महिला ख़तना के कारण हर साल अरबों डॉलर का नुक़सान

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि महिला जननांग विकृति यानी महिला ख़तना ना केवल महिलाओं के स्वास्थ्य और अच्छे रहन-सहन के लिए गंभीर ख़तरे पैदा करता है बल्कि इसके कारण विशाल आर्थिक नुक़सान भी होता है. इस दर्द भरी प्रथा के स्याह पक्षों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे रोकने के लिए हर वर्ष 6 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है.
इस दिवस का नाम है- The International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation.
संयुक्त राष्ट्र ने गुरूवार को इस दिवस के अवसर पर कुछ आँकड़ों का संदर्भ देते हुए कहा कि महिला ख़तना के कारण स्वास्थ्य को होने वाले नुक़सान का इलाज करने और अन्य गतिविधियों पर हर साल लगभग एक अरब 40 करोड़ डॉलर का ख़र्च आता है.
Female genital mutilation is an abhorrent human rights violation and a form of violence against women - rooted in the desire for power & control that pervades gender inequality.It’s time to #EndFGM and fully uphold the rights, dignity & health of women and girls everywhere. pic.twitter.com/j5SLIeDu7K
antonioguterres
इन आँकड़ों से पता चलता है कि अनेक देश तो हर साल के अपने वार्षिक ख़र्च का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा महिला ख़तना से स्वास्थ्य को होने वाले नुक़सान का इलाज करने पर ख़र्च करते हैं. जबकि कुछ देशों में तो ये ख़र्च उनके वार्षिक ख़र्चा का लगभग 30 फ़ीसदी होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और शोध विभाग के निदेशक डॉक्टर ईयन ऐस्कियू का कहना है, “महिला ख़तना ना केवल मानवाधिकारों का ऐसा गंभीर और दर्दनाक उल्लंघन है जो करोड़ों महिलाओं और लड़कियों के ना केवल शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुक़सान पहुँचाता है; बल्कि ये देश के आर्थिक संसाधन भी बर्बाद करता है.”
“महिला ख़तना को रोकने और उससे होने वाले तकलीफ़ों का ख़ात्मा करने के लिए और ज़्यादा धन निवेश करने की ज़रूरत है.”
ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में इस समय लगभग 20 करोड़ महिलाएँ व लड़कियाँ हैं जिन्हें महिला ख़तना की दर्दनाक प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा है.
ध्यान रहे कि महिला ख़तना एक ऐसी प्रथा है जिसमें परंपरा या संस्कृति की दलील देकर लड़कियों के जननांग का कुछ हिस्सा काटकर उसमें बदलाव किया जाता है और ऐसा चिकित्सा कारणों की ज़रूरत के बिना होता है.
महिला ख़तना की ये प्रक्रिया मुख्यतः 15 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ की जाती है, यानी उनकी उम्र 15 वर्ष से कम कुछ ही हो सकती है – 10 साल, 9 साल या 8 साल, या उससे भी कम.
लड़कियों के स्वास्थ्य पर महिला ख़तना के तात्कालिक ख़तरनाक परिणाम भी देखने को मिले हैं, जिनमें संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्राव और मानसिक उत्पीड़न. इसके अलावा कुछ ऐसी बीमारियाँ भी होते देखी गई हैं जिनका असर जीवन भर रहता है.
जिन महिलाओं की ख़तना कर दी जाती है उन्हें बच्चों को जन्म देने समय जानलेवा परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है. इसके अलावा उनके मासिक धर्म, यौन गतिविधियों और मूत्र विसर्जन के दौरान भी बहुत तकलीफ़ होती है या अन्य तरह की समस्याएँ होती हैं.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ का कहना है कि महिला ख़तना का शिकार होने वाली महिलाओं की कुल संख्या का लगभग एक चौथाई हिस्सा यानी लगभग 25 प्रतिशत महिलाओं का ख़तना स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा किया गया था. ये संख्या 5 करोड़ 20 लाख के आसपास है.
जनवरी 2020 में मिस्र में 12 वर्षीय एक लड़की की मौत महिला ख़तना की प्रक्रिया के दौरान ही हो गई और जानकारी सामने आई है कि चिकित्साकर्मियों द्वारा की जाने वाली महिला ख़तना के ख़तरे सामने आ रहे हैं.
वैसे तो मिस्र में महिला ख़तना पर 2008 में प्रतिबंध लगा दिया गया था, मगर यूनीसेफ़ के अनुसारक ये प्रथा अब भी मिस्र और सूडान में प्रचलित है.
यूनीसेफ़ के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि महिला ख़तना चिकित्साकर्मियों द्वारा कराने का चलन इन दिग्भ्रमित अवधारणाओं के बीच बढ़ रहा है कि इस दुष्प्रथा के गंभीर परिणाम के कारण चिकित्सीय हैं. ऐसी अवधारणा रखने वाले लोग ये नहीं समझते कि महिला ख़तना दरअसल लड़की मानवाधिकारों का बुनियादी उल्लंघन है.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फ़ोर का कहना है, “महिला ख़तना अगर किसी डॉक्टर द्वार भी किया जाता है तो भी वो लड़की के जननांग की विकृति ही है.
महिला ख़तना करने वाले प्रशिक्षित चिकित्साकर्मी ऐसा करके दरअसल लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, उनकी शारीरिक शीलता भंग करते हैं और उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं.”
“महिला ख़तना को चिकित्साकर्मियों द्वारा कराने के पर्दे के पीछे छुपाने से ये दुष्प्रथा सुरक्षित, नैतिक या स्वीकार्य नहीं हो सकती.”
महिला ख़तना का विरोध जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वहीं इसे सही ठहराने के लिए चिकित्साकर्मियों द्वारा कराए जाने का चलन भी बढ़ रहा है.
1997 से लगातार किए गए प्रयासों की बदौलत अफ्रीका और मध्य पूर्व में 26 देशों ने महिला ख़तना के ख़िलाफ़ क़ानून बनाए हैं. साथ ही महिला ख़तना का दंश झेलने वाली लड़कियाँ और महिलाएँ जिन अन्य देशों में जाकर बसते हैं या कामकाज करते हैं, उन देशों में भी इसके ख़िलाफ़ क़ानून बनाए गए हैं.
यूनीसेफ़ को ये भी मालूम हुआ है महिला ख़तना के प्रचलन वाले देशों में ऐसी लड़कियों व महिलाओं की संख्या कि पिछले दो दशकों के दौरान दो गुना हो गई है जो इस दुष्प्रथा को रोकना चाहती हैं.
यूनीसेफ़ प्रमुख हेनरिएटा फ़ोर का कहना है, “हमारे प्रयासों में कामयाबी मिल रही है. लोगों का नज़रिया बदल रहा है, साथ ही बर्ताव भी. परिणामस्वरूप ख़तना की प्रक्रिया से गुज़रने वाली लड़कियों की संख्या पहले की तुलना में कम हुई है.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन में एक वैज्ञानिक डॉक्टर क्रिस्टीना पैल्लीट्टो का कहना है कि बहुत से देशों और समुदायों की तरफ़ से ऐसा नज़र आ रहा है कि महिला ख़तना को रोक पाना संभव है.
उनका कहना है, “देश महिला ख़तना को रोकने के प्रयासों में अगर और ज़्यादा धन ख़र्च करें तो वो इस दर्दनाक प्रथा से लड़कियों को बचाने का साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी बेहतर बना सकते हैं. ऐसा करने से ना केवल लड़कियों के अधिकारों का सम्मान होगा बल्कि वो बेहतर जीवन भी जी सकेंगी.”