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गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के रास्ते में बड़ी चुनौतियां

चाड के बोल में  स्कूल के बाद घर लौटती युवतियां.
UN Photo/Eskinder Debebe
चाड के बोल में स्कूल के बाद घर लौटती युवतियां.

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के रास्ते में बड़ी चुनौतियां

एसडीजी

अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में समावेशी और गुणवत्तापरक शिक्षा को टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने के रास्ते में एक अहम कड़ी बताया गया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद-बांडे ने इस दिवस पर अपने संदेश में कहा कि दुनिया भर में शिक्षा क्षेत्र विकराल चुनौतियों से जूझ रहा है.

यूएन महासभा प्रमुख ने इन चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता और मानकों में गिरावट आई है, टैक्नोलॉजी में अग्रणी समाजों के छात्रों और विकासशील देशों के छात्रों में ज्ञान का अंतर चौड़ा हो रहा है, हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में सीखने-पढ़ने का संकट है, स्कूलों में छात्रों की ‘बुलीइंग’ (डराने-धमकाने] के मामले बढ़ रहे हैं और अध्यापन व्यवसाय के प्रति सम्मान घट रहा है.

यूएन महासभा प्रमुख ने कहा कि मौजूदा दौर में शिक्षा को आधुनिक जगत में रोज़गार की ज़रूरतों व विशेषीकृत कौशलों और सीखने के वास्तविक अवसरों में पैदा हुई खाई को पाटना होगा.

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उनके मुताबिक स्कूली पाठ्यक्रम में कार्यस्थलों की ज़रूरतों को समझना और उनके मुताबिक़ बदलाव लाना अभी बाक़ी है. इसके लिए पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक प्रशिक्षण, वैकल्पिक रोज़गार, सूचना व संचार तकनीकों को सीखने पर ज़ोर दिया जाना होगा.

शिक्षा पर संकट

हिंसक संघर्ष से प्रभावित इलाक़ों में फंसे स्कूली बच्चों के भविष्य के प्रति गहरी चिंता ज़ाहिर की गई है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के मुताबिक वर्ष 2017 में 20 देशों में स्कूलों पर 500 हमले हुए. इनमें से 15 देशों में सुरक्षा बलों व विद्रोहियों ने कक्षाओं को मिलिट्री पोस्ट में तब्दील कर दिया था.

हज़ारों बच्चों की बालसैनिकों के रूप में भर्ती की गई, बहुत बार उन्हें आत्मघाती हमलावर बनने या सीधे तौर पर हमले करने के लिए मजबूर किया गया.

हिंसा के अलावा प्राकृतिक आपदाएं भी सीखने के माहौल के लिए जोखिम पैदा करती हैं.

चक्रवाती तूफ़ान और चरम मौसम की घटनाएं स्कूली इमारतों और शिक्षा के केंद्रों को चपेट में लेती हैं जिससे शिक्षण प्रभावित होता है.

विश्व के कुल निरक्षरों में दो-तिहाई संख्या महिलाओं की है जिनमें अधिकतर अल्पविकसित देशों में हैं.

महासभा अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद बाँडे ने हालांकि संतोष जताया कि कुछ देशों में भविष्योन्मुखी शिक्षा नीतियों से टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिली है.

इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर प्रतिभागियों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समावेशी व गुणवत्तापरक शिक्षा के श्रेष्ठ तरीक़ों पर अनुभव को साझा करने का अवसर है.

महासभा अध्यक्ष ने विश्वास जताया कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों को अमल में लाने व उन्हें हासिल करने के लिए साझेदारी अहम भूमिका निभा सकती हैं.

यही वजह है कि यूएन महासभा प्रमुख ने मुख्य प्राथमकिता क्षेत्रों में साझेदारी को बढ़ावा देने पर मज़बूती से ध्यान केंद्रित किया है जिसमें शिक्षा भी शामिल है.  

शिक्षा की ताक़त

यूएन उपमहासचिव अमीना मोहम्मद ने इस मौक़े पर अपने संबोधन में ध्यान दिलाया कि शिक्षा के पास दुनिया को आकार देने की ताक़त है.

“शिक्षा श्रम बाज़ार में महिलाओं व पुरुषों की शोषण से रक्षा करती है, महिलाओं को सशक्त बनाती है और उन्हें अपनी पसंद-नापसंद चुनने के अवसर प्रदान करती है.”

इससे व्यवहार और धारणाओं में बदलाव लाने में मदद मिल सकती है जिसके ज़रिए जलवायु परिवर्तन और ग़ैरटिकाऊ आदतों का मुक़ाबला किया जा सकता है.

कक्षा में अच्छे अनुभव लोगों के बीच पारस्परिक सम्मान और आपसी समझ को बढ़ाता है, ग़लत धारणाओं से मुक़ाबला करता है और नफ़रत भरी बोली व हिंसक चरमपंथ की रोकथाम करता है.

“शिक्षा के बग़ैर हम किसी भी टिकाऊ विकास लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते.” 

टिकाऊ विकास का चौथा लक्ष्य सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर आधारित है.

वर्ष 2030 क्षितिज पर दिखाई दे रहा है लेकिन दुनिया अब भी इन लक्ष्यों को पाने में पीछे है.

शरणार्थियों व प्रवासियों को विशेष तौर पर अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

यूएन शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक माध्यमिक शिक्षा में शरणार्थियों का अनुपात 24 फ़ीसदी है जबकि उच्चतर शिक्षा में यह घटकर महज़ तीन फ़ीसदी रह जाता है.

यही वजह है कि यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इन लक्ष्यों की दिशा में गति तेज़ करने के इरादे से कार्रवाई के दशक की पुकार लगाई है.

इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की प्रमुख ऑड्री अज़ोले ने अपने संदेश में उदगार व्यक्त किए कि शिक्षा मानवता के लिए एक मूल्यवान संसाधन है लेकिन यह दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों के लिए अब भी यह उपलब्ध नहीं है.

यूनेस्को ने आशंका जताई है कि सीखने-पढ़ने में एक वैश्विक संकट आकार ले रहा है और यह समृद्धि, पृथ्वी, शांति व लोगों के लिए एक बड़ी चिंता का कारण है.

यूनेस्को प्रमुख ने इस चुनौती से निपटने के लिए शिक्षा में ज़्यादा निवेश किए जाने की पुकार लगाई है क्योंकि शिक्षा ही भविष्य में सर्वश्रेष्ठ निवेश है.
 

सीखने-पढ़ने के संकट से मुक़ाबले और शिक्षा का स्तर बढ़ाने के उपाय

  • सुनिश्चित किया जाए कि अध्यापन की गुणवत्ता में गिरावट ना आए
  • स्कूली पाठ्यक्रम रोज़गार देने वाले कामकाज के लिए ज़रूरी कौशल व क्षमताएँ विकसित करने वाला हो
  • लैंगिक समानता, सामाजिक गतिशीलता व अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा मिले
  • विकलांगों को शिक्षा में अवसर हासिल हों
  • हिंसा व जलवायु के कारण शिक्षा के लिए उपजी चुनौतियों के उपाय हों
  • सरकारों, शिक्षा नियोजकों व प्रशासकों के साथ मिलाकर शिक्षा प्रणाली में सुधार पर काम हो
  • शिक्षा में लैंगिक, डिजिटल और वित्तीय खाई को पाटा जाए