कोविड-19: वैक्सीन का प्रायोगिक परीक्षण शुरू, एकजुटता की पुकार
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने कहा है कि चीन द्वारा कोविड-19 के जैनेटिक चरित्र के बारे में जानकारी साझा करने के 60 दिनों के भीतर इस वायरस के इलाज की वैक्सीन का प्रायोगिक परीक्षण (ट्रायल) शुरू हो गया है. संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने बुधवार को इसे “एक असाधारण उपलब्धि” क़रार देते हुए विश्व भर से उसी तरह की एकजुटता की भावना दिखाने का आग्रह किया जो ईबोला पर क़ाबू पाने में नज़र आई थी.
महानिदेशक ने बुधवार को जिनीवा में पत्रकारों के साथ दैनिक प्रेस वार्ता में कहा कि कोविड-19 के संक्रमण के दो लाख से ज़्यादा मामलों की पुष्टि हुई है और आठ हज़ार से कुछ ज़्यादा मरीज़ों की मौत होने की ख़बरें हैं.
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WHO
उन्होंने विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि चूँकि कोरोनावायरस की वैक्सीन तैयार करने में अलग-अलग और छोटे स्तरों पर परीक्षणों से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होगा, इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने साझीदारों के साथ मिलकर तमाम देशों में बिना परीक्षण वाले इलाजों का एक तुलनात्मक अध्ययन आयोजित कर रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने कहा, “इस वृहद अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से भरोसेमंद आँकड़े एकत्र किए जाएंगे जिनमें पता चल सकेगा कि कौन सा इलाज सबसे ज़्यादा प्रभावशाली साबित हुआ. हमने इस अध्ययन को ‘सॉलिडैरिटी ट्रायल’ यानि ‘एकजुटता परीक्षण’ का नाम दिया है.”
उन्होंने बताया कि अभी तक अर्जेंटीना, बहरीन, कैनेडा, फ्रांस, ईरान, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्विटज़रलैंड और थाईलैंड ने इस तुलनात्मक अध्ययन में भाग लेने की पुष्टि कर दी है.
महानिदेशक ने कहा, “इस महामारी पर क़ाबू पाने और इसे दबाने के लिए देशों को मरीज़ों को अलगाव में रखने, उनकी सही जाँच करने, उनका इलाज करने और संक्रमण फैलाव के स्रोत का पता लगाने की रणनीति पर अमल करना होगा.”
“अन्यथा संक्रमण की श्रंखला निचले स्तर पर सक्रिय रह सकती है और जब सामाजिक अलगाव या इंसानों के बीच दूरियाँ रखने पर लगा प्रतिबंध हटेगा तो ये संक्रमण फिर से सिर उठा सकता है.”
पानी की अनजान गहराई!
कोरोनावायरस से फैली बीमारी कोविड-19 को विश्वव्यापी महामारी परिभाषित कर दिए जाने के एक सप्ताह के बाद इसके संक्रमण के मामले विश्व भर में बढ़ रहे हैं.
दुनिया भर में कुल छात्रों की लगभग आधी संख्या स्कूल नहीं जा पा रही है, अभिभावकों को जहाँ तक संभव हो अपने कामकाज के स्थानों से दूर रह कर काम करना पड़ रहा है, सीमाएँ बंद कर दी गई हैं और जीवन उथल-पुथल से भर गया है.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरिएटा फ़ोर ने कहा है, “ये हम सभी के लिए पानी की अनजान गहराई जैसा दौर है."
"यूनीसेफ़ में हम एक नए वायरस का मुक़ाबला कर रहे हैं, भ्रान्तियाँ दूर कर रहे हैं और ग़लत सूचनाओं के फैलाव से जूझ रहे हैं, और ऐसा अपने स्टॉफ़ व ख़ुद के परिवारों की देखभाल करते हुए किया जा रहा है.”
हैनरिएटा फ़ोर ने कहा कि यूनीसेफ़ प्रभावित देशों में सटीक सूचनाएँ प्रसारित करके समुदायों में कोरोनावायरस के फैलाव की रोकथाम में मदद कर रहा है.
