भारत में आंतरिक प्रवासियों की दशा पर चिंता, एकजुटता की पुकार
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मशेल बाशेलेट ने कहा है कि भारत में कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए लॉकडाउन यानी तालंबादी की अचानक हुई घोषणा से बुरी तरह प्रभावित हुए लाखों अंदरूनी प्रवासियों की विशाल तकलीफ़ें देखकर वो बहुत चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि इन कामगारों को लॉकडाउन की घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर अपने कामकाज के स्थानों को छोड़कर अपने घरों व मूल स्थानों के लिए रवाना होना पड़ा क्योंकि उनके पास भोजन व घर का किराया देने के लिए धन नहीं बचा था.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने गुरूवार को कहा, “भारत में लॉकडाउन को असरदार तरीक़े से लागू करना वहाँ की बहुत बड़ी आबादी और उसके घनत्व के कारण एक बहुत विशाल चुनौती है. हम सभी उम्मीद करते हैं कि वायरस के फैलाव पर क़ाबू पा लिया जाएगा.”
साथ ही उन्होंने इस स्थिति का सामना करने के लिए किए गए उपायों का स्वागत किया लेकिन ये भी कहा कि अभी गंभीर चुनौतियाँ सामने रहेंगी.
🇮🇳#India: UN Human Rights Chief @mbachelet distressed over plight of millions of internal migrants affected by the lockdown. She welcomes measures taken to limit #COVID19 impact but pervasive challenges remain 👉 https://t.co/uZLkevTM5V pic.twitter.com/YxJf60ynMf
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मिशेल बाशेलेट का कहना था, “हालाँकि ये सुनिश्चित करना बेहद अहम होगा कि कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए किए जा रहे उपाय लागू करने में कोई भेदभाव ना हो और ना ही उनसे मौजूदा असमानताओं और नाज़ुक परिस्थितियों में कोई इज़ाफ़ा हो.”
ध्यान रहे कि भारत में कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए लॉकडाउन लागू करने की घोषणा के बाद बहुत से दिहाड़ी मज़दूरों के पास कोई कामकाज व रोज़गार नहीं बचा था और उनके पास अपने घरों के किराए और खाने-पीने का सामान ख़रीदने के लिए भी कोई धन नहीं बचा था.
शहरी इलाक़ों में ख़ुद का भरण पोषण करने में नाकाम रहने और सार्वजनिक यातायात के साधनों के बिल्कुल बन्द हो जाने के बाद, लाखों प्रवासी जन अपने गाँवों और मूल स्थानों तक पहुँचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए पैदल ही चल निकले, इनमें पुरुष महिलाएँ और बच्चे सभी थे. उनमें से अनेक लोगों की तो यात्रा के दौरान ही मौत हो गई.
भारत के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वायरस का फैलाव रोकने के प्रयासों के तहत 29 मार्च को सभी राज्य सरकारों को ये आदेश जारी किया कि अपने घरों और मूल स्थानों को जाने वाले प्रवासी जन को रोकें और कम से कम दो सप्ताह के लिए उन्हें एकांतवास में रखें.
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के 31 मार्च को दिए उस निर्णय का भी स्वागत किया जिसमें प्रवासी जन के लिए समुचित मात्रा में भोजन, पानी, बिस्तर और अन्य ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति व सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में ये भी कहा है कि इन प्रवासियों के लिए बनाए गए आश्रय स्थलों में मनोवैज्ञानिक सहायता भी उपलब्ध कराई जाए, साथ ही इन आश्रय स्थलों का संचालन सुरक्षा बलों के बजाय आम स्वयंसेवकों द्वारा होना चाहिए, साथ ही सभी प्रवासियों के साथ मानवीय बर्ताव होना चाहिए.
मिशेल बाशेलेट ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के आदेश और इसके क्रिन्यान्वयन से नाज़ुक हालात का सामना कर रहे प्रवासी जन के लिए सुरक्षा और उनके अधिकार सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. इनमें से बहुत से लोगों के जीवन को लॉकडाउन के कारण पैदा हुई परिस्थितियों ने हिलाकर रख दिया है और उनके लिए बेहद तकलीफ़देह हालात पैदा हो गए हैं.“
भारत सरकार ने स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए अनेक उपायों की घोषणा की है, जिनमें ज़रूरतमंद लोगों के लिए भोजन वितरण, नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों लिए रोज़गार व रक़म अदायगी जारी रखने और मकानमालिकों को अपने किराएदारों से किराया नहीं वसूलने जैसे आदेश शामिल हैं.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “इन तमाम उपायों के बावजूद अभी बहुत ज़्यादा किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि हमारी आँखों के सामने मानव त्रासदी आकार लेती नज़र आ रही है.”
