'म्याँमार की तरफ़ से रोहिंज्या शरणार्थियों की वापसी के लिए समुचित प्रयास नहीं'

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों व साझेदार ग़ैर-सरकारी संगठनों ने रोहिंज्या मानवीय संकट से निपटने के प्रयासों के तहत वर्ष ‘2020 साझा कार्रवाई योजना’ (2020 ज्वाइंट रिस्पॉन्स प्लान) पेश किया है. इस अपील में 87 करोड़ डॉलर की रक़म जुटाने का लक्ष्य रखा गया है ताकि म्यांमार से आए आठ लाख 55 हज़ार से ज़्यादा रोहिंज्या शरणार्थियों और उन्हें शरण दे रहे बांग्लादेश में चार लाख स्थानीय लोगों की ज़रूरतें भी पूरी की जा सकें.
फ़िलिपो ग्रैंडी ने कहा कि म्याँमार में रोहिंज्या शरणार्थियों की वापसी के लिए अभी माहौल अनुकूल नहीं है. उन्होंने म्याँमार सरकार से अनुरोध किया कि वो रोहिंज्या लोगों की वापसी के लिए अनुकूल माहौैल बनाने के लिए ठोस प्रयास करे.
फ़िलिपो ग्रैंडी ने कहा, "समाधान अब भी म्याँमार में ही मौजूद है. समस्या ये है कि बांग्लादेश से म्याँमार को शरणार्थियों की वापसी के लिए अनुकूल हालात बनाने के वास्ते जो उपाय किए जाने हैं, वो नहीं हो रहे हैं या किए भी जा रहे हैं तो रफ़्तार बहुत धीमी है."
“The solution continues to be in #Myanmar. The problem is that things that need to be done there, to create conditions for refugees to return from Bangladesh into Myanmar, are too slow or not happening yet.” @Refugees chief @FilippoGrandi launches a new appeal for the #Rohingya. pic.twitter.com/7eYFNvI95Y
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वर्ष 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में सुरक्षा बलों के व्यापक अभियान के बाद जान बचाने के इरादे से रोहिंज्या समुदाय के लाखों लोगों ने बांग्लादेश के लिए पलायन किया था और तभी से लाखों रोहिंज्या लोग बांग्लादेश में निर्वासन में जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
अधिकांश शरणार्थियों ने म्यांमार लौटने की इच्छा ज़ाहिर की है लेकिन उसके लिए पहले वहां सुरक्षा, मूलभूत अधिकारों व सेवाओं का सुनिश्चित होना अहम होगा.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रमुख फ़िलिपो ग्रैन्डी ने कहा कि रोहिंज्या शरणार्थियों की सुरक्षा व कल्याण के लिए इस योजना को समर्थन दिया जाना बेहद ज़रूरी है.
“दुनिया को रोहिंज्या व उनकी मेज़बानी कर रही बांग्लादेश सरकार और जनता के साथ खड़े होने की आवश्यकता है. सबसे अहम मुद्दों में शरणार्थियों से बातचीत करना, उनकी आवाज़ को सुनना और भविष्य के प्रति उनकी अभिलाषाओं व दृष्टि को समझना शामिल है.”
इस अपील से जुटाई जाने वाली कुल रक़म का 55 फ़ीसदी हिस्सा ज़रूरी सुविधाओं और राहत पर ख़र्च करने का लक्ष्य है जिनमें भोजन, शरण, स्वच्छ पानी, साफ़-सफ़ाई शामिल हैं. इसके अलावा स्वास्थ्य, संरक्षण, शिविर प्रबंधन, ऊर्जा और पर्यावरण के रख-रखाव को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है.
इस योजना का उद्देश्य शरणार्थी समुदायों के संरक्षण को मज़बूती प्रदान करना, ज़रूरतमंदों को जीवन रक्षक सेवाएं मुहैया कराना, प्रभावित बांग्लादेशी समुदायों को मदद प्रदान करने व म्यांमार में टिकाऊ समाधानों की दिशा में काम करना है. ये सभी उद्देश्य टिकाऊ विकास लक्ष्यों के 2030 एजेंडा को ध्यान में रखकर ही तैयार किए गए हैं.
