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21वीं शताब्दी को महिलाओं के लिए समानता की सदी बनाने की पुकार

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश न्यूयॉर्क के 'द न्यू स्कूल' में शिक्षकों व छात्रों को संबोधित करते हुए.
UN Photo/Mark Garten
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश न्यूयॉर्क के 'द न्यू स्कूल' में शिक्षकों व छात्रों को संबोधित करते हुए.

21वीं शताब्दी को महिलाओं के लिए समानता की सदी बनाने की पुकार

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने 21वीं सदी को महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित करने वाली सदी बनाने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा है कि जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की बराबर हिस्सेदारी विश्व के सुरक्षित भविष्य, स्थिरता, हिंसक संघर्ष की रोकथाम और टिकाऊ व समावेशी विकास के लिए अहम है. उन्होंने लैंगिक असमानता और महिलाओं व लड़कियों के प्रति भेदभाव को एक ऐसा अन्याय क़रार दिया जो विश्व भर में व्याप्त है. 
 

 न्यूयॉर्क शहर के ‘द न्यू स्कूल’ में शिक्षकों व छात्रों को संबोधित करते हुए महासचिव ने कहा कि अपने पूरे राजनैतिक करियर में, प्रधानमंत्री के तौर पर और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रमुख के रूप में उन्होंने हमेशा न्याय, समानता और मानवाधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है. 

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जिस तरह दासता व औपनिवेशवाद पिछली सदियों के दाग थे, महिलाओं के लिए असमानता 21वीं सदी में शर्मिंदगी का सबब है. 

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“हर जगह महिलाएं पुरुषों से ख़राब हालात में हैं, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वे महिलाएं हैं. प्रवासी व शरणार्थी महिलाओं, विकलांता का शिकार महिलाओं और अल्पसंख्यक महिलाओं को बड़े अवरोधों का सामना करना पड़ता है.”

उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की बराबर हिस्सेदारी को स्थिरता, हिंसक संघर्ष की रोकथाम और टिकाऊ व समावेशी विकास के लिए अहम बताया है. “लैंगिक समानता एक बेहतर दुनिया की पहली शर्त है.”

500 वर्ष पहले आधुनिक अंगोला में पुर्तगाल के औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ म्बुन्डू की रानी न्ज़िन्गा म्बंडी के संघर्ष से लेकर 21वीं सदी तक नारीवादी आंदोलनों की एक लंबी फ़ेहरिस्त रही है.  

यूएन प्रमुख ने कहा कि महिला राष्ट्राध्यक्षों ने महिलाओं की क्षमताओं पर उठे संदेहों को दूर कर दिया है और मलाला युसूफ़ज़ई और नादिया मुराद जैसी युवा महिलाएं बाधाओं को पार कर नेतृत्व के नए मायनों को गढ़ रही हैं. 

महिलाधिकारों पर मंडराता संकट

इसके बावजूद महिला अधिकारों की स्थिति चिंताजनक है और असमानता व भेदभाव हर जगह आम बात हो गई है. ”प्रगति धीमी होकर ठहर सी गई है और कुछ मामलों में तो उसकी दिशा उल्टी हो गई है.”

महिलाओं के प्रति हिंसा बड़े पैमाने पर व्याप्त है. हर तीन में से एक महिला को अपने जीवनकाल में किसी ना किसी रूप में हिंसा का सामना करना पड़ता है. 

यूएन प्रमुख ने क्षोभ जताया कि बलात्कार और घरेलू हिंसा के मामलों में क़ानूनी संरक्षण को कमज़ोर बनाया जा रहा है और 34 देश अब भी ऐसे हैं जहां वैवाहिक जीवन में बलात्कार क़ानूनी रूप से मान्य है. 

महिलाओं के यौन व प्रजनन अधिकारों पर भी ख़तरा मंडरा रहा है और महिला नेताओं व सार्वजनिक हस्तियों को शोषण, धमकियों व दुर्व्यवहार को झेलना पड़ता है.

“सरकारों से कॉरपोरेट बोर्डों और पुरस्कार समारोहों तक, महिलाओं को शीर्ष स्थलों से बाहर रखा जाता है…शांति वार्ताओं में महिलाओं को शामिल करने के संकल्प के 20 वर्ष बाद भी महिलाएं प्रक्रिया से बाहर हैं. डिजिटल युग इन असमानताओं को और गहरा कर सकता है.”

यूएन महासचिव ने आगाह किया कि मौजूदा अर्थव्यवस्था, राजनैतिक प्रणालियों और कॉरपोरेशन में अब भी पितृसत्तात्मक समाज और पुरुषों के दबदबे वाले सत्ता तंत्रों की पैंठ है. 

