
कोविड-19: वूहान में दो महीने तक एकांतवास की आपबीती
कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए अनेक देशों ने हाल ही में लॉकडाउन यानी पूर्ण तालाबंदी लागू करने की घोषणा की है. जिसके कारण आमजन को काफ़ी समय अपने घरों पर ही गुज़ारना पड़ रहा है. चीन के वूहान प्रान्त को इस वायरस का जन्म स्थान माना जा रहा है और वहाँ लोगों को ख़ुद को एकांतवास में रखने का समय लगभग दो महीना रहा है. यूएन न्यूज़ ने वूहान के एक निवासी डीज़ी (परिवर्तित नाम) से यह जानने के लिए बातचीत की एकांतवास का सामना वो कैसे कर रही हैं. अनूदित साक्षात्कार के संपादित अंश...
जब तालाबंदी शुरू हुई तो कुछ चौंकाने वाला था, क्योंकि ये 23 जनवरी को शुरू हुआ, उसी दिन मैं अपने माता-पिता से मिलने के लिए उनके घर आई थी. दरअसल, कुछ सोचने-समझने के लिए समय ही नहीं मिला. मुझे महसूस हुआ कि ये बीमारी उस समय बहुत गंभीर रूप ले चुकी थी, लेकिन मैं ये अंदाज़ा नहीं लगा सकी कि ये स्थिति कितने लंबे समय तक चलेगी. उस समय मैंने सोचा कि तालाबंदी केवल कुछ सप्ताहों तक ही चलेगी.
जैसे-जैसे समय बीतता गया, तालाबंदी और भी ज़्यादा सख़्त होती गई. पहले एक-दो सप्ताहों के दौरान तो आमजन घरों से बाहर जाकर सब्ज़ियाँ व अन्य सामान ख़रीद सकते थे, और सुपर बाज़ार खुले होते थे. उसके बाद वायरस के ज़्यादा गंभीर मामले सामने आने लगे, ये सुझाव आए कि बुज़ुर्गों को घरों के अंदर ही सीमित रहना चाहिए, और वे बाहर बिल्कुल भी ना जाएँ.
ज़्यादातर लोगों को समुदाय से बाहर जाने या किसी को समुदाय के भीतर दाख़िल होने की इजाज़त नहीं थी, केवल डॉक्टरों, नर्सों और कुछ अन्य पास धारकों को अनुमति थी.
मानसिक व शारीरिक तैयारियाँ
मुझे याद है कि पहले दो-तीन दिनों के दौरान तो मैं अपने फ़ोन को 13 घंटों तक देखती रही. ये कहना सही होगा कि जागते समय, पूरा वक़्त मैं फ़ोन को देखती थी. मैं वायरस से संबंधित ख़बरें पढ़ती-देखती थी, क्योंकि उन दिनों वूहान प्रान्त में संक्रमण के मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे थे, और किसी को ये जानकारी नहीं थी कि वहाँ कितने मरीज़ हो चुके थे, या अस्पतालों में कितने बिस्तर उपलब्ध थे. इसलिए मैं काफ़ी घबरा भी रही थी.

तालाबंदी से पहले मेरा अवसाद के लिए इलाज चल रहा था और मैं उसके लिए दवाइयाँ खा रही थी. जब इस वायरस का संक्रमण फैला तो मैं दवाइयाँ नहीं ख़रीद सकी, इसलिए मैंने स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए कुछ अन्य तरीक़े अपनाने का निर्णय लिया. ज़्यादा व्यायाम करना, अपने चेहरे पर हर दिन ज़्यादा धूप सेकना और ऐसी पुस्तकें पढ़ना, जो मैं काफ़ी समय से सोच रही थी.
एकांतवास में रहने का समय अपेक्षा से कहीं ज़्यादा रहा, और मेरा ख़याल है कि ज़्यादातर लोग इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थे. पहले तो हमें लगा कि ये सप्ताह भर चलेगा, फिर एक पखवाड़ा, उसके बाद तो एक महीना हो गया, और अब तो दो महीने भी हो गए.
एक दिनचर्या का होना बहुत आवश्यक है, साथ ही नियमित गतिविधियाँ भी करते रहना. पुस्तक पाठन तो आसान है, और कोई संगीत वाद्य बजाना – कलात्मक गतिविधियों में शामिल होना, जिनसे आपको अच्छा महसूस हो, और जब आप इनमें ध्यान लगाएंगे तो आपका ज़हन अन्य समस्यायों से हट जाएगा.
लंबे समय तक परिवार के साथ
बहुत लंबे समय तक परिवार में इस स्थिति में रहना बहुत मुश्किल हो सकता है, मैंने अपने माता-पिता से मिलने के लिए क़रीब एक सप्ताह का समय सोचा था, लेकिन अब ये बहुत लंबा समय हो गया.
स्थान की क़िल्लत के कारण अगर कोई तंगी महसूस होती है तो उससे निपटने के लिए भी कुछ रास्ते निकाल लिए जाते हैं. मसलन, दिन के किसी ख़ास समय के दौरान, हम तीनों अलग-अलग कमरों मे रहेंगे, एक सदस्य लिविंग रूप में, दूसरा सदस्य अध्ययन रूप में और तीसरा व्यक्ति बेडरूम में रहकर पुस्तक पाठन कर सकता है या बाहर व्यायाम. इस तरह हर सदस्य को अपनी गतिविधियों के लिए अलग-अलग स्थान मिल सकता है.
