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कोविड-19: भारत में ‘लॉकडाउन’ से प्रवासी कामगारों पर भारी मार

भारत में अंतररष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सम्मानजनक कामकाज संबंधी मामलों की निदेशक, डागमार वॉल्टर
ILO India
भारत में अंतररष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सम्मानजनक कामकाज संबंधी मामलों की निदेशक, डागमार वॉल्टर

कोविड-19: भारत में ‘लॉकडाउन’ से प्रवासी कामगारों पर भारी मार

मानवीय सहायता

भारत में कोविड-19 का मुक़ाबला करने के प्रयासों के तहत 24 मार्च को घोषित 21 दिन के लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों और दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. दिहाड़ी पर काम करने वाले ज़्यादातर मज़दूर लम्बे समय तक तालाबंदी रहने की आशंका में बड़ी संख्या में अपने-अपने गांवों और स्थानों को वापस लौट पड़े. करफ़्यू की स्थिति होने के बावजूद हजारों प्रवासी मज़दूर सड़कों पर आ गए और पैदल ही अपने स्थानों के लिए चल निकले.
 

मीडिया ख़बरों के मुताबिक इनमें से अनेक जन तो घर पहुँचने के लिए 500 मील तक पैदल चलने को तैयार थे. इसके बाद प्रशासन ने उनकी यात्रा के लिए बसों का इंतज़ाम किया तो सार्वजनिक परिवहन अड्डों पर भीड़ उमड़ पड़ी, जिससे वायरस के फैलने की चिंताएं और बढ़ गईं.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को लॉकडाउन से हुई परेशानियों के लिए माफ़ी माँगते हुए कह चुके हैं कि लॉकडाउन करना आवश्यक था.

इस स्थिति के मद्देनज़र यूएन हिंदी समाचार ने भारत में अंतररष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सम्मानजनक कामकाज संबंधी मामलों की निदेशक, डागमार वॉल्टर से बात की...

प्रश्न: स्वास्थ्य संकट के रूप में शुरू हुए कोविड-19 को अब मानवीय संकट के रूप में अधिक देखा जा रहा है. भारत में तालाबंदी की घोषणा के बाद लाखों प्रवासी कामगारों के पैदल ही अपने गाँवों को लौटने की तस्वीरें सामने आईं हैं. इस पर आईएलओ की क्या राय है?

उत्तर: फ़िलहाल, कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक दूरी बनाने में सरकार को समर्थन देना सभी की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है. जन संचार और सोशल मीडिया चैनल संदेश प्रसारित करने में सहायता कर रहे हैं. हालाँकि, सड़क पर प्रवासी कामगारों की भीड़ से पता चलता है कि नाज़ुक परिस्थितियों वाले समुदाय शायद ये नहीं समझ पाए कि उनके इस तरह वापस जाने से उनके परिवार और अन्य आमजन के लिए  ख़तरा पैदा हो सकता है. 

रोकथाम पर सटीक जानकारी व सूचनाओं का उन तक पहुंचना बहुत ज़रूरी है, वो भी उन स्रोतों से जिन पर उन्हें भरोसा है और उनकी अपनी भाषाओं में. ऐसे में सामुदायिक और सामाजिक नेता, ठेकेदार, स्थानीय सरकारी अधिकारी, नियोक्ता और श्रमिक संघ - सभी की इसमें भूमिका बहुत अहम हो जाती है.

प्रश्न: कोविड-19 महामारी जैसी चुनौतियों का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या है, विशेष रूप से भारत में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों पर, जो पहले से ही कमज़ोर समूहों की श्रेणी में आते हैं?

उत्तर: आईएलओ पहले ही कह चुका है कि कोरोना वायरस महामारी केवल एक चिकित्सा संकट नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक संकट भी है. सभी तरह के उद्योगों ने पहले ही काम बंद कर दिया है, कामकाज के समय में कटौती की है और कर्मचारी हटाए गए हैं. अनेक छोटी उत्पादन इकाइयां और सेवा प्रदाता, पतन के कगार पर हैं और दुकानों व रेस्तराँ चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में, अक्सर सबसे पहले उन लोगों का रोज़गार ख़त्म हो जाता है जिनके रोज़गार अनिश्चित होते हैं - जैसे कि अनुबंध और आकस्मिक श्रमिक, प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक.

वर्तमान लॉकडाउन से न केवल श्रमिक बल्कि उनके परिवार भी प्रभावित होंगे, क्योंकि रोज़गार नहीं होगा तो धन भी मिलेगा. दिहाड़ी मज़दूरों और अनौपचारिक मज़दूरों की स्थिति सबसे ज़्यादा नाज़ुक होती है. कामकाज व रोज़गार के अवसरों की अनिश्चितता और शहरी क्षेत्रों में रहने की उच्च लागत के कारण प्रवासी श्रमिकों पर अपने मूल निवासों पर लौटने का दबाव रहता है.

प्रवासियों के पलायन से वायरस के प्रसार में वृद्धि का एक बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है. महामारी के लंबे समय तक प्रसार और बने रहने से समाज में ग़रीबी और असमानता के चक्रों में नाटकीय रूप से वृद्धि होगी. इसीलिए प्रवासी लॉकडाउन के दौरान जहाँ हों, वहीं, उनकी मदद करने करने की ठोस सलाह दी जाती है.

