सीरिया: युद्ध ने बच्चों की दुनिया व सपने उजाड़ दिए हैं
सीरिया में नौ वर्ष से जारी भीषण लड़ाई और अशांति ने वहाँ के बच्चों का ना सिर्फ़ बचपन तबाह कर दिया है बल्कि उनके अधिकारों की तो धज्जियाँ उड़ा दी हैं. बड़े पैमाने पर लड़कों और लड़कियों की हत्याएँ हुई हैं, वो घायल हुए हैं, विस्थापित होने के साथ-साथ उन्हें उत्पीड़न, बलात्कार और यौन ग़ुलामी का भी शिकार होना पड़ा है.
संयुक्त द्वारा सीरिया में जाँच के लिए गठित एक आयोग की एक ताज़ा रिपोर्ट में ये दिल दहला देने वाली जानकारी सामने आई है. ये रिपोर्ट गुरुवार, 16 जनवरी 2020 को जिनीवा में जारी की गई.
Pinheiro @UNCoISyria Chair: “#Children continue to be brutally scarred in the #Syria #conflict - they have been killed and maimed, recruited to participate in hostilities, detained and tortured, and have been subject to #SGBV. This is a tragedy!”https://t.co/iQh2sl7CzH @UNGeneva pic.twitter.com/1duHdOrw73
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जाँच आयोग के अध्यक्ष पावलो सर्गियो बिनहीरो ने रिपोर्ट जारी होने के मौक़े पर कहा, “संघर्ष में संलिप्त सभी पक्षों द्वारा युद्ध के क़ानून और बाल अधिकारों पर मौजूद कन्वेंशन की अनदेखी करने के धूर्ततापूर्ण चलन पर मैं बहुत दुखी और हतप्रभ हूँ.”
“वैसे तो देश में सभी लड़कों और लड़कियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सीरियाई अरब गणराज्य की सरकार की है, लेकिन युद्ध में शामिल तमाम पक्षों को बच्चों की सुरक्षा व भावी पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए और ज़्यादा उपाय करने होंगे.”
सपने उजड़े
तीन सदस्यों वाले जाँच आयोग को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सीरिया में मार्च 2011 में शुरू हुए गृह युद्ध के दौरान अंतरराष्ट्रीय क़ानून के उल्लंघन के तमाम मामलों की जाँच करने और उनका लेखा-जोखा तैयार करने के लिए नियुक्त किया था.
जाँच आयोग की रिपोर्ट को शीर्षक दिया गया है – “उन्होंने मेरे बच्चों के सपने उजाड़ दिए हैं”.
ये शीर्षक 2012 में एक महिला के साथ हुई बातचीत से लिया गया है जिसमें उस महिला ने इदलिब में अपने गाँव पर हुए हमलों के हालात का ब्यौरा दिया था.
ये रिपोर्ट सितंबर 2011 से लेकर अक्टूबर 2019 के बीच लगभग 5000 लोगों के साथ बातचीत के बाद तैयार की गई है.
इनमें ज़्यादातर सीरियाई बच्चे थे, मगर तबाही वाले हालात को अपनी आँखों से देखने वालों, युद्धक हालात के प्रभावितों और उनके संबंधियों, चिकित्सा कर्मचारियों, सशस्त्र गुटों के सदस्यों, वकीलों और समुदायों के अन्य प्रभावित लोगों के साथ भी बातचीत की गई.

जाँच आयोग का कहना है कि सीरियाई सरकार समर्थिक सेनाओं द्वारा क्लस्टर विस्फोटक बारूद, थरमोबैरिक बम और रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल किए जाने से बड़ी संख्या में बच्चे हतात हुए हैं.
इनके अलावा इस युद्ध में बच्चों के भयावह अनुभव लिंग आधारित भी रहे हैं.
लड़कियों और महिलाओं पर भारी तबाही
महिलाएँ और लड़कियाँ विशेष रूप से यौन हिंसा का बहुत ज़्यादा शिकार हुई हैं और बलात्कार की धमकियों और जोखिम की वजह से उनकी गतिविधियाँ सीमित हो गई हैं.
लड़कियाँ अपने घरों की चारदीवारी में रहने को मजबूर हैं, उन्हें स्कूल से हटना पड़ा है और यहाँ तक कि उनकी स्वास्थ्य देखभाल के रास्ते में भी रुकावटें आ रही हैं.