सच कहूँ, मुझे लगता है कि एक साथ समय बिताने से हमे एक दूसरे को ज़्यादा प्रेम व अपनापन दिखाने का मौक़ा मिला है. मसलन, मेरे पिता अपने सिर के बाल कटवाने के लिए बाहर नहीं जा सके तो मुझे उनके बाल काटने का मौक़ा मिला. जब से मैं व्यस्क हुई तो मुझे अपने पिता के सिर के बाल काटने का मौक़ा पहली बार मिला, जिससे हम दोनों को बहुत ख़ुशी हुई.
संवाद की महत्ता
इस वायरस से हुई बीमारी के समाचार हर दिन हर समय चलते रहे हैं जिनमें विशेषज्ञ आमजन को ऐसी चिकित्सीय समस्याओं के बारे में बताते नज़र आए जिन पर उन्हें ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. इनमें मनोवैज्ञानिक सलाह भी शामिल थी.

स्थानीय टेलीविज़न चैनल – हूबेई टीवी ने स्वयंसेवकों के इंटरव्यू किए – ये दिखाने के लिए कि हम जैसे लोग इस स्थिति में क्या-क्या कर सकते हैं. इससे आमजन को ना केवल सकारात्मक समाचार मिले, बल्कि इससे ये भी नज़र आया कि आमजन के पास कितनी ताक़त है.
जहाँ तक हमारी कामकाजी टीम का सवाल है तो हम अपने स्वास्थ्य संबंधी स्थितियाँ हर रोज़ समूह में रिपोर्ट करते हैं. हम अपने समुदाय में ये भी पूछते हैं कि किसी को एक या दो सप्ताहों के दौरान किस तरह के भोजन की ज़रूरत है. साथ ही, अगर किसी वृद्ध व्यक्ति को दवाई की तत्काल ज़रूरत है तो समुदाय में से कोई व्यक्ति बाहर जाकर उनके लिए दवाई ख़रीद सकते हैं.
इंटरनेट पर बहुत सी जानकारी उपलब्ध है, लेकिन वहाँ बहुत सा नकारात्मक वातावरण भी है. इसलिए बहुत ज़रूरी है कि अपने प्रियजनों व दोस्तों के साथ ज़्यादा बातचीत की जाए. ये दौर गुज़र जाने के बाद भी हमें उनके साथ रहना है, या निकट संबध बनाए रखने हैं. इसलिए सोशल मीडिया व नैटवर्कों पर नज़र आने वाली नकारात्मक सामग्री पर ज़्यादा ध्यान ना दें.
अग्रिम मोर्चों पर काम करने वालों को सम्मान
हमें उन लोगों के लिए निश्चित रूप से सम्मान दिखाना व शुक्रिया अदा करना होगा जिन्हें अपने घरों पर ठहरने का मौक़ा नहीं मिल सकता क्योंकि वो प्रभावित लोगों की सेवा में लगे हैं. डॉक्टरों, नर्सों और सामुदायिक कार्यकर्ताओं की मदद के बिना, हम इस वायरस पर क़ाबू पाने में कामयाब नहीं हो सकते थे.
लेकिन हम भी ख़ुद को सुरक्षित रखकर एक तरह से पूरी स्थिति में सकारात्मक योगदान कर रहे हैं, सर्दी ज़ुकाम से बचें, बीमार ना पड़ें और अस्पताल ना जाएँ, और किसी के लिए भी बोझ ना बनें. और सबसे ज़्यादा अहम – अपने घर में ही ठहरे रहें.
हो सकता है कि जब इस बीमारी पर क़ाबू पा लिया जाएगा, हमें सामुदायिक कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों व चिकित्साकर्मियों से मिलने का मौक़ा मिलेगा, तब हम उन्हें पहले से कहीं ज़्यादा सम्मान दिखा सकेंगे.
जीवन के लिए बदला नज़रिया
इस अनुभव ने जीवन के बारे में मेरा नज़रिया ही बदल दिया है. मैं दो महीने घर में सीमित रही हूँ, और ऐसा लगता है कि दुनिया एक साथ सिमटकर छोटी और फैलकर बड़ी हो गई है. मेरा मतलब है कि मेरे चलने-फिरने का दायरा छोटा हो गया है, लेकिन मैं फिर भी ख़ूब जानकारी हासिल कर सकती हूँ.
अब मुझे संक्रामक बीमारियों के बारे में ज़्यादा जानकारी है, साथ ही मेरी ख़ुद की स्वास्थ्य आदतों के बारे में भी. मेरे परिवार के सदस्यों के साथ मेरा रिश्ता अब पहले से कहीं ज़्यादा घनिष्ट हो गया है. साथ ही मैंने कुछ पुराने दोस्तों के साथ भी फिर से संपर्क बना लिया है, जिनके साथ कई वर्षों से मेरा संपर्क टूट गया था.
हमने ये भी देखा है कि, वायरस के शुरुआती दिनों से, बहुत से लोग स्वैच्छिक सेवाएँ दे रहे हैं, ऐहतियाती सामग्री देने के साथ-साथ ज़रूरतमंद लोगों की मनोवैज्ञानिक मदद करने तक. ये देखकर मुझे ऐसा लगता है कि ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनकी तरफ़ शायद पहले मेरा ध्यान भी नहीं जाता था.
और निजी रूप में, कुछ भावनात्मक समस्याओं का सामना करने वाली एक इंसान के रूप में, ये समय आराम करने और अध्ययन करने का रहा है. आरंभिक दिनों में तो मैं असहाय महसूस कर रही थी, लेकिन अब मैं आज़ादी से चलने-फिरने की सुविधा ख़त्म हो जाने की स्थिति को स्वीकार कर रही हूँ. और अगर भविष्य में फिर ऐसा ही कुछ होता है तो, मेरा ख़याल है कि मैं उसका मुक़ाबला कर सकूंगी.