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बांये से: म्यांमार से दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में कॉक्स बाज़ार जाते हुए लोग; लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन पर गए शांति-सैनिक, तैनाती के अंत में अलविदा कहते हुए; कॉप-25 में भारत की आठ वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता, लिसीप्रिया कंगुजम.

बीते दशक पर एक नज़र - तीसरा भाग

UN Photo
बांये से: म्यांमार से दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में कॉक्स बाज़ार जाते हुए लोग; लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन पर गए शांति-सैनिक, तैनाती के अंत में अलविदा कहते हुए; कॉप-25 में भारत की आठ वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता, लिसीप्रिया कंगुजम.

बीते दशक पर एक नज़र - तीसरा भाग

यूएन मामले

बीते दशक के तीसरे और अंतिम भाग में हम नज़र डालेंगे: रोहिंज्या शरणार्थी संकट से निपटने के प्रयास; लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन का सफल समापन; और मैड्रिड में कॉप-25 जलवायु सम्मेलन से निराशा के बावजूद जलवायु संकट के ख़िलाफ लड़ाई में नया जोश.

2017: रोहिंज्या समुदाय का ‘नस्लीय सफ़ाया’ 

म्यांमार के रोहिंज्या मुसलमानों को क्रूर उत्पीड़न का सामना करने के बाद बांग्लादेश भागने पर मजबूर होना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के मुताबिक इसे मानवता के ख़िलाफ़ बड़ा अपराध माना जाएगा.
UNHCR/Roger Arnold
म्यांमार के रोहिंज्या मुसलमानों को क्रूर उत्पीड़न का सामना करने के बाद बांग्लादेश भागने पर मजबूर होना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के मुताबिक इसे मानवता के ख़िलाफ़ बड़ा अपराध माना जाएगा.

अगस्त 2017 में, म्यांमार की सेना ने बांग्लादेश की सीमा से लगे देश के पश्चिमी  क्षेत्र रख़ाइन में सुरक्षा अभियान शुरू किया. सेना के मुताबिक़ 'अराकान रोहिंज्या सैल्वेशन आर्मी' के अलगाववादियों द्वारा पुलिस और सुरक्षा चौकियों पर कथित घातक हमलों के आरोप के बाद ये कार्रवाई की गई थी. 

लेकिन सैन्य अभियान में अल्पसंख्यक रोहिंज्या मुसलमानों के ख़िलाफ ज़बरदस्त अत्याचार के आरोप भी लगे. इससे पहले भी रोहिंज्या समुदाय उत्पीड़न के कई मामलों को झेल चुका है. तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ज़ायद राद अल-हुसैन ने कहा कि इस कार्रवाई में "नस्लीय सफ़ाए के सारे लक्षण" मौजूद थे. 

सबूत के तौर पर राद अल-हुसैन ने म्यांमार के अधिकारियों द्वारा बांग्लादेश से सटी सीमा पर बारूदी सुरंगें बिछाए जाने और वहां से लौटने वाले लोगों से "राष्ट्रीयता का प्रमाण" मांगने का उदाहरण दिया. ये इसलिए संभव नहीं था क्योंकि 1962 से ही  म्यांमार की सरकारें लगातार रोहिंज्या आबादी से उनके नागरिक अधिकार समेत सभी सामाजिक और राजनीतिक अधिकार छीनती रही हैं . 

सितंबर 2017 तक पॉंच लाख से ज़्यादा रोहिंग्या बांग्लादेश पहुंचे जिससे कुटुपालोंग शरणार्थी शिविर पर बोझ बढ़ गया और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों को इस संकट का सामना करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने चेतावनी दी कि म्यांमार में अशांति से भाग रहे रोहिंज्या समुदाय की महिलाओं व लड़कियों के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न के भयानक मामले "समस्या का ऊपरी सिरा-भर" है यानी ऐसे मामलों की भयावहता अभी पूरी तरह सामने नहीं आई है.

वहीं संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों के एक समूह ने रोहिंज्या के ख़िलाफ़ मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन, दुर्व्यवहार, न्यायेतर हत्याओं, बल प्रयोग व अत्याचार, यौन और लिंग आधारित हिंसा और जबरन विस्थापन के साथ-साथ 200 से अधिक रोहिंज्या गांवों और हज़ारों घरों को जलाने के विश्वसनीय आरोपों के मद्देनज़र अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तुरंत कार्रवाई करने का आह्वान किया. 