इनमें परिवारों को सुरक्षित रखना और बच्चों, शिक्षा और सामाजिक सेवाओं पर इस वायरस के संक्रमण के प्रभाव को कम करने के तरीक़ों के बारे जानकारी मुहैया कराकर किया जा रहा है.
“और पहले से भी कहीं ज़्यादा हम अपना मिशन जारी रखने के लिए अपने दानदाताओं पर निर्भर हैं. ये मिशन ख़ासतौर से उनके लिए है जिनके पास कुछ भी संसाधन नहीं है और इस कठिन दौर में जिनका अपना कोई नहीं है.”
यूएन सचिवालय
ऐसे में जबकि विश्व टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई दशक शुरू कर रहा है, आर्थिक व सामाजिक परिषद (इकोसॉक) की अध्यक्षा मोना जूल ने ज़ोर देकर कहE है, “हमें ये हमेशा ही सुनिश्चित करना होगा कि लोगों की सुरक्षा व स्वास्थ्य हमेशा हमारी पहली प्राथमिकता हो.”
इसलिए कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र उन्होंने यूएन75 का यूथ प्लैनेरी सत्र और इकोसॉक का यूथ फ़ोरम स्थगित करने का निर्णय किया है.
साथ ही उन्होंने अगले आठ सप्ताहों के दौरान होने वाली इकोसॉक की तमाम बैठकें भी स्थगित किए जाने का प्रस्ताव रखा है.
इकोसॉक की अध्यक्षा मोना जूल ने कहा, ”स्थिति में बहुत तेज़ी से बदलाव को देखते हुए ये स्पष्ट है कि हमें लचीलापन दिखाने की ज़रूरत है.”
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि आर्थिक व सामाजिक परिषद (इकोसॉक) टैक्नॉलॉजी के प्रयोग के ज़रिए विभिन्न विकल्पों और समाधानों पर ग़ौर कर रही है.
इस बीच यूएन महासचिव के प्रवक्ता ने घोषणा की है कि वो दैनिक प्रेस वार्ता भी मुख्यालय से दूर रहते हुए ही करेंगे.
उधर विएना में भी यूएन सुरक्षा व संरक्षा सेवा ने ख़बर दी है कि वहाँ का 95 प्रतिशत स्टाफ़ टैलीकम्यूटिंग यानी अपने घरों से या अन्य स्थानों से काम कर रहा है.
घर: ‘जीवन-मृत्यु की स्थिति’
साथ ही दुनिया भर में तमाम देशों की सरकारें कोविड-19 के फैलाव को रोकने के उपायों के तहत लोगों से अपने घरों तक सीमित रहने पर निर्भर कर रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषज्ञ ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि उनके बारे में भी सोचा जाना चाहिए जिनके पास अपना घर नहीं है.
पर्याप्त आवास के मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर लीलानी फ़रहा ने कहा कि ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि बेघर लोगों को भी समुचित आवास उपलब्ध हो.
उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में घर एक अग्रिम मोर्च बनकर उभरा है.
उन्होंने बताया कि विश्व भर में लगभग एक अरब 80 करोड़ लोग आवासहीनता और अपर्याप्त आवास के हालात में रहते हैं, बहुत से लोग भीड़ भरी परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं जिन्हें समुचित पानी और स्वच्छता के साधन उपलब्ध नहीं हैं. इन हालात के कारण उनकी स्थिति बहुत नाज़ुक हो जाती है.
विशेष दूत ने तमाम देशों की सरकारों से आग्रह किया कि कोरोनावायरस महामारी के ख़िलाफ़ समुचित सुरक्षा मुहैया कराने के प्रयासों के तहत सभी लोगों को पर्याप्त आवास मुहैया कराने का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए असाधारण उपाय करें.
उन्होंने कहा कि कुछ देशों ने तो पहले से ही कुछ ठोस उपाय किए हैं.
इनमें वायरस से प्रभावित लोगों को किन्हीं कारणों से जबरन घर ख़ाली करवाने पर रोक लगाना और आवास क़र्ज़ की अदायगी स्थगित करना भी शामिल है.
जबकि कुछ देशों ने बेघर लोगों के ठहरने के लिए आपात स्थलों में सुविधाएँ बढ़ाने के साथ-साथ स्वच्छता के साधनों की उपलब्धता भी बढ़ाई है.