उन्होंने कहा कि स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए किए जा रहे उपायों में प्रवासी महिलाओं के हालात का ख़ास ध्यान रखे जाने की ज़रूरत है. महिलाएँ उन वर्गों में शामिल हैं जो आर्थिक रूप से बहुत नाज़ुक हालात में हैं और जिन पर ऐसी स्थिति का बहुत ज़्यादा असर पड़ता है.
सम्मान व मानवीय बर्ताव
इस सप्ताह के आरंभ में ऐसी तस्वीरें सामने आई थीं जिनमें पुलिस कर्मचारी लॉकडाउन व सामाजिक दूरियाँ बनाने के आदेशों का उल्लंघन करने के आरोप में प्रवासी जन सहित आम लोगों की डंडों से पिटाई कर रहे थे. कुछ प्रवासी जन पर तो साफ़-सफ़ाई करने वाले रसायनों का भी छिड़काव किया गया था.
मानवाधिकार उच्चायुक्त का कहना था, ”ऐसे हालात में पुलिस सेवाओं पर बने दबाव को हम समझते हैं, लेकिन अधिकारियों को धैर्य दिखाना होगा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में उन्हें बल प्रयोग व मानवीय बर्ताव के अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करना होगा.”
अनेक राज्यों में पुलिस बलों को ऐसे आदेश जारी किए गए हैं कि वायरस पर क़ाबू पाने के प्रयासों में वो आम लोगों पर बल प्रयोग ना करें.
मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने ऐसे उपायों पर खेद भी प्रकट किया है जिनसे समाज के कुछ तबकों पर कलंकित प्रभाव छोड़े जा रहे हैं, जिनमें प्रवासी जन भी शामिल हैं.
कुछ राज्यों में उन लोगों पर मोहरें लगाने का चलन भी सामने आया है जिन्हें घरों में ही एकांतवास में रखने को कहा गया है, ऐसा कथित रूप से उन्हें घरों में ही सीमित रखने के ले किया गया है, साथ ही कुछ ऐसे लोगों के घरों के बाहर नोटिस भी चिपकाए गए हैं जिन्हें उनके घरों में ही एकांतवास में रखा गया है.
ये बहुत अहम है कि ऐसे उपायों को निजता के अधिकार की कसौटी पर कसा जाए और ऐसे उपाय लागू करने से बचा जाए जिनके कारण लोगों को उनके समुदायों में कलंकित होने जैसे हालात का सामना करना पड़े, जबकि वो लोग अपनी सामाजिक हैसियत व अन्य कारणों से पहले ही नाज़ुक हालात का सामना कर रहे हों.
मिशेल बाशेलेट ने कहा, ”ये बहुत अहम है कि ऐसे उपायों को निजता के अधिकार की कसौटी पर कसा जाए और ऐसे उपाय लागू करने से बचा जाए जिनके कारण लोगों को उनके समुदायों में कलंकित होने जैसे हालात का सामना करना पड़े, जबकि वो लोग अपनी सामाजिक हैसियत व अन्य कारणों से पहले ही नाज़ुक हालात का सामना कर रहे हों.”
एक ऐसे देश में, जहाँ विश्व की कुल आबादी का लगभग छठा हिस्सा बसता हो, वहाँ कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए केवल सरकार के प्रयास ही काफ़ी नहीं होंगे, बल्कि आम आबादी के भी सक्रिय उपायों की ज़रूरत है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भारत सरकार को सिविल सोसायटी व ग़ैर-सरकारी संगठनों के साथ भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जो पहले से ही ज़रूरतमंदों को सहायता मुहैया करा रहे हों.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “ये देश के भीतर एकता व एकजुटता का समय है. मैं सरकार को समाज के सबसे कमज़ोर तबक़ों तक पहुँचने के प्रयासों में भारत की जीवन्त सिविल सोसायटी की मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ ताकि मुश्किल की इस घड़ी में कोई भी पीछे ना छूट जाए.”