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने अब तक राहत शिविरों में सात लाख 44 हज़ार से अधिक शरणार्थियों के पहुंचने की सूचना दर्ज की है. कुटुपालोंग शरणार्थी शिविर अब दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर के रूप में जाना जाता है.  

फ़िलहाल बड़ी संख्या में शरणार्थियों के घर लौटने की संभावना बहुत कम दिखाई देती है. सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र की एक जांच का निष्कर्ष है कि म्यांमार में रहने वाले रोहिंज्या समुदाय पर जनसंहार की तलवार अब भी लटकी है और सरकार उनकी “पहचान मिटाने और देश से निकालने” की कोशिशों में लगी है. 

दिसंबर 2019 में म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने अपने देश की सेना पर लगे जनसंहार के आरोपों का बचाव किया. ये आरोप गाम्बिया ने इस्लामी सहयोग संगठन की ओर से अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में लगाए थे. आईसीजे संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक निकाय है और देशों के बीच विवादित मुद्दों का निपटारा करता है.

इस बीच नवंबर 2019 में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)  ने म्यांमार में कथित रूप से मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों की जांच शुरु की है. 

2018: लाइबेरिया में यूएन मिशन पूरा हुआ

कई गैर-सरकारी और अन्य सांस्कृतिक संगठनों ने यूएनएमआईएल को विदा देने के लिए विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए.
UN Photo/Albert González Farran
कई गैर-सरकारी और अन्य सांस्कृतिक संगठनों ने यूएनएमआईएल को विदा देने के लिए विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए.

एक समय था जब लाइबेरिया असुरक्षा और अशांति का दूसरा नाम था. वर्ष 1989 और 2003 के बीच 15 साल तक देश को हिंसक संघर्ष से जूझना पड़ा - इस दौरान दो बार गृहयुद्ध हुए, क़ानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई और लगभग ढाई लाख लोग मौत का शिकार बने.

लेकिन 2018 तक देश की क़िस्मत बदल गई. जनवरी में एलेन जॉनसन सरलिफ़ के बाद जॉर्ज वीयाह राष्ट्रपति पद पर बैठे. कई दशकों बाद यह पहली बार हुआ जब लाइबेरिया के लोगों ने सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण देखा.

फिर मार्च में, हिंसा समाप्ति के एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMIL) को समाप्त कर दिया गया जिसे 2003 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित किया गया था.

राष्ट्रपति वीयाह ने “एक दशक से ज़्यादा समय तक सीमाओं के भीतर अखंड शांति सुनिश्चित” करने के लिए मिशन की प्रशंसा की थी. 

यूएन मिशन के प्रयासों से देश में सुरक्षित वातावरण बना जिससे 10 लाख से अधिक शरणार्थियों और विस्थापितों को घर लौटने में मदद मिली; तीन बार राष्ट्रपति चुनावों को संपन्न कराने में समर्थन दिया गया;और वर्षों की लड़ाई और अस्थिरता के बाद सरकार को पूरे देश में अपना अधिकार स्थापित करने में मदद भी.

31 मार्च 2018 को मिशन की जगह संयुक्त राष्ट्र की स्थानीय टीम ने ले ली थी और विकास पर ध्यान केंद्रित करने और लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए 17 संयुक्त राष्ट्र फ़ंड और एजेंसियों की लाइबेरिया में मौजूदगी है.

सितंबर 2018 में यूएन महासभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति वीयाह ने फिर से यूएन मिशन को धन्यवाद देते हुए कहा था कि इससे "स्थिरता लाने और लाइबेरिया के संस्थानों और समुदायों के पुनर्निर्माण में बहुत मदद मिली."

उन्होंने कहा कि, "हम शांतिरक्षा की सफलता का उदाहरण हैं और समर्थन देने के लिए आपके आभारी हैं." 

2019: जलवायु इमरजेंसी से लड़ाई में नया जोश

समुद्री जलस्तर बढ़ने से तुवालु जैसे द्वीपीय देशों के लिए ख़तरा पैदा हो रहा है.
UNDP Tuvalu/Aurélia Rusek
समुद्री जलस्तर बढ़ने से तुवालु जैसे द्वीपीय देशों के लिए ख़तरा पैदा हो रहा है.

2019 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जलवायु संकट के ख़िलाफ़ लड़ाई में नया उत्साह भर दिया.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), विश्व मौसम संगठन (WMO), संयुक्त राष्ट्र की जलवायु संस्था (UNFCCC), इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने लगातार अपने संदेशों और अध्ययनों से स्पष्ट कर दिया कि अगर वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कटौती नहीं की जाती तो दुनिया को पर्यावरणीय तबाही का सामना करना पड़ेगा.

