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हॉलोकॉस्ट जैसी घटना फिर ना हो, 'इतिहास से सबक़ ज़रूरी'

पोलैंड के आउशवित्ज़-बर्केनाउ में स्मारक और संग्रहालय के पास एक रेल ट्रैक पर पीड़ितों की स्मृति में गुलाब का फूल.
Unsplash/Albert Laurence
पोलैंड के आउशवित्ज़-बर्केनाउ में स्मारक और संग्रहालय के पास एक रेल ट्रैक पर पीड़ितों की स्मृति में गुलाब का फूल.

हॉलोकॉस्ट जैसी घटना फिर ना हो, 'इतिहास से सबक़ ज़रूरी'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि बढ़ती नफ़रत और यहूदी-विरोधी हमलों में तेज़ी के इस दौर में दुनिया को इतिहास से सबक़ लेना होगा ताकि यहूदी जनसंहार – हॉलोकॉस्ट – जैसी भयवाह घटना फिर ना दोहराई जा सके. यूएन प्रमुख ने पोलैंड में आउशवित्ज़-बर्केनाउ यातना शिविर को मुक्त कराए जाने के 75 साल पूरे होने और 60 लाख से ज़्यादा यहूदियों और अन्य लोगों के जनसंहार की याद में न्यूयॉर्क में आयोजित एक स्मरण समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही.

यूएन प्रमुख ने सोमवार को हॉलोकॉस्ट स्मरण दिवस पर कहा, “नफ़रत के इस दौर में हमारी एकजुटता पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है. दुनिया भर में हम यहूदी-विरोधी हमलों में बढ़ोत्तरी देख रहे हैं और अविश्वसनीय रूप से न्यूयॉर्क में भी.”

उन्होंने आगाह किया कि अमेरिका में यहूदी-विरोध और नफ़रत से प्रेरित अपराधों का रुझान बढ़ रहा है. कुछ ही दिन पहले मोन्सी में यहूदियों के एक उत्सव के दौरान हो रही पार्टी में चाकू से हमला किया गया जिसमें पांच लोग घायल हो गए. उससे पहले न्यू जर्सी शहर के एक यहूदी सुपरमार्केट में हमले में चार लोगों की मौत हो गई थी.  

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उन्होंने योरोप में यहूदियों के लिए हालात को और अधिक ख़राब बताया है. यूएन प्रमुख ने कहा कि ब्रिटेन, जर्मनी और इटली में ऐसे अपराधों में तेज़ी आई है जबकि फ़्रांस में वर्ष 2018 में यहूदी-विरोधी हमलो में 74 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी हुई है.

“यहूदियों के प्रति नफ़रत एक वैश्विक संकट बन गई है; यहूदियों, उनके प्रतिष्ठानों व संपत्तियों को निशाना बना कर किए जाने वाले हमले लगातार हो रहे हैं.”

महासचिव गुटेरेश ने गहरी चिंता जताई कि यहूदी-विरोधी भावना में तेज़ उभार के साथ-साथ विदेशियों और समलैंगिकों के प्रति नापसंदगी व डर, भेदभाव और नफ़रत दुनिया के कई हिस्सों में पनप रही है.

इन कारणों से लोगों को उनकी नस्ल, जातीयता, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग और आप्रवासन के दर्जे के आधार पर निशाना बनाया जा रहा है.

नफ़रत का सामान्यीकरण

75 वर्ष पहले सोवियत संघ के सैनिकों ने जब आउशवित्ज़ कैंप को मुक्त कराया था तो वहां भयावह हालात देखकर एक गहरी ख़ामोशी छा गई थी.

लेकिन यूएन प्रमुख ने कहा कि उन यातना शिविरों के विवरण को हमेशा याद रखा जाना होगा. उनसे मुंह ना मोड़ना बेहद अहम है ताकि हॉलोकॉस्ट से सबक़ सीखा जा सके और उसे फिर कभी ना दोहराया जा सके.

उन्होंने सचेत किया कि जब मानवता के विरुद्ध इन अपराधों को अंजाम दिया जा रहा था तो लाखों लोग उनसे बेपरवाह थे, इसलिए सदैव सतर्कता बरती जानी ज़रूरी है.

महासचिव ने एक अपील जारी करते हुए कहा कि तकनीक के ग़लत इस्तेमाल पर सतर्कता रखनी होगी और नफ़रत को सामान्य बनाने वाले संकेतों के प्रति चौकन्ना रहना होगा.

पूर्वाग्रहों से मुक़ाबला

यूएन महासचिव के मुताबिक़ जब किसी समस्या के लिए लोगों के किसी समूह को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है तो मानवाधिकारों का उल्लंघन करना और उनके प्रति भेदभाव को सामान्य बनाना आसान हो जाता है.

पूर्वाग्रह के विरुद्ध लड़ाई में सामाजिक भाईचारे और नफ़रत के मूल कारणों पर चोट करने वाले नेतृत्व को महत्वपूर्ण बताया गया है.

टिकाऊ विकास लक्ष्यों के 2030 एजेंडा का एक प्रमुख उद्देश्य मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और नफ़रत व भेदभाव से निपटना भी है.

“मैंने पिछले सप्ताह कार्रवाई के दशक की शुरुआत की है जिसका उद्देश्य सभी देशों के लिए समर्थन बढ़ाना है ताकि समावेशी, विविध और आदरपूर्ण समाजों का निर्माण हो सके और सभी के लिए गरिमा व अवसरों से परिपूर्ण जीवन सुनिश्चित हो.”

यूएन महासभा अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद-बांडे ने अपने संबोधन में हॉलोकॉस्ट को मानव इतिहास का सबसे भयावह जनसंहार क़रार दिया है. उन्होंने नफ़रत भरे संदेशों व भाषणों पर लगाम कसने और लगातार सतर्कता बरते जाने का आहवान किया है.

महासभा प्रमुख ने कहा कि आज के युवा कल के नेता होंगे इसलिए युवाओं को ऐसे जघन्य अपराधों के प्रति जागरूक बनाने की आवश्यकता है ताकि हॉलोकॉस्ट के अत्याचारों फिर ना दोहराया जा सके.

“हमें हॉलोकॉस्ट के पीड़ितों को हमेशा याद रखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके अनुभव हमें बार-बार शांति, समरसता, सहिष्णुता, सहयोग और समावेश को बढ़ावा देने की ज़रूरत का ध्यान दिलाएं.”

मानवाधिकार व सहिष्णुता सर्वोपरि

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने इस दिवस पर अपने संदेश में कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना नात्ज़ी शासन की अमानवीयता और नफ़रत के दौर के बाद हुई थी. यूएन की स्थापना के मूल में एक न्यायोचित व शांतिपूर्ण दुनिया का निर्माण था.

“लेकिन आज जिन लोगों को अलग समझा जाता है उन्हें कई प्रकार की नफ़रत का सामना करना पड़ रहा है, यहां तक कि नेता भी यहूदियों, मुस्लिमों, प्रवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य सदस्यों के प्रति हिंसा और भेदभाव को हवा दे रहे हैं.“

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ज़ोर देकर कहा कि मानवता को इस अन्यायपूर्ण और बर्बर सोच की दिशा में नहीं लौटने देना चाहिए.

इसके लिए मानवाधिकारों से जुड़ी शिक्षा को अहम बताया गया है ताकि सार्वभौमिक मानवाधिकार सिद्धांतों और इतिहास के सबक के प्रति समझ विकसित हो सके. साथ ही अपनी सरकारों की प्रति जवाबदेही तय करने में लोग सशक्त महसूस कर सकें.