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ब्रेल लिपि: नेत्रहीनता व दृष्टिबाधिता से पीड़ितों के लिए आशा की किरण

नेत्रविकार से पीड़ित लोगों के ग़रीबी और अभाव भरे जीवन से पीड़ित होने की संभावना ज़्यादा होती है.
UN Photo/Manuel Elias
नेत्रविकार से पीड़ित लोगों के ग़रीबी और अभाव भरे जीवन से पीड़ित होने की संभावना ज़्यादा होती है.

ब्रेल लिपि: नेत्रहीनता व दृष्टिबाधिता से पीड़ितों के लिए आशा की किरण

मानवाधिकार

ब्रेल लिपि एक ऐसी स्पर्शनीय संचार प्रणाली है जिसने नेत्रहीनों और दृष्टिबाधिता से पीड़ित लोगों को उनके अधिकारों का लाभ उठाने में मदद की है. शनिवार, 4 जनवरी, को ‘विश्व ब्रेल दिवस’ के अवसर पर इस लिपि की अहमियत के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. 
 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक़ विश्व भर में दो अरब से ज़्यादा लोग किसी ना किसी रूप में दृष्टिबाधिता, मंददृष्टि या नेत्रहीनता से पीड़ित हैं. नेत्रविकार से पीड़ित लोगों के ग़रीबी और अभाव भरे जीवन से पीड़ित होने की संभावना ज़्यादा होती है. 

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उनकी ज़रूरतों और अधिकारों के पूरा ना हो पाने के व्यापक नतीजे देखने को मिलते हैं: दृष्टिबाधिता या नेत्रहीनता से उनके आजीवन असमानता, ख़राब स्वास्थ्य का शिकार होने और शिक्षा व रोज़गार में अवसरों में अवरोधों का सामना करना पड़ता है.

नवंबर 2018 में यूएन महासभा ने नेत्रहीनों और मंददृष्टि के शिकार लोगों के मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के इरादे से यह दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी जिसे वर्ष 2020 में दूसरी बार मनाया जा रहा है. 

ब्रेल लिपि में हर अक्षर, नंबर, संगीत और गणितीय चिन्हों को छह बिन्दुओं के माध्यम से दर्शाया जाता है जिन्हें कई तरह से क्रमों में संयोजित किया जा सकता है और उनके ऊपर उंगलिया चलाकर पढ़ा जा सकता है. 

बुनियादी स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और दृष्टिबाधिता से पीड़ित लोगों के अधिकार सुनिश्चित करने में इस लिपि ने अहम भूमिका निभाई है. शारीरिक अक्षमता से पीड़ितों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि (CPRD) के अंतर्गत ब्रेल लिपि को संचार का माध्यम माना गया है. एक ऐसा माध्यम जो शिक्षा, अभिव्यक्ति और विचारों की आज़ादी, सूचना पहुंचाने और समावेशन को बढ़ावा देने के लिए बेहद ज़रूरी है. 

टिकाऊ लक्ष्यों के 2030 एजेंडा में किसी को भी पीछे ना छूटने देने का संकल्प लिया गया है ताकि सभी लोग एक समृद्ध और ख़ुशहाल जीवन जी सकें.

विश्व ब्रेल दिवस 4 जनवरी को इस प्रणाली के जनक लुईस ब्रेल की स्मृति में मनाया जाता है जिनका जन्म इसी दिन 1809 में हुआ था. 15 साल की आयु में एक दुर्घटना में आंखों की रौशनी चले जाने के बाद उन्होंने इस लिपि की खोज की जिसे आज ब्रेल के नाम से जाना जाता है. 

इस लिपि में कई मर्तबा संशोधन हो चुका है और 1949 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और संगठन (UNESCO) ने एक सर्वे के ज़रिए कठिनाईयों की पहचान की ताकि ब्रेल लिपि में एकरूपता को स्थापित किया जा सके.