यूएन प्रमुख ने सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में जलवायु कार्रवाई सम्मेलन बुलाया जिसके लिए उन्होंने विश्व नेताओं को चेतावनी देते हुए पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें उम्मीद है कि इसमें भाग लेने वाले नेता “सुंदर भाषणों” की जगह उत्सर्जन में कटौती के लिए ठोस योजनाएं साथ लेकर आएं.

इस सम्मेलन में कई देशों ने वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते की प्रतिबद्धताओं से आगे बढ़कर जलवायु संकट से निपटने के लिए और ज़्यादा प्रयास व कार्रवाई की घोषणा की. 

कई देशों ने जीवाश्म ईंधन से दूर जाने का संकेत दिया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करने के लिए संसाधन जुटाने का संकल्प लिया; कई प्रमुख व्यवसायियों ने भी अपनी कार्यप्रणाली में जलवायु लक्ष्य समन्वित करने की घोषणा की; और दो हज़ार से अधिक शहरों ने अपने फ़ैसलों में जलवायु जोखिम का ध्यान रखने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की. 

 

सम्मेलन के दौरान 16 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के उग्र और भावुक भाषण ने सबका ध्यान खींचा, जिसमें उसने दुनिया के नेताओं को फटकारा था: “आप हमें निराश कर रहे हैं, लेकिन युवा पीढ़ी आपके विश्वासघात को समझने लगी है. भावी पीढ़ियों की नज़र आप पर है और अगर आप हमें निराश करते हैं, तो मैं कहती हूं कि हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे."

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने ग्रेटा थनबर्ग के क्रोध का समर्थन किया और "तेज़ी, सहयोग और महत्वाकांक्षा बढ़ाने" पर ज़ोर देते हुए सम्मेलन का समापन किया, लेकिन साथ ही ये चेतावनी भी दी कि "अभी हमें एक लंबा रास्ता तय करना है."

मैड्रिड में दिसंबर के पहले दो हफ्तों में आयोजित कॉप-25 संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन एक टिकाऊ वैश्विक अर्थव्यवस्था की ओर जाने वाले रास्ते के लिए अगले मील के पत्थर के रूप में देखा जा रहा था.

लेकिन कई टिप्पणीकारों और कार्यकर्ताओं ने सम्मेलन को निराशाजनक माना क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख मुद्दे पर कोई समग्र सहमति नहीं बन पाई थी.

हालांकि संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कॉप-25 को हार के रूप में देखने से इंकार किया, "हमें हार नहीं माननी चाहिए और मैं हार नहीं मानूंगा." वैसे प्रगति के कई संकेत दिख रहे थे और बदलाव की गति बढ़ती नज़र आ रही थी.

उदाहरण के लिए योरोपीय संघ वर्ष 2050 तक नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य करने का लक्ष्य पूरा करने के वादे पर क़ायम है और 73 देशों ने घोषणा की है कि वो एक बेहतर जलवायु कार्य योजना (या राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान) प्रस्तुत करेंगे.

क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर स्वच्छ अर्थव्यवस्था की महत्वाकांक्षा का ख़ाका भी स्पष्ट है, जिसमें 14 क्षेत्र, 398 शहर, 786 व्यवसाय और 16 निवेशक 2050 तक शून्य कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं.

यूएन की 75वीं वर्षगांठ की तैयारी 

वर्ष 2020 में यूएन अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा और इस अवसर पर पृथ्वी के भविष्य के लिए "सबसे बड़ी वैश्विक बातचीत" का शुभारंभ करेगा. 

इसमें दुनिया भर में संवाद होंगे जिससे लोग अपनी आशाओं और आशंकाओं को व्यक्त कर सकेंगे और संयुक्त राष्ट्र उनके अनुभवों से सीख लेगा.

सितंबर 2020 में एक उच्चस्तरीय कार्यक्रम में विश्व नेताओं और वरिष्ठ संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों को ये विचार प्रस्तुत किए जाएंगे.

अपनी 75वीं वर्षगांठ के लिए संयुक्त राष्ट्र की योजनाओं के बारे में अधिक जानकारी यहां प्राप्त करें.

यहां पढ़िए:

बीते दशक पर एक नज़र - पहला भाग

बीते दशक पर एक नज़र - दूसरा भाग