ज़िम्बाब्वे में 80 लाख लोग भुखमरी का शिकार, राहत की पुकार
विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने लंबे समय से सूखे और आर्थिक मंदी के कारण भुखमरी की चपेट में आए ज़िम्बाब्वे के लाखों लोगों के लिए सभी देशों से मदद की अपील की है.
सोमवार को संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने कहा कि लगभग 80 लाख लोगों, यानी देश की क़रीब आधी आबादी को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है.
ज़िम्बाब्वे में वर्ष 2018 और 2019 में फ़सल बुआई के मौसम में इतिहास का सबसे ख़राब सूखा पड़ा और 2020 में भी हालात सुधरने की संभावना नहीं है.
वर्ष 2020 की पहली छमाही की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ही 20 करोड़ डॉलर से ज़्यादा रक़म की आवश्यकता पड़ेगी.
ज़िम्बाब्वे में एजेंसी के उपनिदेशक नील्स बैल्ज़र ने बताया कि, "अभी के हालात देखते हुए तो यही लगता है कि फ़रवरी के अंत तक हमारे पास सारा भोजन ख़त्म हो जाएगा, वो भी ऐसे समय में जब भुखमरी अपने चरम पर होगी और ज़रूरतें बहुत बढ़ चुकी होंगी."
"फ़ंडिग के लिए तुरंत ठोस वादों की ज़रूरत है क्योंकि इस धन के आने और उससे लोगों के लिए भोजन मुहैय्या कराने में तीन महीने तक का समय लग सकता है."
सूखे की मार से कम होती फ़सलें
कभी अफ्रीका में ‘रोटी की टोकरी’ के रूप में जाना जाने वाला ज़िम्बाब्वे लगातार तीन साल से सूखे की मार झेल रहा है.
परिणामस्वरूप, 2018 की तुलना में इस साल मक्का की फसल में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है.
बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए यूएन खाद्य एजेंसी को इस साल अगस्त महीने में ही एक आपातकालीन सहायता कार्यक्रम शुरू करना पड़ा जबकि उसकी योजना इसे कुछ महीनों बाद करने की थी.
भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर हिलाल एलवर ने नवंबर में ज़िम्बाब्वे के दौरे के समय देखा कि किस तरह महिलाएं और बच्चे इस संकट से जूझ रहे हैं.
अपने 11-दिवसीय मिशन के बाद उन्होंने एक बयान में कहा, “आजीविका के वैकल्पिक साधनों की तलाश के दौरान निराशा में कुछ महिलाएं और बच्चे जीवन यापन के लिए ऐसे निर्णय लेने के लिए मजबूर हो रहे हैं जो उनके बुनियादी मानवाधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं. इसके परिणामस्वरूप ज़िम्बाब्वे में स्कूल छोड़ने, जल्दी शादी होने, घरेलू हिंसा होने, वेश्यावृत्ति और यौन शोषण के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है.”
बेलगाम मुद्रास्फ़ीति से खाद्य कीमतों में वृद्धि
भुखमरी का ये संकट ऐसे समय में आया है जब ज़िम्बाब्वे दशक की सबसे ख़राब आर्थिक मंदी से जूझ रहा है.
मुद्रास्फ़ीति इसका केवल एक लक्षण है, जिसने रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों की क़ीमतों को आम नागरिकों की पहुंच से बाहर कर दिया है. ब्रेड अब छह महीने पहले की तुलना में 20 गुना अधिक महंगी है.
बढ़ती समस्याएं परिवारों को भोजन छोड़ने, बच्चों को स्कूल से निकालने और पशुओं को बेचने जैसे निराशाजनक क़दम उठाने के लिए मजबूर कर रही है.
ग्लेडिस चिकुक्वा देश के दूसरे सबसे बड़े बाजार सुकुब्वा में टमाटर बेचते हैं और उनका गुज़ारा होना मुश्किल हो रहा है.
“सिर्फ़ इसलिए कि हम बाज़ार में टमाटर बेच रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि हमारे पास ख़ुद के लिए पर्याप्त भोजन है. हम बहुत संघर्ष कर रहे हैं.”
“हमारी फ़सल इस बाजार में क़ीमतों के कारण सड़ रही है. आज टमाटर 250 ज़िम्बाब्वे डॉलर, कल 300 डॉलर, अगले दिन 400 डॉलर पर बिकेगा, लेकिन लोगों के पास इतना पैसा ही नहीं है.”
सहायता की पुकार
सूखा ख़त्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं और यूएन के मुताबिक़ अप्रैल में एक और फ़सल ख़राब होने की आशंका जताई गई है.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी को ज़िम्बाब्वे में अपनी सहायता बढ़ाने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मुद्रास्फ़ीति में तेज़ी के साथ ही स्थानीय मुद्रा में कमी के कारण नक़द में मदद की बजाय सीधे भोजन सामग्री की व्यवस्था करनी पड़ती है.
चूंकि दूसरे दक्षिण अफ्रीकी देश भी सूखे की चपेट में हैं, इसलिए खाद्य सामग्री को महाद्वीप के बाहर से लाना पड़ता है. फिर पड़ोसी दक्षिण अफ्रीका या मोज़ाम्बीक़ के ज़रिए ज़िम्बाब्वे तक पहुंचाया जाता है.
ज़िम्बाब्वे के 41 लाख लोगों की सहायता के लक्ष्य को पूरा करने के लिए यूएन एजेंसी को लगभग दो लाख मीट्रिक टन भोजन की आवश्यकता होगी. ज़िम्बाब्वे में एजेंसी के उपनिदेशक नील्स बैल्ज़र ने समझाया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वित्तीय सहायता की इतनी सख़्त आवश्यकता क्यों है.
''खाद्य कार्यक्रम के पास अब ज़िम्बाब्वे में सहायता प्रदान करने के लिए ज़रूरी स्टाफ़, साझेदार, ट्रक और लॉजिस्टिक क्षमता है, लेकिन इस कार्य को उचित ढंग से पूरा करने के लिए हमें फ़ंडिंग की बहुत ज़रूरत है. बड़ी संख्या में लोगों का जीवन इस पर निर्भर करता है.”