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संभावित इबोला रोगियों को अपनी गाड़ी में ले जाने के कारण चालक को रोगाणुमुक्त किया जा रहा है; आइसलैंड का जोकुल्सार्लोन ग्लेशियर लैगून, ग्लेशियर के सिकुड़ने से लगातार बढ़ता रहा है;संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के बाहर प्रदर्शित 17 एसडीजी के मॉडल.

बीते दशक पर एक नज़र - दूसरा भाग

UN Photo
संभावित इबोला रोगियों को अपनी गाड़ी में ले जाने के कारण चालक को रोगाणुमुक्त किया जा रहा है; आइसलैंड का जोकुल्सार्लोन ग्लेशियर लैगून, ग्लेशियर के सिकुड़ने से लगातार बढ़ता रहा है;संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के बाहर प्रदर्शित 17 एसडीजी के मॉडल.

बीते दशक पर एक नज़र - दूसरा भाग

यूएन मामले

अब जब वर्ष 2019 विदा होने के कगार पर है, आइए यूएन न्यूज़ के साथ एक नज़र डालते हैं साल 2010 और 2019 के बीच घटी विश्व की कुछ बड़ी घटनाओं पर. सदी के दूसरे दशक पर केंद्रित तीन हिस्सों वाली इस समीक्षा की दूसरी कड़ी में हम 2014 और 2016 के बीच हुई घटनाओं पर नज़र डालेंगे जिनमें शामिल हैं: ईबोला का भयावह प्रकोप; ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते के माध्यम से विश्व नेताओं द्वारा जलवायु संकट से निपटने का प्रयास; और टिकाऊ विकास पर संयुक्त राष्ट्र के 2030 एजेंडा का शुभारंभ.

2014: ईबोला बीमारी का क़हर

इबोला उपचार केंद्रों में फिर से संक्रमण के ख़तरे से बचाव के लिए साफ़-सफ़ाई का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है.
UN Photo/Martine Perret
इबोला उपचार केंद्रों में फिर से संक्रमण के ख़तरे से बचाव के लिए साफ़-सफ़ाई का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है.

दिसंबर 2013 में गिनी के मेलियानडौ गांव में एमिल ओउमुनो नाम के एक बच्चे की मृत्यु हो गई. यह उसके परिवार के लिए तो एक त्रासदी थी ही, लेकिन इस बच्चे की मौत ने तब एक अलग आयाम ले लिया जब एमिल की पहचान पहले ईबोला रोगी के रूप में हुई. इसके बाद देखते ही देखते ईबोला ने पश्चिमी अफ़्रीकी देशों को अपनी चपेट में ले लिया.

ये ख़तरनाक, संक्रामक वायरस गिनी के साथ-साथ पड़ोसी देशों लाइबेरिया और सिएरा लियोन में भी फैल गया जिसे पश्चिमी अफ़्रीका के ईबोला प्रकोप के रूप में देखा गया.

इसके प्रकोप से तीन देशों की अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त होने के क़रीब पहुंच गईं और स्वास्थ्य सेवाएँ पर ज़बरदस्त बोझ पड़ा. उस वर्ष लगभग छह हज़ार मौतें दर्ज की गईं और स्थानीय समुदायों में ईबोला का भय फैल गया.

अगस्त 2014 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक समन्वित अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई सुनिश्चित करने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धनराशि एकत्र करने और दूसरे देशों में बीमारी फैलने से रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिन्ताजनक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) की घोषणा कर दी थी. 

इस आपातकाल को हटाने में यूएन एजेंसी को दो साल लगे. इस दौरान गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियोन में इबोला के 28 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आ चुके थे और 11 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई. 

स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वीकृत वर्ष 2016 की एक स्वतंत्र रिपोर्ट में कहा गया कि ईबोला के प्रकोप के अभूतपूर्व पैमाने को पहचानने में देरी हुई. साथ ही इस रिपोर्ट में स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बेहतर प्रशिक्षण और स्वास्थ्य नेटवर्कों के बीच बेहतर संचार के महत्व पर प्रकाश डाला गया.

अफ़सोस की बात ये है कि वर्ष 2018 से अफ़्रीका का एक और हिस्सा इबोला बीमारी की चपेट में आया हुआ है. कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य में लगभग 3,300 मामलों की पुष्टि हो चुकी है और 2,200 जानें गई हैं. 

इस प्रकोप का केंद्र - देश का पूर्वी भाग, गंभीर असुरक्षा और हिंसा का भी सामना कर रहा है जिससे रोग की रोकथाम के प्रयासों में बाधा आ रही है.

बेनी क्षेत्र में यूएन एजेंसी की ईबोला पर क़ाबू पाने का प्रयास कर रही टीम के एक तिहाई सदस्यों को सुरक्षा कारणों से अस्थायी रूप से स्थानांतरित करना पड़ा है जिससे वायरस के और अधिक फैलने की संभावना है.

2015: जलवायु कार्रवाई के लिए नई उम्मीद

पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की एक अहम कड़ी है.
UNFCCC
पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की एक अहम कड़ी है.

दिसंबर 2015 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को अपनाने से पर्यावरण के लिए उम्मीदें जागीं. दुनिया के सभी देशों ने पहली बार समग्र तौर पर जलवायु संकट का मुक़ाबला करने और इससे निपटने का संकल्प लिया, जिसमें वैश्विक तापमान वृद्धि का संभावित ख़तरा भी शामिल है.

तत्कालीन यूएन महासचिव बान की मून ने समझौते को "अभूतपूर्व जीत" बताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि ये समझौता "ग़रीबी समाप्त करने, शांति मज़बूत करने और सभी के लिए सम्मान और अवसरों का जीवन सुनिश्चित करने की दिशा निर्धारित करेगा." 

