
बीते दशक पर एक नज़र - पहला भाग
21वीं सदी अपनी किशोरावस्था से गुज़र कर उम्र के अगले पड़ाव में प्रवेश करने की तैयारी में है और वर्ष 2020 दस्तक दे रहा है. ऐसे में आइए यूएन न्यूज़ के साथ एक नज़र डालते हैं साल 2010 और 2019 के बीच घटी विश्व की कुछ बड़ी घटनाओं पर. सदी के दूसरे दशक की तीन हिस्सों वाली इस समीक्षा की पहली कड़ी में हम 2010 और 2013 के बीच हुई घटनाओं पर नज़र डालेंगे जिनमें शामिल हैं: हेती में आया विनाशकारी भूकंप, सीरिया में हिंसक संघर्ष की शुरुआत, लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में मलाला यूसुफज़ई का प्रेरणादायी कार्य और माली में "दुनिया का सबसे ख़तरनाक संयुक्त राष्ट्र मिशन".
2010: हेती में विनाशकारी भूकंप

दशक की शुरुआत हेती में भारी आपदा के साथ हुई जोकि पहले से ही पश्चिमी गोलार्ध का सबसे ग़रीब देश था. 12 जनवरी 2010 को रिक्टर पैमाने पर 7.0 तीव्रता के भूकंप ने लाखों लोगों की जान ले ली. सरकारी आंकड़ों के अनुसार भूंकप में 2 लाख 20 हज़ार से ज़्यादा लोग काल का ग्रास बन गए और इमारतों व बुनियादी ढांचों को भारी नुक़सान पहुंचा.
इस त्रासदी के एक हफ्ते बाद सुरक्षा परिषद ने हेती में संयुक्त राष्ट्र मिशन (MINUSTAH) में पहले से ही मौजूद नौ हज़ार शांति सैनिकों के साथ-साथ पुनर्निर्माण, बहाली और स्थिरता के प्रयासों में मदद करने के लिए 3,500 अतिरिक्त शांति सैनिकों की तैनाती को मंज़ूरी दी. हेती के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के रूप में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन इन प्रयासों के साथ निकटता से जुड़े थे.
हेती में संयुक्त राष्ट्र मिशन भी भूकंप के प्रभाव से बच नहीं पाया: जिस क्रिस्टोफ़र होटल में मिशन का मुख्यालय स्थित था वो भी भूकंप में ढह गया और संयुक्त राष्ट्र के 102 कर्मचारियों की मौत हो गई. इनमें यूएन महासचिव के हेती में विशेष प्रतिनिधि हैदी अन्नाबी, उप-प्रतिनिधि लुइज़ कार्लोस दा कोस्टा और रॉयल कैनेडियन पुलिस के कार्यवाहक पुलिस कमिश्नर डग कोट्स भी शामिल थे.
संयुक्त राष्ट्र के जिन 132 कर्मचारियों को बचाव दलों ने बचाया उनमें येन्स क्रिस्टेंसन भी शामिल थे जो पांच दिन तक इमारत के मलबे के नीचे फंसे रहने के बावजूद जीवित बच गए.
येन्स क्रिस्टेंसन एक वरिष्ठ मानवीय राहत कर्मचारी हैं जो इससे पहले वर्ष 2002 में अफ़ग़ानिस्तान भूकंप, 1999 में तुर्की के भूकंप और 1987 में इक्वाडोर भूकंप में राहत कार्यों में हिस्सा ले चुके थे लेकिन मौत के साथ ये उनका सबसे क़रीबी अनुभव था.
क्रिस्टेंसन की ऊपरी बांह पर हल्की चोट और दाहिने हाथ पर ख़रोंच के अलावा उन्हें ज़्यादा चोट नहीं लगी और वह तीन दिन बाद ही काम पर लौट गए थे.
2011: सीरिया में हिंसक संघर्ष की शुरुआत