उधर ख़ासतौर से 12 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लड़कों को गिरफ़्तार कर लिया गया है और उन्हें बंदीग्रहों में रखा जा रहा है. उन्हें हथियारबंद गुटों और मिलिशिया में भर्ती करने की भी कोशिशें की जाती हैं.
एक हथियारबंद गुट के साथ संबद्ध एक व्यक्ति ने जाँच आयोग के सदस्यों को बताया, “छोटी उम्र के लड़के बहुत अच्छे लड़ाके साबित होते हैं. वो बहुत जोशो-ख़रोश के साथ लड़ाई में हिस्सा लेते हैं और वो निडर होते हैं. 14 से 17 वर्ष की उम्र के किशोर लड़ाकों को फ्रंटलाइन पर लड़ने के लिए भेजा जाता है.”
युद्ध के कारण बच्चों की शिक्षा प्राप्ति पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है. 21 लाख से ज़्यादा बच्चे ऐसे हैं जो किसी भी तरह की स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर रहे हैं.
जाँच आयोग के एक सदस्य कैरेन अबूज़ायद का कहना था, “सीरियाई सरकार को ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस और तत्काल उपाय करने करने होंगे. जिन सशस्त्र गुटों का इलाक़ों पर क़ब्ज़ा है उन्हें भी बच्चों के लिए शिक्षा की सुविधा आसान बनाने के लिए तेज़ी से कार्रवाई करनी होगी.”
उन्होंने मेरे बच्चों के सपने उजाड़ दिए हैं. हमने अपनी पूरी ज़िन्दगी जो बनाने-सँवारने की कोशिश की, उन्होंने वो सब कुछ तबाह कर दिया है.
बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए संकल्प
रिपोर्ट में इस युद्ध के बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहे गंभीर दीर्घकालिक असर के बारे में भी चिंताएँ व्यक्त की गई हैं.
सीरियाई में बड़ी संख्या में बच्चे विकलांग हो रहे हैं और उन्हें विनाशकारी मनोवैज्ञानिक व अपने विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा युद्ध की वजह से 50 लाख से भी ज़्यादा बच्चों को विस्थापन झेलना पड़ा है.
इदलिब इलाक़े में रहने वाली एक महिला का कहना था: “उन्होंने मेरे बच्चों के सपने उजाड़ दिए हैं. हमने अपनी पूरी ज़िन्दगी जो बनाने-सँवारने की कोशिश की, उन्होंने वो सब कुछ तबाह कर दिया है."
"जब हमारी बेटी को ये मालूम हुआ कि हमारा घर जला दिया गया है तो मेरी बेटी को बहुत सदमा पहुँचा. मेरा अन्य बच्चा – तीन साल का बेटा इस संकट की वजह से बहुत उदास और सदमे में है. वो बस टैंकों की तस्वीरें बनाता रहता है.”
जाँच आयोग के सदस्यों ने सीरिया में युद्धरत सभी पक्षों का आहवान किया है कि वो युदधकाल में बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत सुरक्षा सुनिश्चित करने का संकल्प लिखकर दें.
जाँच आयोग ने ये भी सिफ़ारिश की है कि बच्चों की लड़ाई के इरादे से भर्ती किया जाना बन्द हो और मिलिटरी ट्रेनिंग के दौरान बच्चों के अधिकारों का भी ख़याल रखा जाए.
जाँच आयोग के सदस्यों का ये भी कहना है कि विस्थापित बच्चों के अधिकारों को भी संरक्षण दिए जाने की ज़रूरत है. इसमें आईसिल के चरमपंथी लड़ाकों से संबंध रखने वाले परिवारों को भी बच्चे वापिस करना शामिल है.
जांच आयोग के एक सदस्य हैन्नी मीकली का कहना था, “बच्चों की सुरक्षा के लिए देशों की ज़िम्मेदारियाँ बहुत स्पष्ट तरीक़े से परिभाषित की हुई हैं. इनमें बच्चों को देश विहीन होने से बचाया जाना भी शामिल है. ऐसे बुनियादी सिद्धातों पर अमल करने में नाकाम होने पर स्पष्ट तौर पर क़ानून का उल्लंघन है.”