न्यूमोनिया पर कार्रवाई के अभाव में 90 लाख बच्चों की जान को ख़तरा

न्यूमोनिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में प्रयासों को ज़्यादा मज़बूत बनाकर अगले दशक में 90 लाख बच्चों की मौतों को टाला जा सकता है. स्पेन के बार्सिलोना शहर में ‘बालावस्था में न्यूमोनिया’ विषय पर आयोजित वैश्विक फ़ोरम से ठीक पहले जारी एक नए विश्लेषण में यह बात सामने आई है. वर्ष 2018 में न्यूमोनिया से आठ लाख बच्चों की मौत हुई यानी हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत.
बार्सिलोना में 29-31 जनवरी 2020 को ‘बचपन में न्यूमोनिया’ विषय पर पहली बार एक अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम का आयोजन किया जा रहा है जिसमें नौ प्रमुख बाल और स्वास्थ्य संगठन हिस्सा ले रहे हैं.
ऐसी संभावना है कि इस मंच से भारत में तैयार एक किफ़ायती पीसीवी वैक्सीन की उपलब्धता की घोषणा के साथ-साथ न्यूमोनिया की चुनौती का बोझ झेल रहे देशों की सरकारों की ओर से रणनीति तैयार करने का संकल्प लिया जाएगा.
Wisdom was born four months ago in Nigeria, where more children die from pneumonia than in any other country. But today, he is getting vaccinated - an easy and affordable way of preventing the deadly disease. Every child has a right to the same protection.#StopPneumonia pic.twitter.com/LEdY3ftANn
UNICEF
कुपोषण, वायु प्रदूषण और वैक्सीन व एंटीबायोटिक दवाईयों तक पहुंच ना होना न्यूमोनिया से होने वाली मौतों के प्रमुख कारण हैं.
अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार एक मॉडल में दर्शाया गया है कि न्यूमोनिया के उपचार का दायरा बढ़ाने और रोकथाम सेवाओं के ज़रिए पॉंच साल से कम उम्र के 32 लाख बच्चों का जीवन बचाया जा सकता है.
साथ ही इन प्रयासों के लाभ अन्य बीमारियों से लड़ने में भी दिखाई देंगे और बालावस्था में जानलेवा कई बड़ी बीमारियों से होने वाली मौतों की रोकथाम भी की जा सकती है – एक अनुमान के मुताबिक 57 लाख बच्चों की मौतें रोका जा सकती हैं.
इस रीसर्च में एकीकृत स्वास्थ्य सेवाओं की अहमियत को रेखांकित किया गया है.
न्यूमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण होता है जिससे बच्चों को सॉंस लेने में मुश्किलें पेश आती हैं क्योंकि उनके फेफड़ों में मवाद और द्रव्य भर जाता है.
यह बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है और हर साल यह लगभग आठ लाख से ज़्यादा बच्चों की जान लील लेता है – यानी हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत.
कुछ प्रकार के न्यूमोनिया की रोकथाम टीकाकरण या कम क़ीमतों वाली एंटीबायोटिक दवाइयों द्वारा की जा सकती है लेकिन करोड़ों बच्चे अब भी वैक्सीन से वंचित हैं.
न्यूमोनिया के लक्षण वाले हर तीन में से एक बच्चे को ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं.
न्यूमोनिया से होने वाली अधिकांश मौतें दुनिया के निर्धनतम देशों में होती हैं और ग़रीबी व वंचित समुदायों के बच्चे इसका ज़्यादा शिकार होते हैं.
कुछ अनुमान दर्शाते हैं कि वर्ष 2020 से 2030 के बीच पॉंच साल से कम उम्र के 63 लाख बच्चों की मौत न्यूमोनिया के कारण हो सकती है.
अगले एक दशक में सबसे ज़्यादा मौतों की आशंका नाइजीरिया (14 लाख), भारत (8 लाख 80 हज़ार), कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य (साढ़े तीन लाख) और इथियोपिया (दो लाख 80 हज़ार) में होने की आशंका है.
न्यूमोनिया से बच्चों की मौत होने की एक और वजह कुपोषण भी बताई गई है. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आकलन के अनुसार कुपोषण के स्तर को घटाने से ही 39 लाख मौतों को रोकने में मदद मिलेगी.
बच्चों के लिए सेहतमंद आहार सुनिश्चित करने, एंटीबायोटिक दवाएँ मुहैया कराने, वैक्सीन कवरेज का दायरा बढ़ाने और स्तनपान कराने जैसे क़दमों के ज़रिए न्यूमोनिया से मौत के जोखिम को कम किया जा सकता है.
साथ ही इससे अन्य बीमारियों जैसे हैज़ा, सैप्सिस व ख़सरा से होने वाली मौतों को रोकने में भी मदद मिलेगी.
घर के बाहर वायु प्रदूषण पॉंच साल से कम बच्चों में न्यूमोनिया से होने वाली 17.5 फ़ीसदी मौतों के मामलों की प्रमुख वजह है.
विश्व आबादी का 91 फ़ीसदी हिस्सा ऐसी हवा में सॉंस लेने के लिए मजबूर है जो विश्व स्वास्थ्य संगठनों के मानकों पर खरी नहीं उतरती. वायु प्रदूषण की बढ़ती चुनौती न्यूमोनिया से मुक़ाबले के प्रयासों पर असर डाल सकती है.