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जलवायु संकट से जीवन की गुणवत्ता प्रभावित, बढ़ रहा है असंतोष

मेडागास्कर में कुछ महिलाएं सब्ज़ियों वाले खेत में काम करती हुईं. इनके खेतों को बहुत छोटे स्तर पर मुहैया कराई गई सिंचाई व्यवस्था से पानी मिलता है. इस परियोजना को विश्व खाद्य कार्यक्रम से सहायता मिलती है.
WFP/Giulio d'Adamo
मेडागास्कर में कुछ महिलाएं सब्ज़ियों वाले खेत में काम करती हुईं. इनके खेतों को बहुत छोटे स्तर पर मुहैया कराई गई सिंचाई व्यवस्था से पानी मिलता है. इस परियोजना को विश्व खाद्य कार्यक्रम से सहायता मिलती है.

जलवायु संकट से जीवन की गुणवत्ता प्रभावित, बढ़ रहा है असंतोष

आर्थिक विकास

जलवायु संकट, दुनिया भर में लगातार जारी गंभीर विषमताएँ, खाद्य असुरक्षा के बढ़ते स्तर और कुपोषण जैसी स्थितियाँ बहुत से समाजों में लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही हैं जिनके कारण असंतोष भी बढ़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र की विश्व आर्थिक स्थिति व संभावनाओं पर वर्ष 2020 की रिपोर्ट में ये आकलन पेश किया गया है. रिपोर्ट के लेखकों ने संकट का सामना करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में व्यापक बदलाव करने का आहवान किया है.  

जलवायु संकट, लगातार बढ़ती असमानताएं और खाद्य असुरक्षा व अल्प-पोषण के बढ़ते स्तर से अनेक समाजों में जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है.

संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अर्थशास्त्री व आर्थिक विकास के लिए सहायक महासचिव इलियट हैरिस ने ज़ोर देते हुए कहा, “नीति निर्माताओं को केवल जीडीपी विकास को बढ़ावा देने  की संकीर्ण सोच से आगे बढ़कर समाज के सभी हिस्सों में कल्याण के कार्य बढ़ाने का लक्ष्य रखना होगा."

"इसके लिए शिक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा और मज़बूत बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए सतत विकास परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है."

रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनिया की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को नवीकरणीय या निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोतों से पूरा करना होगा.

इसके लिए ऊर्जा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर समायोजन की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग तीन चौथाई हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है.

विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन यदि विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बराबर ही बढ़ता है, तो 2050 तक शून्य उत्सर्जन हासिल करने के वैश्विक लक्ष्य के उलट वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 250 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी हो जाएगी. 

इरिट्रिया में सौर ऊर्जा स्टेशन जो आसपास की दो ग्रामीण बस्तियों और गाँवों को बिजली मुहैया कराता है.

ऊर्जा परिवर्तन की तात्कालिकता को अब भी कम करके आंका जा रहा है, जिससे तेल और गैस की खोज व कोयला आधारित बिजली उत्पादन में निवेश करने जैसे अदूरदर्शी फैसले लिए जा रहे हैं.

इससे न केवल अनेक निवेशकों और सरकारों को अचानक नुक़सान का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि पर्यावरणीय लक्ष्य हासिल करने के रास्ते में भी रोड़े अटकने का जोखिम पैदा होता है.

ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में निर्णायक कार्रवाई में कोई भी देरी अंततः लागत को दोगुना कर सकती है. स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोतों की तरफ़  बदलाव से न केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य लाभ मिलेगा, बल्कि अनेक देशों को आर्थिक अवसर भी मुहैया होंगे.

जीडीपी

वैश्विक अर्थव्यवस्था में लंबे समय से व्यापार विवादों के प्रभावों के कारण पिछले एक दशक में सबसे कम वृद्धि हुई और ये 2019 में 2.3 प्रतिशत दर्ज की गई.

हालाँकि संयुक्त राष्ट्र की विश्व - आर्थिक स्थिति व संभावनाएँ रिपोर्ट कहती है कि अगर जोखिमों को एक तरफ़ रख दिया जाए तो 2020 में दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों में कुछ वृद्धि होने की भी संभावना नज़र आती है.

गुरुवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि संभव तो है, लेकिन व्यापारिक तनाव, वित्तीय उथल-पुथल या भू-राजनैतिक तनावों में बढ़ोत्तरी से प्रगति पटरी से उतर भी सकती है.

नीचे के रुख़ वाले परिदृश्य का आकलन करें तो 2020 में वैश्विक विकास दर धीमी होकर 1.8 प्रतिशत पर भी  जा सकती है. 

