रोहिंज्या: म्याँमार को समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश

संयुक्त राष्ट्र की क़ानूनी संस्था अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने म्याँमार से देश में अल्पसंख्यक रोहिंज्या समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव क़दम उठाने को कहा है. कोर्ट ने गुरूवार को एक 'अस्थाई आदेश' जारी करके जनसंहार के अपराधों से संबंधित तथ्यों को नष्ट होने से बचाने की व्यवस्था करने का भी आग्रह किया है.
इस्लामी सहयोग संगठन की ओर से गांबिया ने म्याँमार के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला दर्ज करते हुए आरोप लगाया था कि मुस्लिम रोहिंज्या समुदाय के ख़िलाफ़ कथित रूप से जनसंहारक गतिविधियां की गईं.
बौद्ध बहुल देश म्यांमार में रोहिंज्या समुदाय मुख्य रूप से देश के उत्तरी हिस्से में स्थित रखाइन प्रांत में बसा है.
अगस्त 2017 में सैन्य कार्रवाई के बाद क़रीब सात लाख से ज़्यादा लोगों को भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस कार्रवाई में कथित रूप से व्यापक पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे थे.
READ HERE: summary of the #ICJ Order on the request for the indication of provisional measures made by The Gambia in the case of Application of the Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide (#TheGambia v. #Myanmar) https://t.co/RFGVUN5hOx pic.twitter.com/FvfRRzrkte
CIJ_ICJ
न्यूज़ रिपोर्टों के अनुसार छह लाख से ज़्यादा रोहिंज्या अब भी म्याँमार में रह रहे हैं. कोर्ट ने कहा है कि उन लोगों को हमलों और यातना के डर के साए में रहना पड़ रहा है.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अपने 'अस्थाई आदेश' में म्यांमार को Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide यानी 'जनसंहार की रोकथाम व दंडापराध संधि' के तहत तय किए दायित्वों का पालन करने के लिए कहा है.
म्याँमार से आग्रह किया गया है कि सेना या हथियारबंद गुटों द्वारा रोहिंज्या लोगों की हत्याओं को रोकने और उन्हें शारीरिक व मानसिक हानि से बचाने के लिए हरसंभव क़दम उठाया जाए.
साथ ही म्याँमार को चार महीने के भीतर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है जिसके उपरांत हर छह महीने में एक नई रिपोर्ट न्यायालय में पेश की जाएगी.
इस मुद्दे पर कोर्ट का अंतिम निर्णय आने तक हर छह महीने में रिपोर्टें पेश करने का यह सिलसिला जारी रहेगा.
म्याँमार की नेता ऑंग सान सू ची ने दिसंबर 2019 में अदालत की कार्रवाई शुरू होने पर अपने देश का पक्ष न्यायालय के सामने रखा था.
उन्होंने इस मामले को अधूरा और रख़ाइन प्रांत में घटनाओं के ग़लत तथ्य सामने रखने वाला क़रार दिया था.
उन्होंने कोर्ट के सामने पेश होकर कहा था कि दोषी साबित होने पर सैन्य नेताओं पर मुक़दमा चलाया जाएगा. साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि अगर युद्धापराध के मामले साबित होते हैं तो फिर देश की सैन्य न्याय प्रणाली के दायरे में मुक़दमे चलाए जाएंगे.
गुरुवार को आया न्यायालय का फ़ैसला दर्शाता है कि म्याँमार की नेता की उन दलीलों को एक तरह से ख़ारिज कर दिया गया है.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का यह आदेश अस्थाई (प्रोविज़नल) होने के बावजूद म्याँमार के लिए बाध्यकारी है.
कोर्ट के आदेश की समीक्षा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में की जाती है लेकिन ख़बरों के अनुसार अंतिम फ़ैसला आने में अभी कई वर्षों का समय लग सकता है.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है और इसे आम तौर पर विश्व अदालत के तौर पर जाना जाता है.
यह देशों के बीच क़ानूनी विवादों का निपटारा करता है और संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं द्वारा पूछे गए क़ानूनी सवालों पर सलाहकारी राय उपलब्ध कराता है.
कोर्ट में 15 न्यायाधीश हैं जिन्हें नौ साल के लिए चुना जाता है और यह नैदरलैंड्स के हेग शहर में स्थित है.
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ और म्यांमार पर विशेष रैपोर्टेयर येंगही ली ने बांग्लादेश और थाईलैंड़ का अपना अंतिम दौरा पूरा कर लिया है.
इससे पहले म्याँमार में प्रवेश के उनके अनुरोध को वहाँ की सरकार ने ठुकरा दिया था जिसके बाद उन्होंने थाईलैंड और बांग्लादेश जाकर म्याँमार में हालात के बारे में जानकारी जुटाई.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ की नियुक्ति वर्ष 2014 में की थी जिसके बाद वो साल में दो बार म्यांमार का दौरा करती रहीं.
लेकिन म्याँमार सरकार ने दिसंबर 2017 में उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया गया था.
म्याँमार में मौजूदा हालात पर वह अपनी अंतिम रिपोर्ट जिनीवा में मानवाधिकार परिषद में मार्च 2020 में पेश करेंगी.