जल की बूंद-बूंद को सहेजा जाना ज़रूरी

बाढ़, भारी बारिश, सूखा और पिघलते हिमनद...जलवायु परिवर्तन के कई बड़े संकेत स्पष्ट रूप से जल पर आधारित हैं. इस वर्ष विश्व मौसम विज्ञान दिवस पर यूएन की मौसम विज्ञान एजेंसी ने जल और जलवायु के आपसी संबंध को रेखांकित करते हुए जल संबंधी ऑंकड़ों की बेहतर उपलब्धता सुनिश्चित करने की पुकार लगाई है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस पर अपने संदेश में कहा है कि जलवायु और जल में अटूट संबंध है और दोनों का ही टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन और आपादा जोखिम को कम करने पर वैश्विक लक्ष्यों को पाने के प्रयासों में केंद्रीय महत्व है.
उन्होंने कहा है कि 21वीं सदी की सबसे मूल्यवान चीज़ों में जल शामिल है. राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और पनबिजली सेवाएं इस मंत्र के साथ हमारे प्रयासों के मूल में होंगी – हर बूंद की गिनती कीजिए, हर बूंद अहम है.
#WorldMetDay and #WorldWaterDay: Climate and Water.We feel the effects of #climatechange through water: more floods, droughts, glacier melt and sea level rise. It respects no geographical boundaries#ClimateAction demands same commitment as #Coronavirushttps://t.co/CYoSpRQdEm pic.twitter.com/463E97GQcp
WMO
मौसम के बदलते मिज़ाज से उसका पूर्वानुमान लगा पाना कठिन होता जा रहा है जिसके कारण जल संसाधनों और उनकी उपलब्धता पर दबाव बढ़ेगा. इससे टिकाऊ विकास और सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा उत्पन्न होने की आशंका है.
अप्रत्याशित मौसम के प्रभावों को विश्व मौसम विज्ञान संगठन की नई रिपोर्ट, ‘Statement on the State of the Global Climate in 2019’, में विस्तार से बताया गया है जो 10 मार्च को प्रकाशित हुई थी.
अध्ययन के मुताबिक पर्यावरण से जुड़े हर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का भारी असर हो रहा है, साथ ही विश्व आबादी का स्वास्थ और रहन-सहन भी प्रभावित हुआ है.
वर्ष 2019 में दुनिया के कई हिस्सों में चरम मौसम की घटनाएं व्यापकता और स्तर के नज़रिए से अभूतपूर्व थीं.
भारत में लोगों को मॉनसून के दौरान भारी बारिश व जान-माल को क्षति पहुंचाने वाली बाढ़ का सामना करना पड़ा. जबकि ऑस्ट्रेलिया के लिए यह सबसे शुष्क साल साबित हुआ.
मोज़ाम्बीक़ में और अफ़्रीका के पूर्वी तटवर्तीय क्षेत्रों में चक्रवाती तूफ़ान इडाई से व्यापक पैमाने पर तबाही देखी गई.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने इन घटनाओं की आवृत्ति और उनसे होने वाली तबाही के मद्देनज़र जल पूर्वानुमान, निगरानी और आपूर्ति प्रबंधन पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है.
इससे जल की उपलब्धता बहुत ज़्यादा, बहुत कम होने या प्रदूषित जल जैसी समस्याओं से निपटने में सहायता मिलेगी.
बेहतर ऑंकड़ों के ज़रिए जल परियोजनाओं जैसे जलविद्युत संयंत्रों को मूर्त रूप देने में मदद मिलेगी; पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और समाज पर जल संसाधन प्रबंधन के असर को समझना आसान होगा; और इससे – बाढ़, सूखा, प्रदूषण के कारकों - जैसे जोखिमों से लोगों, संपत्ति व पारिस्थितिकी तंत्रों का बेहतर ढंग से बचाव करने में मदद मिलेगी.
संभावना जताई गई है कि जल संबंधी ज़रूरतें आने वाले दिनों में बढ़ेंगी और उन्हें पूरा करने के लिए मुश्किल निर्णय लेने होंगे, विशेषकर संसाधनों के आबंटन के विषय में.
इस उद्देश्य से यूएन मौसम विज्ञान संगठन ने जलवायु और जल सेवाओं में नज़दीकी सहयोग की अहमियत को रेखांकित किया है.
जल पूर्वानुमान, निगरानी और प्रबंधन क्षमता फ़िलहाल पुख़्ता नहीं है और मौजूदा ज़रूरतों के मद्देनज़र अपर्याप्त है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के प्रमुख पेटेरी टालस के लिए यह स्थिति चिंता का सबब है, “यह चिंताजनक है कि स्वच्छ जल और साफ़-सफ़ाई से जुड़ा टिकाऊ विकास का छठा लक्ष्य अपनी मंज़िल से बहुत दूर है.”
“दुनिया को वही एकता और संकल्प जलवायु कार्रवाई और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए दिखाने की ज़रूरत है जैसी कोरोनावायरस महामारी पर क़ाबू पाने के लिए दिखाई गई है.”
विश्व मौसम विज्ञान संगठन यूएन वॉटर जैसे संयुक्त राष्ट्र के साझीदार संगठनों के साथ मिलकर काम करने के लिए संकल्पित है और आपसी सहयोग से टिकाऊ विकास के छठे लक्ष्य पर कार्य को तेज़ी से आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है.