प्रश्न: बड़ी संख्या में शहरों से पलायन करते प्रवासी मज़दूरों की तस्वीरें देखी गई हैं और फिर उनके घर क़स्बों और गाँवों में लौटने के बाद कीटाणुनाशक दवाओं के छिड़काव की दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीरें भी सामने आईं. इससे इन ग्रामीणों के साथ ,वापस जाने पर कलंक और भेदभाव होने का भी डर है. इससे कैसे निपटा जा रहा है?

उत्तर: अभी तो, लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना ही हमारी प्राथमिकता है और अनेक देशों के अनुभव से मालूम होता है कि, सामाजिक दूरी बनाए रखना ही इस महामारी को फैलने से रोकने का सही तरीक़ा है. हम इस वक़्त आपातकाल की स्थिति में हैं.

केंद्र और राज्य सरकारों दोनों ने, कमज़ोर तबकों तक नक़द लाभ, अग्रिम पेंशन, सामाजिक सुरक्षा सहायता के रूप में आय राशन की व्यवस्था, खाद्य राशन, मज़दूरी संरक्षण, आश्रित आबादी के लिए भोजन और स्वास्थ्य सेवाएँ पहुंचाने की पहल की है.
इनके अलावा, उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच और जागरूकता ही कमज़ोर समूहों के बीच तनाव कम कर सकती है.

प्रश्न: अगर इनमें से कुछ ग्रामीण प्रवासी जन संक्रमित हुए तो ग्रामीण इलाक़ों में भी कोविड-19 फैलने का डर है. महामारी के इस असर को कम करने के लिए आईएलओ, सरकार के साथ मिलकर कैसे काम कर रहा है?

उत्तर: भारत में, हम कोविड-19 महामारी के प्रति अपनी प्रतिक्रिया में ‘एकल-यूएन’ के रुख़ का अनुसरण कर रहे हैं. हम अपनी संयोजित प्रतिक्रिया के ज़रिए संबंधित भारतीय घटकों का समर्थन रहे हैं और उनके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों तक पहुंच रहे हैं. साथ ही उन्हें विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय उपायों व कोविड-19 पर जागरूकता और भोजन, स्वच्छता, मज़दूरी संरक्षण के बारे में जानकारी देते हैं. आईएलओ विभिन्न घटकों, श्रमिकों, व्यवसायों और सरकार के साथ बातचीत करके स्थिति की बारीक़ी से निगरानी कर रहा है और तात्कालिक उपायों सहित प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा पर सभी संभव मार्गदर्शन मुहैया करा रहा है.  

प्रश्न: इस तरह की महामारी के दौरान इन मजदूरों के जीवन को प्रभावी रूप से सुरक्षित करने के लिए सरकार क्या कर सकती है?

उत्तर: आईएलओ ने तीन स्तंभों में कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिए देशव्यापी समन्वित और सुसंगत उपाय अपनाने की सलाह दी है:

• श्रमिकों के लिए रोज़गार और आय की रक्षा और सहायता - विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों, महिलाओं, वृद्धों, विकलांग श्रमिकों जैसे कमज़ोर समूहों के लिए 
• स्वास्थ्य, आवश्यक सेवाओं और कार्यस्थलों तक पहुँचने वाले श्रमिकों और स्वास्थ्य सेवाओं के फ्रंटलाइन श्रमिकों की रक्षा करना 
• व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और सूक्ष्म उद्यमों की रक्षा करना

इस स्थिति में आईएलओ के विभिन्न घटकों, सरकार, मालिकों और श्रमिकों के बीच प्रभावी सामाजिक संवाद तंत्र की बहुत ज़रूरत है. किसी भी कार्रवाई के प्रभावी होने के लिए, घटकों के बीच विश्वास क़ायम होना चाहिए और भरोसे के लिए परामर्श और सहयोग की आवश्यकता होती है. 

दूसरा महत्वपूर्ण आयाम अंतरराष्ट्रीय श्रम मानक (ILS) है जो वर्तमान स्थिति में अधिक महत्वपूर्ण है. ये स्थाई और न्यायसंगत रिकवरी के लिए आवश्यक नीति प्रतिक्रियाओं को तैयार करने का मज़बूत आधार प्रदान करता है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम मानक अर्थशास्त्र और विकास के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण के विचार को समन्वित करता है, और उत्तेजक मांग, व्यवसायों का समर्थन करने व श्रमिकों की रक्षा करने की आवश्यकताओं को संतुलित करता है. उदाहरण के लिए, शांति और सहनशीलता के लिए रोज़गार व निर्णय कार्य, रोज़गार नीति कन्वेंशन C.122, मज़दूरी कन्वेंशन का संरक्षण (C.95) कहता है कि यदि किसी मालिक का व्यवसाय ख़त्म हो जाता है तो उसके यहां काम करने वाले श्रमिक विशेषाधिकार प्राप्त लेनदार माने जाएंगे.