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन के महानिदेशक एंतोनियो वितोरिनो ने बताया कि अगस्त 2017 में इस संकट के शुरू होने के बाद से उनके संगठन ने बांग्लादेश सरकार के साथ मिलकर टिकाऊ और गरिमामय शिविरों की स्थापना करने पर ज़ोर दिया है और मेज़बान समुदायों को भी सहयोग मुहैया कराया है.
वर्ष 2019 की योजना में 92 करोड़ डॉलर की रक़म जुटाने की अपील की गई थी लेकिन क़रीब 65 करोड़ डॉलर की धनराशि का ही इंतज़ाम हो पाया था.
वर्ष 2020 की योजना में पिछले अनुभवों से सीखने और आपात राहत तैयारियों व आपदा जोखिम प्रबंधन प्रयासों पर कार्य को आगे बढ़ाने का उल्लेख किया गया है.
वर्ष 2017 में रोहिंज्या शरणार्थी संकट शुरू होने के बाद से राहत एजेंसियां जीवन-रक्षक सहायता व संरक्षण मुहैया कराने के कार्य में जुटी हैं.
इन्हीं प्रयासों के सिलसिले में 2019 में शिविरों में रह रहे सभी शरणार्थियों का बायोमैट्रिक पंजीकरण कराया गया और 12 वर्ष की आयु से ऊपर सभी को पहचान-पत्र बांटे गए.
इससे उनकी शिनाख़्त करने, सुरक्षा प्रदान करने और लक्षित व प्रभावी ढंग से राहत उपलब्ध कराने के काम में आसानी होगी. एशिया में यूएन शरणार्थी एजेंसी द्वारा पहली बार इतने व्यापक स्तर पर बायोमैट्रिक पंजीकरण का काम पूरा किया गया है.
रोहिंज्या शरणार्थियों को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत भी मुहैया कराए गए हैं जिससे उनके शिविरों में जीवन बेहतर हुआ है.
सभी अस्थाई घरों में अब भोजन पकाने के लिए एलपीजी गैस की आपूर्ति होती है जिससे आग जलाने के लिए लकड़ियों की मांग में 80 फ़ीसदी की गिरावट आई है.
इस पहल में 30 हज़ार से ज़्यादा स्थानीय बांग्लादेश परिवार भी शामिल किए गए हैं और इससे कॉक्सेस बाज़ार ज़िले में शरणार्थी इलाक़ों को हरित बनाने में मदद मिली है.
इन कैंपों में अब बेहतर सड़कें, नालियां और पुल हैं और ढलानों को भी मज़बूत बनाया गया है जिससे वर्ष 2019 में मॉनसून के दौरान बाढ़ से प्रभावित होने वाले परिवारों की संख्या में कमी देखी गई.
तीन हज़ार से ज़्यादा रोहिंज्या शरणार्थियों को प्रशिक्षण दिया गया है और अब वे आपात हालात में कार्रवाई के लिए गठित टीम का हिस्सा हैं.
बांग्लादेश सरकार ने जनवरी 2020 में रोहिंज्या शरणार्थी बच्चों के लिए म्यांमार के स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है.
जल्द ही एक पायलट कार्यक्रम शुरू करने की योजना है जिसमें कक्षा 6 से कक्षा 9 तक 10 हज़ार से ज़्यादा बच्चे शामिल किए जाएंगे. इससे भविष्य में म्यांमार लौटने पर जीवन को जल्द पटरी पर लाने में मदद मिलेगी.
इस योजना में उन सभी क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है जिनमें मेज़बान समुदायों का जीवन प्रभावित हुआ है. इनमें सार्वजनिक सेवा ढांचा व वितरण सेवा, टिकाऊ आजीविका के साधनों की सुलभता, पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा ज़रूरतें शामिल हैं.