वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

दो तिहाई आबादी है 'असमान', व्यापक सुधार की ज़रूरत

तंज़ानिया के दार ए सलाम में ज़नाकी इलाक़े में एक प्राईमरी स्कूल के छात्र
World Bank/Sarah Farhat
तंज़ानिया के दार ए सलाम में ज़नाकी इलाक़े में एक प्राईमरी स्कूल के छात्र

दो तिहाई आबादी है 'असमान', व्यापक सुधार की ज़रूरत

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या के लिए विषमता बढ़ रही है जिससे समाजों में दरारें पड़ने और आर्थिक व सामाजिक विकास के बाधित होने का जोखिम बढ़ रहा है. मंगलवार को जारी विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2020 संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक मामलों के विभाग (डेसा) ने प्रकाशित की है.

इसमें दिखाया गया है कि ज़्यादातर विकसित देशों और कुछ मध्य आय वाले देशों में आय असमानता बढ़ी है. इन देशों में चीन भी शामिल है जिसे विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश कहा जाता है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि विश्व के सामने इस समय बहुत गहरे विषम वैश्विक पटल की चुनौती दरपेश है, जिसमें आर्थिक चिंताओं, विषमताओं और रोज़गार असुरक्षा के कारणों से व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं, और ऐसा विकसित व विकासशील दोनों ही देशों में हो रहा है.

विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2020
United Nations
विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2020

महासचिव ने प्रस्ताव में लिखा है, “आय में असमानता और रोज़गार के असवरों की कमी के कारण विषमताओं का कुचक्र बन रहा है जिससे सभी पीढ़ियों में हताशा और निराशा घर कर रही है.”

ये रिपोर्ट दिखाती है कि बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था में आबादी का केवल एक प्रतिशत धनी हिस्सा ही बड़ा विजयी नज़र आता है. इस हिस्से ने 1990 से 2015 के बीच अपनी संपदा की हिस्सेदारी बहुत बढ़ाई है.

जबकि दूसरी तरफ़ समाज के निचले स्तर पर रहने वाले लगभग 40 प्रतिशत लोगों की कुल आमदनी उस धनी समूह का केवल लगभग 25 प्रतिशत के बराबर होता है.

ये हालात उन सभी देशों में देखे गए हैं जहाँ सर्वे किया गया.

रिपोर्ट कहती है कि समाजों में व्याप्त इस असमानता के अनेक नतीजों में से आर्थिक प्रगति का धीमा हो जाना भी होता है.

असमान समाजों में स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाओं में व्पायक असमानता होता है और ऐसे हालात में लोगों के ग़रीबी के दलदल में कई पीढ़ियों तक फँसे रहने की बहुत ज़्यादा संभावना होती है.

देशों के मध्य औसत आमदनी का अंतर कम हो रहा है, चीन और अन्य एशियाई देश वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रगति में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इसके बावजूद धनी व ग़रीब देशों और क्षेत्रों के बीच बहुत तीखे अंतर भी हैं.

मसलन, उत्तर अमेरिका में औसत आमदनी सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र के देशों के में रहने वाले लोगों की तुलना में 16 गुना ज़्यादा है.

चार वैश्विक कारक

रिपोर्ट में कहा गया है कि चार ऐसे सबसे शक्तिशाली कारक हैं जो दुनिया भर में असमानता पर सबसे ज़्यादा असर डाल रहे हैं, इन्हें मेगाट्रेंड भी कहा जाता है. ये हैं - प्रोद्योगिकी नवाचार, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और आंतरिक प्रवासन.

टैक्नोलॉजी नवाचार जहाँ एक तरफ़ स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, संचार और उत्पादकता जैसे क्षेत्रों में नए अवसर मुहैया कराकर आर्थिक वृद्धि को सहारा दे सकता है, वहीं ऐसे सबूत भी सामने आए हैं कि इससे लोगों के वेतन या मेहनताना में असमानता बढ़ती है और बहुत से कामगारों को विस्थापित भी होना पड़ता है.

बॉयोलॉजी और जेनेटिक्स के साथ-साथ रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसे श्रेत्रों में तेज़ी से हो रही प्रगति समाजों को बहुत तेज़ी से बदल रही है.

नई टैक्नोलॉजी में बहुत से कामकाजों में लोगों की भूमिका को पूरी तरह से ख़त्म करने की भी क्षमता मौजूद है लेकिन साथ ही इसके ज़रिए नए कामकाज, और नवाचार भी उत्पन्न हो सकते हैं.

