विकासशील देशों की तरह भारत की अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित होगी. आर्थिक विकास की दर बहुत गिरेगी, लेकिन सबसे बड़ा असर स्वास्थ्य और सामाजिक होगा.” 

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कोविड-19 के प्रभावों से चिंतित सरकारों ने इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए आर्थिक राहत पैकेजों की घोषणा की हैं.

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि एशिया-प्रशांत के विकासशील देशों को स्वास्थ्य एमरजेंसी ख़र्च में प्रति वर्ष 88 करोड़ डॉलर तक की वृद्धि करनी चाहिए. 

सर्वेक्षण के मुताबिक एशिया-प्रशांत देशों को भविष्य में ऐसी स्वास्थ्य आपदाओं से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय कोष स्थापित करने पर भी विचार करना चाहिए. 

यूएन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर नीति निर्माताओं को क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को मज़बूत बनाए रखने के लिए सरल और व्यापक आर्थिक नीतियां बरक़रार रखनी चाहिए. 

वहीं वित्तीय और मौद्रिक नीतियों के ज़रिए प्रभावित उद्यमों और लोगों की मदद करने और आर्थिक संकट रोकने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. 

महामारी की रोकथाम करने, संक्रमित लोगों की देखभाल और स्वास्थ्य आपातकालीन तैयारियों में सुधार करने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों की क्षमता बढ़ाने में भी सरकारी ख़र्च की महत्वपूर्ण भूमिका है.

“सर्वे में सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है, जिससे कोविड के असर से निटने में सहायता मिलेगी और एसडीजी हासिल करने में भी. हमने एक बहुत बड़ी प्रोत्साहन योजना की भी बात की है जो लोगों, अति-लघु, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सहायता करेगा. क्षेत्रीय सहयोग की भी बात की गई है जैसे सार्क में किया जा रहा है, प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर.”

समावेशी और टिकाऊ नीतियों की ज़रूरत

सर्वे बताता है कि सभी देशों को इन चुनौतीपूर्ण हालात से सबक़ लेकर अपने आर्थिक विकास की रणनीतियों को अधिक समावेशी, टिकाऊ अर्थव्यवस्था और पृथ्वी के अनुकूल बनाने के अवसर के रूप में देखना चाहिए. 

इस क्षेत्र के देश ना सिर्फ़ एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से गुज़र रहे हैं बल्कि एक जलवायु आपातकाल का भी सामना कर रहे है. यह एमरजेंसी स्थाई, दूरगामी और शायद महामारी से भी अधिक विनाशकारी है. 

संयुक्त राष्ट्र की अवर-महासचिव और आयोग की कार्यकारी सचिव, अरमिदा अलिसजहाबाना ने कहा, “नीति निर्माताओं को लोगों और पृथ्वी से नज़र नहीं हटानी चाहिए. आर्थिक राहत पैकेज तैयार करते समय हर निर्णय में सामाजिक समावेश और पर्यावरणीय स्थिरता का ध्यान रखा जाना चाहिए.” 

रिपोर्ट दर्शाती है कि इस क्षेत्र में दशकों से चली आ रही उच्च आर्थिक वृद्धि के साथ ही आय और अवसर की असमानता बढ़ी है और जलवायु पर हानिकारक असर पड़ा है.

इससें मौजूदा और भावी पीढ़ियों के लिए ख़तरा पैदा हो रहा है.

निरंतर खपत और उत्पादन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि हुई है जिससे इस इलाक़े की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ रही है.

इसके अतिरिक्त 240 अरब डॉलर की वार्षिक सब्सिडी मिलने से क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कोई कमी नहीं आई है.

क्षेत्रीय सहयोग महत्वपूर्ण 

सर्वेक्षण में  बेहतर नीतियों के ज़रिए सतत खपत और उत्पादन, स्वच्छ उत्पादन व कम सामग्री के इस्तेमाल वाली जीवन शैली की ओर बदलाव करने का आहवान किया गया है.

इसके लिए सभी पक्षकारों, विशेष रूप से सरकारों, व्यवसायों और उपभोक्ताओं को टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के साथ अपने लक्ष्यों और कार्यों को जोड़ने की आवश्यकता है. 

रिपोर्ट में जलवायु आपातकाल से निपटने के लिए महत्वाकांक्षा बढ़ाने और क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत बनाने का आग्रह किया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों को जलवायु-संबंधित मानकों, कार्बन मूल्य निर्धारण और क्षेत्रीय स्तर पर स्थाई खपत और उत्पादन स्वरूप लागू करने के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए. 

वर्ष 1947 के बाद से हर साल प्रकाशित होने वाला यह सर्वेक्षण, एशिया-प्रशांत क्षेत्र की प्रगति पर सबसे लंबे समय से चली आ संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों में गिना जाता है है.