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'अच्छा स्वास्थ्य सबका मानवधिकार, केवल अमीरों का विशेषाधिकार नहीं'

लाइबेरिया के मोनरोविया अस्पताल में इलाज के लिए मौजूद कुछ मरीज़
World Bank/Dominic Chavez
लाइबेरिया के मोनरोविया अस्पताल में इलाज के लिए मौजूद कुछ मरीज़

'अच्छा स्वास्थ्य सबका मानवधिकार, केवल अमीरों का विशेषाधिकार नहीं'

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अच्छा स्वास्थ्य पाने का अधिकार सभी लोगों को है और ये केवल धनी लोगों का विशेषाधिकार नहीं हो सकता. यूएन एड्स ने सरकारों का आहवान किया है कि तमाम लोगों के अच्छा स्वास्थ्य रखने के अधिकार को वास्तविक रूप देने के लिए स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सरकारी धन निवेश को प्राथमिकता देनी होगी.

यूएन एड्स की मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि टैक्स बचाने के तरीक़े पर लगाम लगाकर वो धन स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश करके सभी लोगों को बेहतर व सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराई जा सकती हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग आधी आबादी को ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं. हर दो मिनट में एक महिला की मौत बच्चे को जन्म देते समय हो जाती है.

पर्याप्त व समुचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित समूहों में महिलाएँ, किशोर, एचआईवी संक्रमित लोग, ऐसे पुरुष जो पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाते हैं, यौनकर्मी, जो लोग इंजेक्शन के ज़रिए ड्रग्स लेते हैं, ट्रांसजेंडर लोग, प्रवासी, शरणार्थी और ग़रीब लोग शामिल हैं.

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में लुबुमबाशी के एक स्वास्थ्य केंद्र में एक मां अपने 3 महीने के बच्चे को ख़सरे का टीका लगवा रही है.
© UNICEF/Karel Prinsloo
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में लुबुमबाशी के एक स्वास्थ्य केंद्र में एक मां अपने 3 महीने के बच्चे को ख़सरे का टीका लगवा रही है.

यूएनएड्स की महानिदेशक विनी ब्यानयीमा का कहना है, “अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार ग़रीबों को नज़रअंदाज़ कर रहा है और जो लोग ख़ुद को ग़रीबी से निकालने की कोशिश कर रहे हैं वो स्वास्थ्य देखभाल पर आने वाले भारी-भरकम ख़र्च के बोझ तले दबे-कुचले जा रहे हैं जो अस्वीकार्य है. सबसे धनी 1 प्रतिशत लोगों को अत्याधुनिक वैज्ञानिक लाभ मिलते हैं जबकि ग़रीब लोगों को केवल बुनियादी स्वास्थ्य सेवा हासिल करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है.”

रिपोर्ट कहती है कि स्वास्थ्य सेवाओं पर आने वाले ख़र्च का भुगतान करने के कारण दुनिया भर में लगभग 10 करोड़ लोग अत्यधिक ग़रीबी के गर्त में धकेल दिए जाते हैं.

अत्यधिक ग़रीबी को इस रूप में परिभाषित किया गया है जहाँ किसी व्यक्ति को एक दिन का ख़र्च उठाने के लिए केवल 1 डॉलर 90 सेंट या उससे कम की रक़म उपलब्ध हो.

दुनिया की लगभग 12 प्रतिशत जनसंख्या यानी 93 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों को अपने परिवार का लगभग 10 प्रतिशत बजट स्वास्थ्य देखभाल पर ख़र्च करना पड़ता है.

बहुत से देशों में भारी-भरकम ख़र्च के कारण या तो लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा जाता है या उन्हें घटिया स्वास्थ्य सेवाएँ मिलती हैं क्योंकि उनका ख़र्च नहीं उठा सकते.

महिलाएँ व लड़कियाँ प्रभावित

कलंक मानसिकता व भेदभाव के कारण ग़रीब और कमज़ोर हालात में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिलता, इनमें विशेष रूप से महिलाओं को अच्छे स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित रहना पड़ता है.

दुनिया भर में हर सप्ताह लगभग छह हज़ार युवाए महिलाएँ एचआईवी से संक्रमित हो जाती हैं. सब सहारा अफ्रीका में किशोरों में एचआईवी के संक्रमण के हर पाँच नए मामलों में से चार किशोर लड़कियाँ होती हैं. उस क्षेत्र में प्रजनन आयु में महिलाओं की मृत्यु की का सबसे कारण एड्स संबंधित बीमारियाँ होती हैं.