फिलहाल, हालाँकि उच्च कौशल व हुनरमन्द लोग इस दौर के बहुत फ़ायदे उठा रहे हैं जिसे “चौथी औद्योगिक क्रांत” भी कहा जाता है. जबकि कम कुशल और मध्य स्तर के कुशल कामकाजी लोगों साधारण कामकाज में लगे हुए हैं और उन्हें अपने कामकाजी अवसर कम होते नज़र आ रहे हैं.

इस रिपोर्ट को यूएनडीपी और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन संस्था ने मिलकर तैयार किया है.
UN News/Elizabeth Scaffidi
इस रिपोर्ट को यूएनडीपी और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन संस्था ने मिलकर तैयार किया है.

जैसाकि गुरुवार, 16 जनवरी 2020 को वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन भी जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डाल रहा है. प

र्यावरण क्षय और मौसम की चरम घटनाओं का सबसे ज़्यादा असर कमज़ोर स्थितियों में रहने वाले लोगों पर पड़ रहा है.

विश्व सामाजिक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन विश्व के निर्धन देशों को निर्धनतम बना रहा है और इसके कारण वो प्रगति पलट सकती है जो देशों ने असमानता कम करने के लिए  अभी तक हासिल की है.

जलवायु संकट का सामना करने के लिए अगर उम्मीद के अनुसार कार्रवाई हुई तो कार्बन उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में कामकाज के अवसर कम होंगे और इनमें सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है – कोयला उद्योग.

लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था को हरित ऊर्जा बनाने के प्रयासों की बदौलत उतने की कामकाजी अवसर उत्पन्न भी हो सकते हैं. और ये नए कामकाजी अवसर पूरे विश्व में होंगे.

इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब ग्रामीण इलाक़ों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज़्यादा लोग रहते हैं. ये रुझान आने वाले दशकों में जारी रहने की संभावना है.

शहर अलबत्ता आर्थिक वृद्धि को तेज़ करते हैं, लेकिन उनमें गाँवों की तुलना में ज़्यादा असमानता भी होती है. शहरों में बहुत ही धनी लोगों के पास ही बहुत ग़रीब लोग भी रहते हैं.

असमानताओं का ये स्तर हर शहर में अलग-अलग होता है जोकि एक ही देश में भी बहुत अलग-अलग देखा गया है.

ये शहर जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं और इनका विकास होता है, वहाँ असमानता और ज़्यादा बढ़ती है, जबकि दूसरी तरफ़ ऐसे शहर में हैं जहाँ असमानता कम हुई है.

प्रवासन वैश्विक असमानता का चिन्ह

चौथा मेगाट्रेंड – अंतरराष्ट्रीय प्रवासन है जिसे “वैश्विक असमानता का ताक़तवर प्रतीक” और साथ ही “सही परिस्थितियों में समानता के लिए एक ताक़त” भी कहा जाता है.

रिपोर्ट कहती है कि जब देशों विकास और औद्योगिकरण होना शुरू हो जाता है तो देशों के बीच प्रवासन  बढ़ने का रुझान होता है.

इस तरह कम आमदनी वाले देशों की तुलना में मध्य आय वाले देशों के लोग विदेशों के लिए ज़्यादा प्रवासन करते हैं.

आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय प्रवासन को प्रवासियों, उनके मेज़बान देश और उनके मूल देश सभी के लिए फ़ायदेमंद समझा जाता है क्योंकि वो अपने मूल स्थानों को धन भी भेजते हैं और जहाँ रहकर काम करते हैं वहाँ तो फ़ायदा पहुँचता ही है.

कुछ मामलों में ऐसा देखा गया है कि जहाँ प्रवासी लोग कम हुनर वाले काम के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल होते हं तो वहाँ वेतन या मेहनताना घटाया भी जाता है, जिससे असमानता बढ़ती है.

लेकिन प्रवासी लोगों के पास अगर ज़्यादा कौशल व हुनर होता है और उनकी संख्या माँग की तुलना में कम होती है, या फिर वो ऐसा काम करने के लिए तैयार हों जो अन्य स्थानीय लोग नहीं करते हैं तो इसका उनकी बेरोज़गारी की स्थिति में सुधारात्मक असर पड़ सकता है.

रिपोर्ट कहती है कि देशों में असमानता को दूर करना नीति निर्माण में बहुत अहम घटक होना चाहिए.

इसका मतलब है कि नई टैक्नोलॉजी की संभावनाओं को ग़रीबी दूर करने और कामकाज व रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिए किया जाए; कमज़ोर तबके के लोगों को जलवायु संकट के प्रभावों के ख़िलाफ़ ज़्यादा मज़बूत बनने मौक़े मिलें; शहर ज़्यादा समावेशों हों; और प्रवासन एक सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित माहौल में हो.