मानवाधिकार: 'नस्लभेद व नफ़रत भी संक्रामक हत्यारे हैं'
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि कोरोनावायरस ने बेशक लाखों लोगों के बीच कुछ दूरियाँ बनाए रखने के लिए मजबूर करते हुए उन्हें सामाजिक रूप से अलगाव की परिस्थितियों में भेज दिया है, मगर ये वायरस लोगों को नस्लभेद के ख़िलाफ़ लड़ाई में एकजुट होने से नहीं रोक सकता.
मिशेल बाशेलेट ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को संबोधित करते हुए ये बात कही. वर्ष 2014 अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय दशक शुरू होने के बाद से इस मुद्दे पर हुई प्रगति पर चर्चा करने के लेने के लिए मानवाधिकार परिषद की ये ख़ास बैठक हुई थी.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने कहा, "कोविड-19 वायरस की ही तरह, नस्लभेद और स्वयं से भिन्न व विदेशी मूल के लोगों से नफ़रत करने की मनोवृत्ति भी एक संक्रामक क़ातिल है. मौजूदा संदर्भ में, इस परिषद में, एक दूसरे से दूरियाँ बनाए रखते हुए भी, हम सभी को एकजुट होकर सबकी भलाई के लिए काम करते रहना होगा. लेकिन मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त करने का हमारा संकल्प और पक्का इरादा पहले की ही तरह मज़बूत है."
भेदभाव रोककर, समावेशी बनें
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अफ्रीकी मूल के लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय दशक शुरू किया था. दुनिया भर में अफ्रीकी मूल के लोगों की संख्या लगभग 20 करोड़ है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने इस मंच को एक अनोखा प्लैटफ़ॉर्म क़रार देते हुए कहा कि ये समाज को महत्वपूर्ण योगदान देता है. इसी मंच से अफ्रीकी मूल के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने और समाजों में उनके पूर्ण समावेश करने के प्रयासों को भी समर्थन देता है.
मिशेल बाशेलेट ने कहा, "वास्तव में, पूरी दुनिया में, अफ्रीकी मूल के लोगों को असहनीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है. इनमें अनेक बेहद ग़रीब व अलग-थलग पड़े समूहों के लोग भी शामिल हैं. और ये भेदभाव इस मूल के सभी लोगों के साथ होता है चाहे वो दासता के शिकार रहे हों या फिर उन्होंने हाल के समय में प्रवासन किया हो."
संयुक्त राष्ट्र महासभा वर्ष 2020 के आख़िर में इस दशक के अंतरिम मध्यावधि समीक्षा करेगी. सदस्य देश भी प्रगति का जायज़ा लेंगे, कामयाब उपायों और परंपराओं को एक दूसरे के साथ साझा करेंगे और आगे की कार्रवाई के बारे में भी निर्णय लेंगे.
मिशेल बाशेलेट ने उम्मीद जताई कि अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए जल्द ही एक स्थाई फ़ोरम भी स्थापित किया जाएगा, साथ ही उनके अधिकारों के सम्मान के बारे में संयुक्त राष्ट्र का एक घोषणा-पत्र भी तैयार किया जाएगा: एक क़ानूनी रूप से बाध्य संधि के वजूद में आने की दिशा में ये पहला क़दम होगा.
इस बीच संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार कार्यालय इस अंतरराष्ट्रीय दशक के बारे में समन्वयक की भूमिका में सदस्य देशों, सिविल सोसायटी और यूएन एजेंसियों के साथ काम कर रहा है.
इस समन्वय की बदौलत ही अनेक उपाय शुरू किए गए हैं जिनमें भेदभाव के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय स्तर की कार्य योजनाएँ लागू करना, राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी और शिकायतों को दर्ज व दूर करने की व्यवस्था बनाना, एक वार्षिक फ़ैलोशिप कार्यक्रम शुरू करना शामिल है. इन कार्यक्रमों के ज़रिए 32 देशों के 80 लोगों को लाभ पहुँचा है.
कोविड-19 व मानवाधिकार परिषद
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि वैसे तो कोविड-19 के कारण मानवाधिकारों की रक्षा के उपायों में कोई रुकावट पैदा नहीं होगा, मगर इस बीमारी ने मानवाधिकार परिषद के ताज़ा सत्र पर कुछ असर ज़रूर डाला है.
मानवाधिकार परिषद ने गुरुवार को अपना सत्र शुक्रवार से आगे के दिनों के लिए स्थगित कर दिया था. ऐसा स्विस सरकार द्वारा कोविड-19 वायरस पर क़ाबू पाने के लिए शुरू किए उपायों के मद्देनज़र किया गया.
वर्ष 2020 के लिए मानवाधिकार परिषद की अध्यक्ष एलिज़ाबेथ टिशी - फ़िस्सलबर्गेर ने इस संदर्भ में कहा, "किसी महामारी के कारण परिषद का सत्र इस तरह कभी स्थगित नहीं किया गया. अलबत्ता तकनीकी कारणों से ऐसा कई बार हुआ इसलिए इस बारे में कोई तुलना नहीं की जा सकती. लेकिन मौजूदा स्थिति में ऐसा करना ही संवेदनशील, सही और ज़िम्मेदारी वाला क़दम हो सकता है."
ये मौजूदा सत्र स्थगित होने से पहले परिषद ने विशेष प्रक्रिया व्यवस्था के तहत 19 मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति कर दी थी, साथ ही इस सत्र के समय में ही ख़त्म होने वाले मानवाधिकार मैंडेट भी बढ़ा दिए गए.
विशेष प्रक्रिया व्यवस्था के तहत काम करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञ दुनिया भर में मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित विभिन्न परिस्थितियों में शोध करके सूचनाएँ व जानकारी एकत्र करते हैं. ये विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र से स्वतंत्र होकर काम करते हैं और उनके कामकाज के लिए उन्हें कोई वेतन या मेहनताना नहीं दिया जाता है.