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बच्चे किसी भी देश में यौन शोषण से सुरक्षित नहीं

पुस्तक पढ़ती ये किशोरी स्पेन की एक 17 वर्षीय लड़की मागू है जिसे यौन शोषण का सामना करना पड़ा है.
UNICEF/Giuseppe Imperato
पुस्तक पढ़ती ये किशोरी स्पेन की एक 17 वर्षीय लड़की मागू है जिसे यौन शोषण का सामना करना पड़ा है.

बच्चे किसी भी देश में यौन शोषण से सुरक्षित नहीं

महिलाएँ

पूरी दुनिया में कहीं भी ऐसी कोई सुरक्षित जगह नहीं है जहाँ बच्चों का यौन शोषण, यौन दुराचार और बच्चों को वेश्यावृत्ति के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता हो. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने मंगलवार को एक ताज़ा रिपोर्ट में ये बात कही है.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ माउड डी बोएर बुक़ीच्चियो ने मानवाधिकार सुरक्षा परिषद के 43वें सत्र में मंगलवार को अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए अपनी चिंता भी दोहराई कि कम उम्र में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए उपायों में ख़ामियाँ मौजूद हैं.

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उन्होंने कहा कि बेशक इंटरनेट से लोगों के जीवन को बहुत से लाभ भी पहुँचे हैं, लेकिन चेतावनी के अंदाज़ में ये भी कहा कि इससे उन अपराधियों को भी गोपनीयता, छुपाव और धुंध का वातावरण बनाए रखने में भी मदद मिली है जो अक्सर क़ानून की पकड़ से बाहर रहते हैं.

बच्चों की बिक्री और यौन शोषण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर माउड डी बोएर बुक़ीच्चियो ने चेतावनी देते हुए कहा, “यौन शोषण के लिए बच्चों की उनके देशों के भीतर और देशों के बाहर ऑनलाइन बिक्री और तस्करी होती है.”

“बच्चों को ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिए ही यौन गतिविधियाँ करने के लिए मजबूर किया जाता है. कम उम्र के लड़के-लड़कियों को झूठे और लुभावने वादे करके बहका लिया जाता है और फिर उन्हें जबरन यौन व्यापार, बंधुआ मज़दूरी, भीख मांगने, जबरन शादी और घरेलू कामकाज में दासों की तरह इस्तेमाल किया जाता है.”

विशेष रैपोर्टेयर का कहना है कि कुछ ऐसे भी देश हैं जो उन बच्चों पर ही क़ानूनी कार्रवाई करते हैं जिन्हें ऑनलाइन यौन गतिविधियाँ करने के लिए मजबूर किया जाता है.

ऐसा बालाधिकार विशेषज्ञों के इन स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद होता है कि ऐसे मामलों में बच्चे ख़ुद पीड़ित होते हैं और उन्हें अपराधी नहीं समझा जाना चाहिए.

आपत्तिजनक सामग्री की भरमार

विशेष दूत ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2017 में ऐसी 78 हज़ार 589 वेबसाइटें थीं जिन पर बच्चों का यौन शोषण दिखाने वाली सामग्री उपलब्ध थी.

वर्ष 2018 तक इस तरह की सामग्री दिखाने वाली वेबसाइटों की संख्या में 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.

स्पेशल रैपोर्टेयर डी बोएर ने मानवाधिकार परिषद को बताया कि वर्ष 2019 में अंतरराष्ट्रीय पुलिस संगठन – इंटरपोल के पास लगभग 15 लाख तस्वीरें और वीडियो संभावित सबूत के तौर पर एकत्र किए थे.

उन्होंने ऐसे अध्ययनों का भी हवाला दिया जिनमें दिखाया गया है कि बहुत कम उम्र के बच्चों को भीषण दुराचार का निशाना बनाने का चलन बहुत बढ़ रहा है और यौन शोषण का शिकार होने वाले कुल बच्चों में से लगभग 28 फ़ीसदी बच्चों की उम्र 10 वर्ष से भी कम थी. मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इसे बहुत ही दहला देने वाला चलन क़रार दिया.

सूचना का अभाव

मानवाधिकार परिषद को बताया गया है कि बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों का सही आकलन अभी मालूम नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण के अपराधों के बारे में अभी संगठित तरीक़े से आँकड़े एकत्र नहीं किए गए हैं, इसके अलावा ऐसे मामलों की रिपोर्ट प्राप्त करने वाली संस्थाओं का भी अभाव है.

विशेष दूत का ये भी कहना था कि ऐसा माहौल इसलिए भी है क्योंकि बाल यौन शोषण और दुराचार को लेकर ख़ामोशी, शर्म और कलंक की मनोवृत्ति की वजह से भी ऐसे मामलों को दबा दिया जाता है.

उन्होंने कहा कि सबसे ज़्यादा बुरी तरह प्रभावित वो बच्चे हैं जो ग़रीबी, संघर्ष-अशांति, सामाजिक विलगाव और भेदभाव के कारण हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं.

जाँच बहुत जटिल

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि बहुत वैबसाइटें गुप्त रूप से मौजूद हैं जो किसी वर्चुअल नैटवर्क में शामिल होने पर ही देखी जा सकती हैं या फिर उनके सदस्य ही उन वैबसाइटों को देख सकते हैं. इससे पुलिस व जाँच एजेंसियों को इनकी जाँच-पड़ताल करना मुश्किल हो जाता है.

सुश्री डी बोएर ने मानवाधिकार परिषद को बताया, “इन सीमितताओं के कारण हानिकारक सामग्री वैबसाइटों पर उपलब्ध कराने वालों और ऐसी सामग्री को साझा करने वालों की शिनाख़्त करने और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों की क्षमता कम हो जाती है.”

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने 2016 में अनुमान व्यक्त किया था कि लगभग दस लाख बच्चों को व्यासायिक रूप में यौन शोषण का शिकार बनाया गया था.

मादक पदार्थों और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय (UNODC) की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में दुनिया भर में तस्करी का शिकार बनाए गए कुल लोगों में 28 प्रतिशत बच्चे थे. इसके अलावा तस्करी का शिकार होने वाली कुल लड़कियों में से 72 प्रतिशत और कुल लड़कों की 23 प्रतिशत संख्या को केवल यौन शोषण के लिए तस्करी का शिकार बनाया गया.  

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि चूँकि इन मामलों में संगठित आँकड़े मौजूद नहीं हैं इसलिए ऐसा लगता है कि बच्चों के यौन शोषण से संबंधी समस्या व अपराधों की रिपोर्टिंग बहुत कम हो रही है और असल समस्या इससे कहीं ज़्यादा बड़ी और गंभीर है.