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कोविड-19: भेदभाव के ख़तरों के प्रति चेतावनी

अमेरिकी नौसेना का चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराने वाला जहाज़ न्यूयॉर्क शहर के बंदरगाह पहुंचा है ताकि शहर के अस्पतालों पर बोझ को कम किया जा सके.
Ali Issa
अमेरिकी नौसेना का चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराने वाला जहाज़ न्यूयॉर्क शहर के बंदरगाह पहुंचा है ताकि शहर के अस्पतालों पर बोझ को कम किया जा सके.

कोविड-19: भेदभाव के ख़तरों के प्रति चेतावनी

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या अनेक आधारों पर होने वाले भेदभाव के कारण बढ़ सकती है. इसके मद्देनज़र सरकारों से नस्लीय समानता और बराबरी के लिए संकल्प को मज़बूत बनाने की पुकार लगाई गई है. 

अफ़्रीकी मूल के लोगों के लिए विशेषज्ञों के समूह ने कहा है कि संस्थागत भेदभाव की वजह से स्वास्थ्य देखरेख और उपचार के दौरान पहले से मौजूद असमानताएँ और ज़्यादा गहरी हो सकती हैं जिनसे अफ़्रीकी मूल के लोगों में बीमारी के मामले व मौतों की दर बढ़ने की आशंका है. 

वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष अहमद रीड ने एक वक्तव्य में कहा कि देशों द्वारा स्फूर्तिवान कार्रवाई के बावजूद अफ़्रीकी मूल के लोगों के सामने पेश ख़तरों की अभी तक शिनाख़्त नहीं की गई है.

उन्होंने कहा कि यह समझना होगा कि नस्लीय भेदभाव और अंतर्निहित पूर्वाग्रह किस तरह नीतिगत उपायों में जगह बना सकते हैं. 

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समूह के सदस्यों ने दो विषयों पर ख़ासतौर पर चिंता जताई है: उच्च पदों पर अफ़्रीकी मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व ना होगा, और डेटा एकत्र करने में विवेकशीलता और जोखिम के बीच संबंध का होना. 

उन्होंने कहा कि अगर ध्यान ना दिया जाए तो मोटे तौर पर तटस्थ लगने वाली कार्रवाई भी नस्लीय पूर्वाग्रहों को मज़बूत कर सकती है.

उनके मुताबिक अफ़्रीकी मूल के लोगों की कमज़ोरियों पर केंद्रित कोई सार्वजनिक स्वास्थ्य संरक्षण उपाय अभी तक देखने को नहीं मिले हैं.

यूएन विशेषज्ञों की ओर से जारी बयान में भारी दबाव में काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों और स्थानीय नेतृत्व के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाने की ज़रूरत को रेखांकित किया गया है.

उनके मुताबिक इससे गंभीर समय के दौरान नस्लीय भेदभाव की रोकथाम करने में मदद मिलेगी. 

वर्किंग ग्रुप ने बताया है कि सेवा प्रदान करने वाले उद्योगों में अफ़्रीकी मूल के लोग बड़ी संख्या में काम करते हैं और घनी आबादी वाले समुदायों में रहते हैं.

उन्हें अक्सर भोजन और जल हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जिनसे जोखिम बढ़ता है. 

विशेषज्ञों ने जेलों, शरणार्थी कैंपों में अफ़्रीकी मूल के लोगों की संख्या ज़्यादा होने पर भी चिंता जताई है. ऐसे स्थानों पर संक्रमण के तेज़ी से फैलने का ख़तरा होता है. 

उन्होंने कहा कि इस संकट के दौरान अफ़्रीकी मूल के लोग अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं लेकिन उनकी उपलब्धता का अर्थ यह नहीं लगाना चाहिए कि उनकी परवाह करने की ज़रूरत नहीं है. 

उन्होंने कहा कि जिन देशों में इस महामारी के दौरान सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action), पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आपराधिक न्याय और प्रशासन संबंधित मानवाधिकारों क़ानूनों को निलंबित किया जा रहा है वहां अफ़्रीकी मूल के लोग ख़ास तौर पर प्रभावित होंगे, जिसका असर संकट के गुजर जाने के बाद भी रहेगा.  

वर्ष 2001 में दक्षिण अफ़्रीका में नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव और विदेशियों के प्रति नापसंदगी व डर के मुद्दे पर वैश्विक सम्मेलन पर एक घोषणापत्र पारित किया गया था.

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने इस घोषणा के अंतर्गत इस वर्किंग ग्रुप का गठन किया था जिसके पॉंच सदस्य संयुक्त राष्ट्र का स्टाफ़ नहीं हैं और ना ही उन्हें संगठन से मानदेय मिलता है.