“हॉलीवुड में प्रसिद्धि भी महिलाओं को पुरुषों द्वार शारीरिक, भावनात्मक और पेशेवर ताक़त आज़माने से नहीं रोक पाती. मैं उन सभी को सलाम करता हूं जिन्होंने साहसिक ढंग से अपनी आवाज़ उठाई है और लड़ाई लड़ी.”

उन्होंने दुख जताया कि मौजूदा संस्थानों और तंत्रों में असमानता की छुपी हुई परत बनी हुई है जिसमें सिर्फ़ विश्व की आधी आबादी की ज़रूरतों का ही ख़याल रखा जाता है. इस वजह से सही आंकड़ों की कमी पैदा हो गई है, महिलाओं और उनके अनुभवों की गिनती नहीं होती.

कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य में किन्शासा के एक स्कूल में एक युवा दूत छात्रों को शांति व लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की अहमियत समझा रही है.
MONUSCO/Dominique Cardinal
कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य में किन्शासा के एक स्कूल में एक युवा दूत छात्रों को शांति व लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की अहमियत समझा रही है.

“इसके नतीजे हमें हर जगह दिखाई देते हैं, शौच सुविधाओं से बस मार्गों तक. महिलाओं के कार दुर्घटनाओं में घायल होने की आशंका ज़्यादा होती है क्योंकि सीट और सेफ़्टी बेल्ट पुरुषों के हिसाब से डिज़ाइन की जाती है. हार्ट अटैक से महिलाओं की मौत ज़्यादा होती है क्योंकि निदान के उपकरण पुरुषों की ज़रूरतों पर आधारित हैं.”

उन्होंने पांच ऐसे क्षेत्रों का ज़िक्र किया जहां लैंगिक समानता को हासिल करने से दुनिया की कायालट की जा सकती है. 

हिंसक संघर्ष और अशांति

संयुक्त राष्ट्र महिलाओं को हिंसक संघर्ष की रोकताम, शांति निर्माण और मध्यस्थता के प्रयासों के केंद्र में रखने के लिए संकल्पित है. साथ ही महिला शांतिरक्षकों की संख्या को भी बढ़ाया जाएगा. महिला नेताओं और निर्णय-निर्धारकों को मध्यस्थता और शांति प्रक्रियाओं में शामिल करने से टिकाऊ और दीर्घकालीन शांति स्थापना में मदद मिलती है. 

जलवायु संकट 

जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभाव पुरुषों द्वारा लिए गए फ़ैसलों का नतीजा हैं जिनका महिलाओं व लड़कियों पर ज़्यादा असर पड़ा है. हाल के अध्ययन दर्शाते हैं कि महिला अर्थशास्त्री और सांसद टिकाऊ और समावेसी नीतियों का ज़्यादा समर्थन करती हैं और निजी जीवन में पर्यावरण पर असर को कम करने के लिए ज़्यादा तैयार हैं. जलवायु एमरजेंसी को हराने के लिए लैंगिक समानता स्थापित करना ज़रूरी है जिसमें पुरुष भी आगे बढ़कर अपनी ज़िम्मेदारी समझे.

समावेशी अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण

विश्व भर में पुरुषों द्वारा कमाए गए हर एक डॉलर पर महिलाएं 77 सेन्ट्स कमाती हैं और इस वेतन की खाई को पाटने के लिए वर्ष 2255 तक का समय लग सकता है. महिलाओं के लिए समान आर्थिक अधिकार व अवसर सभी के लिए काम करने वाले न्यायोचित वैश्वीकरण के निर्माण के लिए अनिवार्य है.

डिजिटल जगत की खाई   

टैक्नॉलजी से जुड़े पेशों, विश्वविद्यालयों डिजिटल टैक्नॉलजी के डिज़ाईन में महिलाओं की भूमिका के बग़ैर महिला अधिकारों पर प्रगति खटाई मे पड़ सकती है. इस क्षेत्र में विविधता के अभाव से ना सिर्फ़ लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि अभिनव समाधानों और नई तकनीकों का दायरा भी सीमित होगा. 

राजनैतिक प्रतिनिधित्व

राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व संस्थाओं को बेहतर बनाता है. इससे संसाधनों को दोगुना करने, क्षमता बढाने और सभी के लिए बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है. जब सरकार में महिलाओं की संख्या बढ़ती है तो वे अभिनव समाधानों की तलाश करने और स्थापित रुढिवादिता की चुनौती का सामना करने के लिए ज़्यादा तैयार होती हैं.