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-21 में दो सप्ताह चली चर्चा के बाद इस समझौते पर सहमति बनी. इसमें वो सभी निष्कर्ष शामिल किए गए हैं जो जलवायु आपदा से निपटने के लिए बेहद अहम हैं: वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम तक सीमित रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती; जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बेहतर तरीक़े से निपटने के लिए अनुकूलन  प्रयास; और सबसे कमज़ोर और ग़रीब देशों के लिए पर्याप्त वित्तपोषण. 

ये समझौता आशा और महत्वाकांक्षा की भावना के साथ सम्पन्न हुआ था और कई प्रतिनिधियों की आंखों में आंसू भर आए थे. तब बान की मून ने कहा था कि इसमें शामिल सभी लोगों को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि उन्होंने क्या हासिल किया है. लेकिन साथ ही हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये समझौता सिर्फ़ शुरुआत है, क्योंकि "असली काम तो कल से शुरू होगा."

ये समझौता चार साल बाद भी साफ़-सुथरी, टिकाऊ वैश्विक अर्थव्यवस्था के रास्ते पर सबसे अहम चरण के रूप में देखा जाता है. लेकिन कई संकेत हैं कि इसे मज़बूती से आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त काम नहीं हो पाया है: पर्यावरणीय रिपोर्टों और अध्ययनों से स्पष्ट है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण को निरंतर नुक़सान हो रहा है.

आशंका जताई गई है कि अगर हम मौजूदा रास्ते पर चलते रहे तो तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री के स्तर से ऊपर जा पहुंचेगी और इसके परिणाम भयावह होंगे. मौजूदा यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने जलवायु संकट को अपने मैंडेट का केंद्रीय स्तंभ बनाया है.

उन्होंने कई पहलों के ज़रिए ये सुनिश्चित किया है कि इस मुद्दे पर नए सिरे से ध्यान दिया जाए, ख़ासतौर पर 2019 में (इस बारे में आप इस श्रृंखला के तीसरे और अंतिम भाग में विस्तार से जानेंगे).

2016: एक बेहतर भविष्य का ख़ाका

टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय की इमारत पर जानकारी.
UN Photo/Cia Pak
टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय की इमारत पर जानकारी.

21वीं सदी के पहले 15 वर्षों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की कई गतिविधियां ‘मिलेनियम डवेलपमेंट गोल्स’ यानि 'सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों' के तहत आगे बढ़ीं, जिनमें आठ प्रमुख उद्देश्य अत्यधिक ग़रीबी रोकने, एचआईवी/एड्स के प्रसार की रोकथाम और सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए थे.

लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निर्धारित वर्ष 2015 तक काफ़ी सकारात्मक कार्य हुआ लेकिन फिर भी एक नए दृष्टिकोण की कमी महसूस की जा रही थी. ये कमी पूरी हुई ‘2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डवेलपमेंट’ (2030 टिकाऊ विकास लक्ष्य एजेंडा) के रूप में, जिसे 2016 में आधिकारिक तौर पर शुरू किया गया. इसका उद्देश्य सहस्राब्दी लक्ष्यों को आगे बढ़ाना और अधूरे कार्यों को पूरा करना है.

इस एजेंडा के तहत लोगों के लिए, पृथ्वी के लिए और वैश्विक समृद्धि के लिए कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं, जिनमें ग़रीबी उन्मूलन भी शामिल है, इसे संयुक्त राष्ट्र "सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती" मानता है जिसे दूर करना टिकाऊ विकास के लिए एक अनिवार्य शर्त है. 

17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों की घोषणा की गई है और पांच मुख्य क्षेत्रों को कार्रवाई के लिए लक्ष्य बनाया गया है: लोग (ग़रीबी और भुखमरी उन्मूलन), पृथ्वी (भूमि क्षरण से संरक्षण और जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई), समृद्धि (सभी के लिए समृद्ध और सुखी जीवन सुनिश्चित करना), शांति (भय और हिंसा से मुक्त समाजों को बढ़ावा देना) और साझेदारी (लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए साधन जुटाना).

तत्कालीन महासचिव बान की मून ने लक्ष्यों पर काम की शुरुआत करते समय कहा था कि एसडीजी "मानवता के साझा दृष्टिकोण और दुनिया के नेताओं और लोगों के बीच एक सामाजिक अनुबंध का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे लोगों और धरती के लिए काम करने की एक सूची और सफलता प्राप्त करने की योजना का ख़ाका है.”

इन लक्ष्यों को 2030 तक हासिल करना है यानी नए वर्ष 2020 में एजेंडा को पूरा करने के लिए सिर्फ़ 10 साल रह जाएंगे. इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने प्रक्रिया तेज़ करने के लिए ‘कार्रवाई के दशक’ की शुरूआत कर दी है. सितंबर 2019 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित ‘एजेंडा की प्रगति पर पहले शिखर सम्मेलन’ में इसकी घोषणा की गई.

दो दिवसीय सम्मेलन के समापन के दौरान उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने कहा कि उनके मुताबिक़ शिखर सम्मेलन से तीन ठोस संदेश मिले हैं: एजेंडा को लागू करने के लिए विश्व नेताओं की नई प्रतिबद्धता; स्वीकरोक्ति कि लक्ष्य रास्ते से भटक गए हैं व उन्हें हासिल करने के लिए दृढ़ संकल्प; और आगे के काम पर स्पष्टता और अधिक महत्वाकांक्षी वैश्विक कार्रवाई, स्थानीय कार्रवाई व लोगों द्वारा कार्रवाई.

यहां पढ़िए:

बीते दशक पर एक नज़र - पहला भाग

बीते दशक पर एक नज़र - तीसरा भाग