जलवायु परिवर्तन से जंग स्कूली छात्रों के संग

संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर व्यापक असर पड़ रहा है. इस विशालकाय चुनौती से निपटने में स्कूलों, छात्रों और शिक्षकों की क्या भूमिका हो सकती है और वे किस तरह नए और अभिनव समाधानों का हिस्सा बन सकते हैं? संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की एक पहल इसी दिशा में प्रयासों पर केंद्रित है.
संयुक्त राष्ट्र का यह कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले में शिक्षा को एक अहम हिस्सा बना रहा है जिसके ज़रिए छात्रों में ज्ञान के प्रसार से इस संकट की विकरालता और उसके दुष्प्रभावों से निपटे जाने पर बल दिया जा रहा है.
युगांडा के इमैकुलेट हार्ट स्कूल में छात्र नातुकुन्डा एदेत्रुडा का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में युवाओं की अहम भूमिका है.
उनका स्कूल 25 देशों में 258 शैक्षिक संस्थानों में शामिल है जो संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन के ‘एसोसिएटेड स्कूल्स नेटवर्क’ (ASPnet) के एक पायलट प्रोजेक्ट में शामिल है जिसके ज़रिए जलवायु परिवर्तन को स्कूली जीवन के हर पहलु में शामिल करने का प्रयास किया गया है.
इसके तहत उनके स्कूल में छात्र और शिक्षक टिकाऊ जीवन से जुड़ी विविध गतिविधियों में शामिल होते हैं - उदाहरण के तौर पर, गंदे पानी के कारण होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए फ़िल्टर बनाना.
नामीबिया का वाल्डॉर्फ़ स्कूल वृक्षारोपण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है ताकि स्कूली इमारतों से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सके जबकि कोस्टारिका के सेन्ट जूड स्कूल ने एयरकंडीशनरों को बदल कर पर्यावरण-अनुकूल समाधानों को अपनाया है.
इस मुहिम में हिस्सा लेने वाले स्कूलों ने अपने परिसरों को हरा-भरा बनाया है, जल, कचरा और ऊर्जा प्रबंधन की व्यवस्था बेहतर की है और स्कूली समुदाय के स्वास्थ्य कल्याण पर ज़ोर दिया जा रहा है. इससे पर्यावरण के प्रति स्कूली छात्रों व शिक्षकों में समझ बढ़ रही है और टिकाऊ जीवन व जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक दृष्टिकोण विकसित हो रहा है.
यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू में वर्ष 2016 से 2018 तक चला जिसके बाद ASPnet ने अपने सभी सदस्य संस्थानों – 180 देशों में 11 हज़ार 500 स्कूल – को ऐसे ही तरीक़ों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है.
यूनेस्को का यह कार्यक्रम जलवायु कार्रवाई को स्कूली जीवन का एक हिस्सा बनने की अहमियत को दर्शाता है. यूएन एजेंसी ने स्कूलों के लिए ‘गैटिंग क्लाइमेट-रेडी’ नामक एक गाइड को विकसित किया है.
ब्राज़ील के रियो डि जनेरियो के कॉलेजियो इसराएलिता ब्राज़िलिएरो स्कूल में छात्रों, शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों सहित हर कोई जलवायु परिवर्तन पर जानकारी से संबंधित गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं. इनमें खाना पकाने में इस्तेमाल होने वाले तेल से बायो-डीज़ल बनाना भी शामिल है. इससे स्कूली समुदाय के विभिन्न सदस्यों में आपसी जुड़ाव को बढ़ावा देने में भी मदद मिलती है.
ग्रीस के ग्रेनाडियो के फ़र्स्ट एक्सपेरीमेंटल लिसियम स्कूल में अभिनव समाधानों को अपनाते हुए जलवायु कार्रवाई को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है: जीव विज्ञान और रसायन विज्ञान के छात्र जलवायु परिवर्तन, वायरस संचारण और पारिस्थितिक तंत्रों की गतिशीलता की जांच करने के लिए समूह बनाकर काम कर रहे हैं.
इस जानकारी का इस्तेमाल स्कूल की इमारत की जांच में किया गया. पर्यावरणीय दृष्टि से उसकी कमज़ोरियों की शिनाख़्त की गई और उसे बेहतर बनाने की योजना तैयार हुई.
ऐसा पाया गया कि इन उपायों को अपनाने से दुनिया की मौजूदा समस्याओं के प्रति बच्चों के ज्ञान में वृद्धि करने और उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल कर पाना संभव हुआ है.
कुछ विषयों (जैसे भूगोल, विज्ञान) का जलवायु कार्रवाई से सीधा संपर्क है लेकिन यूएन गाइड बताती है कि अन्य विषयों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है.
उदाहरणस्वरूप, इतिहास से समझा जा सकता है कि पहले के समय में समाजों ने पर्यावरणीय चुनौतियों का किस तरह सामना किया है. भाषा व साहित्य पर आधारित कक्षाएं संप्रेषण कौशल (communications skills) को विकसित करने में मदद कर सकती हैं जिनकी ज़रूरत स्थानीय व वैश्विक मुद्दों से निपटने में है.
गणित के छात्र ऐसे ग्राफ़ के प्रति अपनी समझ बढ़ा सकते हैं जिन से पता चल सके कि स्कूल ऊर्जा का इस्तेमाल किस तरह कर रहे हैं और नागरिक शास्त्र के छात्र स्थानीय अधिकारियों का इंटरव्यू कर यह जान सकते हैं कि इस समस्या के समाधान की तलाश करने के लिए क्या क़दम उठाए जा रहे हैं.
दिसंबर 2019 में जारी हुई यूनेस्कों की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि क़रीब-क़रीब सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन संबंधी शिक्षा को पाठ्यक्रमों में शामिल करने का संकल्प लिया गया है.
अध्ययन में पाया गया है कि सबसे अहम संकल्प सार्वजनिक जागरूकता का प्रसार और संज्ञानात्मक ज्ञान अर्जन को सुनिश्चित करना है - जैसे कक्षाओं में पढ़ाई-लिखाई में जलवायु संबंधित विचार-विमर्श को शामिल करना.
लेकिन यह भी स्वीकार किया गया है कि ऑंकड़ों की कमी की वजह से वास्तविक प्रगति की निगरानी करना मुश्किल भरा हो सकता है.
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक अर्थव्यवस्था की पूरी तरह काया पलट कर देने की अपील कर रहा है जिसमें टैक्नॉलजी, विज्ञान, वित्तीय संसाधन और सूझबूझ सभी के लिए टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने पर केंद्रित होंगे.
लेकिन यह तभी संभव है जब स्कूल छोड़ने वाले छात्रों के पास नई, हरित अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों के अनुरूप हुनर होंगे और उसके लिए सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठनों समेत समाज के हर हिस्से से मज़बूत नेतृत्व की दरकार होगी.