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कोविड-19: विकलांग व्यक्तियों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत

सहायता कर्मी सीरिया के एक विकलांग हुए शरणार्थी की मदद करते हुए. डायबटीज़ के कारण उसकी टाँग जाती रही. कोविड-19 से बचाव में भी विकलांगों को विशेष सहायता की ज़रूरत है.
Jodi Hilton/IRIN
सहायता कर्मी सीरिया के एक विकलांग हुए शरणार्थी की मदद करते हुए. डायबटीज़ के कारण उसकी टाँग जाती रही. कोविड-19 से बचाव में भी विकलांगों को विशेष सहायता की ज़रूरत है.

कोविड-19: विकलांग व्यक्तियों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत

स्वास्थ्य

विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर कैटालीना डेवन्डस ने आगाह करते हुए कहा है कि बहुत से विकलांग व्यक्ति बहुत नाज़ुक परिस्थितियों का सामना करते हुए जीवन जीते हैं, फिर भी कोविड-19 विश्व महामारी से बचने के उपायों के तहत अभी विकलांग व्यक्तियों को समुचित व पर्याप्त दिशा-निर्देश व सहायता उपलब्ध नहीं कराए गए हैं.

उन्होंने सोमवार को जिनीवा में कहा, “विकलांग व्यक्तियों को लग रहा है कि उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. जिन लोगों को भोजन ग्रहण करने, कपड़े पहनने और बदले व स्नान वग़ैरा करने के लिए अन्य व्यक्तियों की सहायता की ज़रूरत होती है, उनके लिए सामाजिक अलगाव व एकांतवास जैसे ऐहतियाती उपाय संभव ना हों.”

“इस तरह की सहायता विकलांग व्यक्तियों को जीवित रहने के लिए बहुत ज़रूरी है, इन लोगों के लिए संकट के दौरान सुरक्षित व अतिरिक्त सामाजिक संरक्षण उपाय किए जाते रहें.”

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने ज़ोर देकर कहा कि विकलांग व्यक्तियों को अन्य लोगों के संपर्क में आने व बीमारी की चपेट में आने से रोकने के लिए ज़रूरी है कि उनके निवास के लिए समुचित ठोस प्रबंध किए जाएँ. उन्हें घर से ही कामकाज करे की अनुमति दी जाए या फिर वेतन सहित छुट्टियाँ दी जाएँ ताकि उनकी आमदनी सुरक्षित रहे.

परिवार के सदस्यों और देखभाल करने वाले लोगों को भी पर्याप्त आवास की ज़रूरत हो सकती है ताकि वो इस महामारी से निपटने के प्रयासों के दौरा में विकलांग व्यक्तियों की समुचित देखभाल करना और उन्हें आवश्यक सहायता मुहैया कराना जारी रख सकें.

उन्होंने कहा, “विकलांग व्यक्तियों और उनके परिवारों को और भी ज़्यादा नाज़ुक हालात या ग़रीबी के कगार पर धकेल दिए जाने से बचाने के लिए अतिरिक्त वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना भी बहुत अहम है.”

“बहुत से विकलांग लोग ऐसी सेवाओं पर निर्भर होते हैं जिन्हें स्थगित कर दिया गया है और हो सकता है कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन व दवाइयों का भंडारण करने के लिए पर्याप्त धन ना हो या फिर सामान को घर पर मंगवाने के लिए होने वाले अतिरिक्त ख़र्च उठाने के लिए भी धन उपलब्ध ना हो.”

कैटालीना डेवन्डस ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि संस्थानों, मनोचिकित्सक सुविधाओं और कारागारों में विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों की स्थिति बहुत चिंताजनक है क्योंकि वहाँ उनके संक्रमित होने का बहुत ख़तरा है.

ये स्थिति विशेष रूप से किसी बाहरी निगरानी और स्वास्थ्य कारणों से आपात अधिकारों का इस्तेमाल करने से और भी ज़्यादा गंभीर हो जाती है.

“प्रतिबंध आवश्यकतानुसार व विकलांग व्यक्तियों की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही लागू किए जाएँ और सार्वजनिक स्वास्थ्य की हिफ़ाज़त के लिए ऐसे उपाय किए जाएँ जो कम से कम हस्तक्षेकारी हों.”

“विकलांग व्यक्तियों को उनके प्रियजनों के साथ संपर्क सीमित कर दिए जाने से संस्थानों में उनके साथ दुर्व्यवहार और उनकी अनदेखी होने की बहुत संभावना होती है.”

उन्होंने कहा कि तमाम देशों की ये बढ़ी हुई ज़िम्मेदारी है कि विकलांग व्यक्तियों की इस आबादी की ज़रूरतों पर ज़्यादा ध्यान दें क्योंकि आमतौर पर उनके साथ संस्थागत भेदभाव होता देखा गया है.

कोस्टारीका मूल की कैटालीना डेवन्डस को मानवाधिकार परिषद ने जून 2014 में विकलांक व्यक्तियों के अधिकारों पर विशेष रैपोर्टेयर नियुक्त किया था. कैटालीना डेवन्डस ने पिछले क़रीब 20 वर्षों से विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों व समाज में उनकी भागीदारी बढ़ाने के क्षेत्र में असरदार काम किया है.

इस दौरान उन्होंने विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय दानदाता संगठनों के साथ काम किया. उनकी कार्य प्राथमिकताओं में सभी विकलांग व्यक्तियों की सामाजिक व आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देना प्रमुख है. साथ ही मानव विविधता के एक हिस्से के रूप में विकलांग व्यक्तियों की विविधता को समझा व अपनाया जाए.

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.