बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों से जलवायु कार्रवाई की अपील
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि अगर विश्व के प्रमुख औद्योगिक देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं की तो जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए अभिशाप बन कर रह जाएगा. स्विट्ज़रलैंड के दावोस शहर में विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान यूएन प्रमुख ने आगाह किया कि कई छोटे विकासशील देशों और योरोपीय संघ ने वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी (नैट शून्य कार्बन उत्सर्जन की स्थिति) का संकल्प लिया है लेकिन बड़े उत्सर्जक देशों द्वारा कार्रवाई किया जाना अभी बाक़ी है.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि जी-20 समूह के देश ही 80 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार हैं जो जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण है.
उन्होंने कहा कि अगर कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार बड़े देशों की ओर से ठोस क़दम नहीं उठाए गए तो फिर जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विनाश को रोका नहीं जा सकेगा.
यूएन प्रमुख ने जलवायु संकट को एक बड़ा ख़तरा बताते हुए कहा, “मानवता ने प्रकृति के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी है और प्रकृति अब एक बेहद हिंसक रूप में जवाब दे रही है. हम इस लड़ाई को नहीं जीत पा रहे हैं जबकि हमें ऐसा करना होगा.”
पेरिस समझौते का उल्लेख करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि वैज्ञानिकों ने इस चुनौती के समाधान का रास्ता दिखाया है, लेकिन पेरिस में किए गए संकल्पों को पूरा करने में राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव आड़े आ रहा है.
महासचिव का कहना था कि अगर बदलाव नहीं किए गए तो धरती के औसत तापमान में तीन से चार डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है.
आशंका जताई गई है कि तापमान में इतनी अधिक वृद्धि होने के विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं.
उन्होंने कहा कि एशिया में कोयले पर निर्भरता को कम करना होगा.
“हमें कार्बन की क़ीमत तय करने की ज़रूरत है. इसका वास्तव में असर पड़ता है जिसकी क़ीमत होनी चाहिए. वेतन के बजाय कार्बन पर टैक्स पर लगाने की ज़रूरत है जो हर नज़रिए से फ़ायदेमंद है. हमें जीवाश्म ईंधनों पर सब्सिडी में कटौती करने की ज़रूरत है.”
यूएन प्रमुख ने स्पष्ट किया कि निजी सैक्टर ने पर्यावरण के प्रति जो संकल्प दर्शाया है उससे वह उत्साहित हैं.
बड़ी संख्या में वित्तीय संस्थान और पूंजी प्रबंधक अपने निवेशों में कार्बन न्यूट्रैलिटी को प्राथमिकता बना रहे हैं. इसी तरह शहर, मतदाता और युवा भी कार्रवाई के लिए प्रयासों को मज़बूती दे रहे हैं.
उन्होंने आशा जताई कि सार्वजनिक व निजी सैक्टरों की मदद के ज़रिए कायापलट करने वाले बदलाव हासिल किए जा सकते हैं.