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'एक स्वस्थ विश्व बनाने के लिए कोई "शॉर्ट कट" नहीं'

यमन में एक स्वास्थ्यकर्मी एक बच्चे को हैज़ा से बचाने की दवाई पिलाते हुए.
© UNICEF/Saleh Bahless
यमन में एक स्वास्थ्यकर्मी एक बच्चे को हैज़ा से बचाने की दवाई पिलाते हुए.

'एक स्वस्थ विश्व बनाने के लिए कोई "शॉर्ट कट" नहीं'

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी - विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने अगले दशक के लिए पूरी दुनिया में स्वास्थ्य चुनौतियों का ख़ाका पेश करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में और ज़्यादा धन निवेश करने का आहवान किया है.  ग़ौरतलब है कि आने वाले दस वर्षों की समयावधि को यूएन महासभा ने "कार्रवाई दशक" क़रार दिया है. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रोस एडहेनॉम घेब्रेयेसस ने सोमवार को जारी एक वक्तय में कहा कि वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों की ये सूची इन चिंताओं के जवाब में तैयार की गई है कि वैश्विक नेता स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन नहीं लगा रहे हैं और "लोगों के जीवन, आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं को जोखिम में डाल रहे हैं".

टैड्रोस एडहेनॉम घेब्रेयेसस ने स्वास्थ्य चिंताओं की तुलना शांति और सुरक्षा से करते हुए ध्यान दिलाया कि अनेक देश आतंकवादी हमलों से बचाव के लिए तो सुरक्षा तंत्र में धन निवेश करने के लिए तैयार नज़र आते हैं, मगर बीमारियों के वायरसों को रोकने या उन पर क़ाबू पाने के लिए धन निवेश करना की मंशा उनमें कम ही नज़र आती है, जबकि कोई बीमारी ज़्यादा जानलेवा और आर्थिक रूप से ज़्यादा नुक़सान पहुँचाने वाली साबित हो सकती है.

हर साल वायु प्रदूषण के कारण विश्व भर में लगभग 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है. वायु प्रदूषण को भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक स्वास्थ्य चुनौती क़रार दिया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आने वाले दशक के लिए 13 प्राथमिकताओं की शिनाख़्त की है जिनमें पूरी दुनिया में रहने वाले लोगों को प्रभावित करने वाले व्यापक मुद्दे शामिल हैं. मसलन, जलवायु संकट को भी स्वास्थ्य आपदा माना गया है जो कुपोषण और मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलने की एक बड़ी वजह है. 

इसके अलावा वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष लगभग 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

स्वास्थ्य एजेंसी ऐसे नीतिगत विकल्प तैयार कर रही है जिनकी बदौलत सरकार वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों को रोकने या उनकी संख्या कम करने में कामयाबी मिल सकेगी.

धनी देशों में आमतौर पर लोगों का जीवन ग़रीब देशों के मुक़ाबले 18 वर्ष ज़्यादा होता है.

इसके अलावा देशों के बीच भी स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ा अंतर देखने को मिलता है यानी कुछ देश ऐसे हैं जिनके पास बहुत संसाधन हैं जबकि बहुत से ऐसे देश हैं जिनके पास अपने लोगों के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन इस असमानता को दूर करने पर काम करेगा और देशों को इस बारे में दिशा निर्देश उपलब्ध कराए जाएंगे कि स्वास्थ्य देखभाल को किस तरह से ज़्यादा समान व उपलब्ध बनाया जाए.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की सिफ़ारिश है कि देशों को प्राईमरी स्वास्थ्य सेवाओं पर सकल घरेलू उत्पाद की कम से कम एक प्रतिशत धन ख़र्च करना चाहिए.

इससे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ अपने रहने के स्थानों के निकट ही हासिल करने में मदद मिलेगी जिनकी उन्हें बहुत ज़रूरत होती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की अन्य प्राथमिकताओं में लोगों को दवाओं की उपलब्धता, संक्रामक बीमारियों की रोकथाम और लोगों को ख़तरनाक़ उत्पादों से बचाना भी शामिल है. 

'स्वास्थ्य सुरक्षा'

महानिदेशक का कहना था कि चूँकि स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का विकास पर बहुत बड़ा असर पड़ता है इसलिए स्वास्थ्य सुरक्षा का मुद्दा सिर्फ़ स्वास्थ्य मंत्रियों की ज़िम्मेदारी तक ही सीमित नहीं होना चाहिए.

उन्होंने स्वास्थ्य प्रणालियों में धन की कमी को भरने के लिए ज़्यादा रक़म मुहैया कराने का आहवान किया. साथ ही कमज़ोर व नाज़ुक देशों की मदद करने का भी आहवान किया. 

महानिदेशक ने कहा, "एक स्वस्थ विश्व स्थापित करने के लिए कोई छोटी डगर नहीं है. हम बहुत तेज़ी से वर्ष 2030 की तरफ़ बढ़ रहे हैं और हमें अपने नेताओं को उनके संकल्पों के लिए जवाबदेह बनाना होगा."

अगला दशक शुरू होने के समय तक विश्व के राष्ट्रों ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने की प्रतिज्ञाएँ व्यक्त की हैं जोकि संयुक्त राष्ट्र के 2030 टिकाऊ विकास एजेंडा में वर्णित हैं.