लंबे समय से वैश्विक आर्थिक गतिविधियों के कमज़ोर रहने से स्थाई विकास को बड़ा झटका लग सकता है, जिसमें ग़रीबी उन्मूलन और सभी के लिए अच्छे रोज़गार पैदा करने के लक्ष्यों पर नकारात्मक असर पड़ना शामिल होगा. साथ ही, व्यापक विषमताएँ और गहराते जलवायु संकट दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ते असंतोष का कारण बन रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने चेतावनी देते हुए कहा है, “ये जोखिम विकास की संभावनाओं को गंभीर और दीर्घकालिक नुक़सान पहुंचा सकते हैं, और संकीर्ण नीतियों के चलन को बढ़ावा देने का भी ख़तरा पेश करते हैं, एक ऐसे पड़ाव पर जबकि वैश्विक सहयोग बहुत अहम है.”

ये जोखिम विकास की संभावनाओं को गंभीर और दीर्घकालिक नुक़सान पहुंचा सकते हैं. और संकीर्ण नीतियों के चलन को बढ़ावा देने का भी ख़तरा पेश करते हैं, एक ऐसे पड़ाव पर जबकि वैश्विक सहयोग बहुत अहम है.

अमेरिका में फ़ेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में हाल में की गई कटौती से आर्थिक गतिविधियों में कुछ सहायता मिल सकती है.

हालाँकि लगातार नीतिगत अनिश्चितता, कमज़ोर कारोबारी भरोसे और घटते राजकोषीय प्रोत्साहन के मद्देनज़र, अमेरिका में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 2019 में 2.2 प्रतिशत से कम होकर 2020 में 1.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

वैश्विक अनिश्चितता की वजह से यूरोपीय संघ में निर्माण क्षेत्र धीमा रहेगा, लेकिन निजी क्षेत्र में खपत में लगातार वृद्धि से इसकी आंशिक रूप से भरपाई हो सकती है, जिससे 2019 में जीडीपी वृद्धि 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 1.6 प्रतिशत हो सकती है.

रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी एशिया क्षेत्र विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दुनिया का सबसे तेज़ प्रगति करने वाला बढ़ता क्षेत्र है और वैश्विक विकास में उसका सबसे बड़ा योगदान होगा.

चीन में सकल घरेलू उत्पाद दर में कुछ बदलाव होने का अनुमान व्यक्त किया गया है जो 2019 में 6.1 प्रतिशत से बदलकर 2020 में 6.0 प्रतिशत और 2021 में 5.9 प्रतिशत रह सकती है.

ब्राज़ील, भारत, मैक्सिको, रूसी संघ और तुर्की सहित अन्य बड़े उभरते देशों में 2020 में विकास में कुछ प्रगति होने की उम्मीद जताई गई है.

प्रगति थमी

अफ्रीका में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में लगभग एक दशक तक ठहराव देखा गया है.

दुनिया भर के अनेक  देश अब भी 2014-16 के उपभोक्ता मूल्यों में आई गिरावट के नकारात्मक प्रभावों का सामना कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें ग़रीबी उन्मूलन के प्रयासों में असफलता और उत्पादन में लगातार घाटे का सामना करना पड़ा है.

जापान के क्योटो में एक प्रिंटिंग फ़ैक्टरी में एक महिला कर्मचारी

उपभोक्ता वस्तुओं पर निर्भर एक तिहाई विकासशील देशों में औसत वास्तविक आय 2014 की तुलना में वर्तमान समय में कम है.

इन देशों में लगभग 87 करोड़ आबादी बसती है. इनमें अंगोला, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, नाइजीरिया, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे अनेक बड़े देश शामिल हैं.

साथ ही, उप-सहारा अफ्रीकी देशों और लैटिन अमेरिका व पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में, अत्यधिक ग़रीबी में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है.

ग़रीबी उन्मूलन की दिशा में निरंतर प्रगति हासिल करने के लिए उत्पादकता वृद्धि और गहरी विषमताओं को दूर करने के लिए ठोस प्रतिबद्धताओं को विशेष रूप से बढ़ावा देना होगा.

संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में ग़रीबी मिटाने के लिए 8 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक प्रति व्यक्ति वृद्धि की आवश्यकता होगी. जबकि पिछले दशक के दौरान ये औसत दर 0.5 प्रतिशत थी.

संतुलित नीति की ज़रूरत

जीडीपी वृद्धि से हटकर बात की जाए दुनिया के कई हिस्सों में कल्याण के दूसरे उपाय भी बहुत धूमिल तस्वीर  पेश करते हैं.

मुद्रा नीति पर ज़्यादा निर्भरता ना केवल विकास को पुनर्जीवित करने के लिए अपर्याप्त है, बल्कि  इससे वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिमों में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ लागत में भी काफ़ी इज़ाफा होता है.

फ़िलहाल एक ज़्यादा संतुलित नीति की आवश्यकता है जो बेहतर सामाजिक समावेश, लैंगिक समानता और पर्यावरणीय टिकाऊ उत्पादन की ओर बढ़ते हुए आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करे.

इलियट हैरिस ने कहा, “समावेशी विकास की कमी से बढ़ते असंतोष के बीच, दुनियाभर में  परिवर्तन की पुकार उठ रही है. ऐसे में, नीतिगत उपायों के वितरण और पर्यावरणीय प्रभावों पर अधिक कहीं ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है.”