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प्रवासी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कॉप-13

भारत में किंगफिशर चिड़िया.
UN Photo/John Isaac
भारत में किंगफिशर चिड़िया.

प्रवासी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कॉप-13

जलवायु और पर्यावरण

प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (सीएमएस) को लेकर 13वां कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ यानी कॉप-13, भारत के गुजरात राज्य की राजधानी गांधीनगर में आयोजित किया जा रहा है. 15 फरवरी से 22 फरवरी तक चलने वाले सीएमएस कॉप-13 में 110 देशों के लगभग 1200 प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे और तेज़ी से लुप्त होती प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के बारे में चर्चा करेंगे. 

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (2019 Global Assessment Report on Biodiversity and Ecosystem Services) पर 2019 की वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट कहती है कि प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र के समझौते यानी सीएमएस के तहत सूचीबद्ध प्रवासी प्रजातियों समेत दुनिया भर की लगभग दस लाख प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं. 

वर्तमान कॉप अध्यक्ष और भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता पर गुजरात राज्य के गांधीनगर शहर में सीएमएस कॉप-13 के आयोजन की सोमवार को घोषणा की.

बहुत सी प्रवासी प्रजातियाँ लुप्त होने के ख़तरे के दायरे में हैं

उन्होंने कहा, “इसकी थीम ‘अतिथि देवो भव’ की भारतीय परंपरा पर आधारित है जिसमें मेहमान को देवता का दर्जा दिया जाता है.  थीम है- ‘प्रवासी प्रजातियां पृथ्वी को जोड़ती हैं और हम मिलकर उनका अपने घर में स्वागत करते हैं.’

"ये पृथ्वी उनकी दुनिया है और उनका हर जगह स्वागत करती है. हम भी उसी पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं और एक-दूसरे पर निर्भर हैं. भारत के लोगों के लिए प्रकृति जीवन का एक अहम हिस्सा है.” 

कॉप-13 अध्यक्ष ने स्पष्ट किया, “प्रवासी पक्षियों के संरक्षण को लेकर आयोजित की जाने वाला ये 13वां कॉप एक साल के अंदर भारत में होने वाला दूसरा कॉप सम्मेलन होगा."

"अगले तीन साल तक इसकी अध्यक्षता भारत के पास रहेगी. ऐसे में हमारी पूरी कोशिश होगी कि ख़ासतौर पर जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण के प्रभावों के मद्देनज़र प्रवासी प्रजातियों को कैसे बचाया जाए, उस पर ठोस निर्णय लिए जाएं.”  
 
संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशीज़ (सीएमएस) यानी प्रवासी पक्षियों के संरक्षण पर समझौते की कार्यवाहक कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल ने कहा, “विज्ञान बता रहा है कि सब ठीक नहीं है. प्रवासी प्रजातियों की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक कार्रवाई की आवश्यकता है. हाल के अध्ययन से स्पष्ट है कि अगर हम अपनी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाते हैं तो एक लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा है. प्रवासी प्रजातियों और उनके आवास की रक्षा पर हो रहे इस वैश्विक सम्मेलन के सामने ये वास्तव में एक बड़ी चुनौती है.” 

उच्च स्तरीय खंड और गांधीनगर घोषणापत्र 

सीएमएस कॉप-13 का उच्च-स्तरीय खंड रविवार 16 फरवरी को होगा जिसमें पांच महाद्वीपों के मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी शिरकत करेंगे और इस वर्ष के अंत में अपनाए जाने वाले नए वैश्विक जैव विविधता ढांचे में प्रवासी प्रजातियों के लिए प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श करेंगे. 

इसमें अंतरराष्ट्रीय संरक्षण प्राथमिकता के रूप में 'ईकोलॉजिकल कनेक्टिविटी' यानी 'पारिस्थितिक संपर्क' बनाए रखने और बहाल करने की आवश्यकता भी शामिल है.

‘पारिस्थितिक कनेक्टिविटी’ प्रजातियों के आज़ादी से घूमने -फिरने और पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाओं के सतत प्रवाह को बनाए रखता है.

यह प्रवासी प्रजातियों के लिए बेहद अहम है और उनका पूरा जीवन चक्र, प्रजनन, आराम और भोजन, रहने की उपयुक्त जगहों पर निर्भर करता है.

सम्मेलन से उम्मीदें 

संरक्षण की सीएमएस सूची में भारत की तीन प्रजातियों (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियन एलिफेंट और बंगाल फ्लोरिकन) समेत दुनिया भर के पक्षियों की दस लुप्तप्रायः प्रजातियों को जोड़े जाने की उम्मीद है.

अन्य सात में कोस्टा रीका, पैराग्वे, बोलीविया और अर्जेंटीना द्वारा प्रस्तावित-जगुआर, ब्राजील द्वारा प्रस्तावित - व्हाइट टिप शार्क, योरोपियन यूनियन संघ - लिटिल बस्टर्ड, उरियल (ताज़िकिस्तान, ईरान और उज़्बेकिस्तान, एंटिपोडियन अल्बाट्रॉस (न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और चिली), स्मूथ हैमरहेड शार्क (ब्राजील) और टोपे शार्क (योरोपियन यूनियन संघ) शामिल हैं.

सम्मेलन के दौरान प्रकाश प्रदूषण, पानी में प्लास्टिक प्रदूषण और प्रजातियों पर सड़क और रेल संरचना के प्रभावों सहित प्रवासी प्रजातियों के लिए उभरते ख़तरों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

ख़ासतौर पर जिराफ़, नट-क्रैकिंग चिंपांज़ी और गंगा नदी डॉल्फिन समेत लुप्तप्राय प्रजातियों पर विस्तृत संरक्षण कार्रवाई निर्देश और प्रवासी पशु-पक्षियों को प्रभावित करने वाले विशिष्ट ख़तरों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है.

इनमें आवास-विखंडन, प्रकाश और प्लास्टिक प्रदूषण, पक्षियों की अवैध हत्या, ऊर्जा और सड़क संरचना, जंगली मांस का अत्यधिक उपयोग पर चर्चा के ज़रिए समुद्री प्रजातियों के बचाव के लिए रास्ते प्रशस्त किए जाने की उम्मीद है.
 
एमी फ्रेंकेल बताती हैं, “प्रकृति और जैव-विविधता पर अपनी प्रजातियों की बेहतर सुरक्षा के लिए क्या करना होगा, इसे लेकर ये अंतरराष्ट्रीय बैठक, वर्ष 2020 को जैव विविधता के विशेष वर्ष के तौर पर स्थापित करेगी."

"इसका समापन साल के अंत में एक बड़ी बैठक के साथ होगा जिसमें अगले दशक के लिए जैव विविधता पर एक नई वैश्विक रणनीति अपनाने की उम्मीद है. सीएमएस कॉप उसी के लिए उपयुक्त मंच तैयार कर रहा है.”