एड्स संबंधित मौतों और एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में कमी होने के बावजूद, 2018 में एचआईवी संक्रमण के 17 लाख नए मामले हुए. लगभग एक करोड़ 50 लाख लोग अब भी एचआईवी संक्रमण का इलाज मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

ये बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि धनी लोग और विशाल कंपनियाँ अपने टैक्स अदा ना करें जबकि साधारण लोगों को अपने ख़राब स्वाथ्य से का बोझ उठाना पड़े. बड़ी कंपनियाँ अपना टैक्स अदा करें, कर्मचारियों के अधिकार संरक्षित करें, समान काम के लिए समान मेहनताना दें और सभी के लिए सुरक्षित कामकाजी माहौल मुहैया कराएँ, ख़ासतौर से महिलाओं का विशेष ध्यान रखा जाए.

यूएन एड्स की महानिदेशक का कहना है, “सरकारी धन से चलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं समाज में सभी को बराबरी सुनिश्चित करने के लिए सबसे अच्छा तरीक़ा है."

"जब स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी धन में कटौती की जाती है या पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं होता तो सबसे पहले समाज के ग़रीब और कमज़ोर समूहों के लोग का स्वास्थ्य का अधिकार छिन जाता है. इनमें विशेष रूप से महिलाएं और लड़कियाँ ज़्यादा प्रभावित होती हैं जबकि अपने परिवारों की देखभाल करने का ज़्यादा बोझ भी उनके कंधों पर ही होता है.”

यूएन एड्स की रिपोर्ट कहती है कि सभी लोगों को आसान स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना एक ऐसा राजनैतिक विकल्प है जो बहुत सी सरकारें नहीं अपना रही हैं.

थाईलैंड की मिसाल

थाईलैंड ने अपने यहाँ पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत की दर घटाकर प्रति 1000 बच्चों पर 9.1 कर ली है. जबकि अमेरिका में ये दर प्रति 1000 पर 6.3 है.

ग़ौरतलब है कि थाईलैंड की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अमेरिका के मुक़ाबले लगभग दसवाँ हिस्सा है.

थाईलैंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में ये प्रगति सरकारी धन से चलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की बदौलत हासिल की गई है. ये स्वास्थ्य सेवाएँ थाईलैंड के हर एक नागरिक को जीवन के हर स्तर पर मिलती हैं और इनमें किसी को भी पीछे नहीं छोड़ जाता है.

अनेक देशों में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी धन का निवेश उनके सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में बहुत कम होता है.

व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (अंकटाड) का अनुमान है कि विकासशील देशों को विशाल कंपनियों द्वारा कॉरपोरेशन टैक्स बचाने और लाभ की धनराशि को इधर-उधर लगाने से हर साल 150 अरब से लेकर 500 अरब डॉलर के बीच की रक़म गँवानी पड़ती है.

रिपोर्ट के अनुसार अगर ये रक़म स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश कर दी जाए तो निम्न आय वाले देशों में तीन गुना ज़्यादा और निम्न-मध्य आय वाले देशों में दो गुना ज़्यादा रक़म स्वास्थ्य ढाँचे के लिए उपलब्ध हो सकती है.

विकासशील देशों में कॉरपोरेशन टैक्स बचाने की होड़ में लगे धोखेबाज़ लोग अपने देश को बहुत बड़े राजस्व का चूना लगाते हैं और साधारण लोगों को बहुत ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखते हैं.

यूएन एड्स की महानिदेशक विनी ब्यानयीमा का कहना है, “ये बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि धनी लोग और विशाल कंपनियाँ अपने टैक्स अदा ना करें जबकि साधारण लोगों को अपने ख़राब स्वाथ्य से का बोझ उठाना पड़े. बड़ी कंपनियाँ अपना टैक्स अदा करें, कर्मचारियों के अधिकार संरक्षित करें, समान काम के लिए समान मेहनताना दें और सभी के लिए सुरक्षित कामकाजी माहौल मुहैया कराएँ, ख़ासतौर से महिलाओं का विशेष ध्यान रखा जाए.”