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म्यांमार में लोकतंत्र है 'ढलान' पर, मानवाधिकार विशेषज्ञ की चेतावनी

म्यांमार के लिए नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ यैंगही ली.
UN Photo/Kim Haughton
म्यांमार के लिए नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ यैंगही ली.

म्यांमार में लोकतंत्र है 'ढलान' पर, मानवाधिकार विशेषज्ञ की चेतावनी

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ यैंगही ली ने कहा है कि म्यांमार में हर दिन हो रही लड़ाई, इंटरनेट पर नियंत्रण की घटनाएं और रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदियां दर्शाती है कि देश में लोकतांत्रिक शासन ढलान के रास्ते पर है.  

विशेष रैपोर्टेयर ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से एक अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल स्थापित करने का आग्रह किया है ताकि वर्ष 2011 के बाद से मानवता के विरुद्ध कथित अपराधों और कथित युद्धापराधों पर सुनवाई हो सके.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि 2017 में सरकारी सुरक्षा बलों के आक्रामक अभियान से जान बचाकर भागे रोहिंज्या समुदाय के लोगों के उत्पीड़न की घटनाओं की महज़ निगरानी करना पर्याप्त नहीं है.

उन्होंने कहा कि यही वो विषय है जिस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सिर्फ़ बात करने के बजा ठोस क़दम उठाने होंगे.

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उन्होंने अपना छह साल का कार्यकाल पूरा होने पर जिनीवा में मानवाधिकार परिषद को अपनी रिपोर्ट सौंपने के बाद बुधवार को एक प्रैस कांफ्रेंस को संबोधित किया.

उन्होंने गहरी चिंता जताते हुए कहा कि म्यांमार में सिविल सरकार ने लोकतांत्रिक शासन को बढ़ावा देने के लिए जो प्रयास किए हैं, वो पर्याप्त नहीं हैं.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि म्याँमार सरकार ने क़ानूनी सुधारों का रास्ता अपनाने के बजाय और भी ज़्यादा दमनकारी क़ानून पारित किए हैं जिनसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगा है.

“ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे पता चलता हो कि असैनिक सरकार लोकतंत्र के लिए अपने संकल्प के प्रति गंभीर है...लेकिन जब मैंने कहा कि अभी बहुत देर नहीं हुई है, इसलिए क्योंकि सरकार के पास अब भी बहुत ताक़त है, बशर्ते कि वो उसे सही मायनों में इस्तेमाल करना चाहे तो.”

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहुंचा मामला

म्यांमार में रोहिंज्या समुदाय के उत्पीड़न और पीड़ितों को इंसाफ़ के मुद्दे पर मानवाधिकार परिषद में निंदा प्रस्ताव के अलावा, उनके कथित जनसंहार का मामला अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायलय और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी उठ चुका है.

ये तनाव वर्ष 2017 में उस समय भड़का जब म्यांमार की सेना ने रोहिंज्या लोगों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर दमनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी.

म्यांमार की सेना को ततमादाव भी कहा जाता है. सेना का कहना है कि उसने ये दमनात्मक कार्रवाई अराकान रोहिंज्या साल्वेशन आर्मी के पृथकतावादियों द्वारा एक पुलिस और सुरक्षा चौकी पर किए गए घातक हमले के जवाब में शुरू की थी.

इस हिंसक कार्रवाई का नतीजा ये हुआ कि लगभग सात लाख रोहिंज्या लोग सुरक्षा के लिए बांग्लादेश पहुँच गए.

उनमें से अनेक लोगों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र जाँचकर्ताओं को बताया था कि उनके साथ बहुत क्रूर हिंसा और ज़़ुल्म हुआ है.

इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) की ओर से गांबिया ने म्यांमार के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला दर्ज करते हुए आरोप लगाया था कि मुस्लिम रोहिंज्या समुदाय के ख़िलाफ़ कथित रूप से जनसंहारक गतिविधियां की गईं. 

अन्य देश भी इस संबंध में चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं.

म्यांमार में प्रैस की आज़ादी के मुद्दे पर विशेष रैपोर्टेयर ने पत्रकारों पर लगी पाबंदियों की आलोचना की है.

इनमें विदेशी एजेंसियों के उन पत्रकारों पर लगी पाबंदी भी शामिल है जिन्होंने सरकारी सुरक्षा बलों द्वारा आम लोगों से कुली और मज़दूर के तौर पर काम लेने संबंधी गतिविधियों को उजागर किया था.

मानवाधिकार परिषद में विशेष रैपोर्टेयर की रिपोर्ट पर जवाब देते हुए म्यांमार ने कहा कि देश में लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रयास जारी हैं. साथ ही राष्ट्रीय मेलमिलाप की भावना को प्रोत्साहन देने, और नफ़रत भरी बोली व संदेशों पर लगाम कसने की कोशिशें हो रही हैं. म्यांमार में वर्ष 2020 मे्ं चुनाव भी होने है.   

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.