अप्रैल 2011 में तत्कालीन महासचिव बान की मून ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को फ़ोन पर बातचीत के दौरान बताया कि वह देश में हिंसा की ख़बरों से ''बहुत चिन्तित'' हैं.
सीरिया में विरोध आंदोलनों के बाद हुई ये हिंसा उत्तर अफ़्रीका और मध्य पूर्व में लोकतंत्र के समर्थन में हुए व्यापक प्रदर्शनों का हिस्सा थी. इस क्षेत्र में हुए विरोध प्रदर्शनों को ‘अरब स्प्रिंग’ का नाम दिया गया और वे ट्यूनीशिया और मिस्र की दशकों पुरानी हुक़ूमतों के पतन का कारण भी बने.
लेकिन उस समय यह कह पाना मुश्किल था कि आठ साल बाद भी सीरिया में ये संघर्ष जारी रहेगा जिससे लाखों नागरिकों की मौत के साथ-साथ एक बड़ा शरणार्थी संकट भी खड़ा हो जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के अनुसार वर्ष 2011 से अब तक 56 लाख से अधिक लोग सीरिया छोड़कर जा चुके हैं जबकि घरेलू विस्थापितों की संख्या लगभग 66 लाख है.
सीरिया में हिंसा अब भी ख़त्म होती नहीं दिखाई दे रही है, हालांकि साल 2011 से ही संयुक्त राष्ट्र इस जटिल संघर्ष का राजनैतिक समाधान खोजने के लिए प्रयासों में जुटा है.
संयुक्त राष्ट्र पांच वर्षों में पहली बार 2019 में सरकार, विपक्ष और नागरिक समाज के 150 प्रतिनिधियों को आमने-सामने वार्ता के लिए एक साथ लाने में सफल हुआ.
सीरिया के लिए संयुक्त राष्ट्र के दूत गेर पेडरसन ने सीरियाई लोगों की पीड़ा समाप्त करने के ठोस वायदे ना करते हुए नवंबर में सुरक्षा परिषद को बताया कि इस वार्ता से एक ऐसा दरवाज़ा खुल सकता है जिससे इस क्रूर संघर्ष के समाधान का रास्ता निकल आए.
2012: मलाला को दुनिया भर में प्रसिद्धि

पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफज़ई की पहचान छोटी उम्र में ही लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में बोलने और तालिबान के अत्याचारों के ख़िलाफ आवाज़ उठाने के रूप में बन गई थी.
उनका जन्म और लालन-पोषण पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर हिस्से में अशांत स्वात घाटी में हुआ और 2010 में वह तब चर्चा में आईं जब न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार ने इस इलाक़े में उनके जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई. ये वो समय था जब पाकिस्तानी सेना इस क्षेत्र में तालिबान लड़ाकों से भिड़ रही थी.
अक्टूबर 2012 में स्कूल बस से घर जाते समय मलाला और दो अन्य लड़कियों को एक तालिबान बंदूकधारी ने गोली मार दी. मलाला को सिर पर एक गोली लगी थी लेकिन वो बच गईं और आख़िरकार ठीक हो गईं.
इस हमले से पूरी दुनिया हक्की-बक्की रह गई और इस घटना की व्यापक रूप से निंदा हुई. उस साल मानवाधिकार दिवस पर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के पेरिस मुख्यालय में मलाला के लिए एक विशेष सम्मान का आयोजन किया गया.
इसके ज़रिए लड़कियों के स्कूल जाने के अधिकार को सुनिश्चित करने और उनकी शिक्षा को तत्काल प्राथमिकता देने के लिए कार्रवाई पर ज़ोर दिया गया था.
उसके बाद से ही मलाला की सक्रियता और छवि और ज़्यादा व्यापक हुई है. उन्हें 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार - भारतीय समाज सुधारक कैलाश सत्यार्थी के साथ मिला. मलाला यूसुफ़ज़ई को इस पुरस्कार के साथ-साथ कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है और 2017 में लड़कियों की शिक्षा पर केंद्रित यूएन शांतिदूत भी चुना गया जिसके केंद्र में लड़कियों की शिक्षा है.
2013: माली के नागरिकों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र का मिशन

इसे संयुक्त राष्ट्र का 'सबसे ख़तरनाक मिशन' कहा जाता है जहां देश के पूर्वी हिस्से में सक्रिय हथियारबंद गुटों के कारण शांतिरक्षक बड़ी संख्या में हिंसा की चपेट में आते रहे हैं.
इस मिशन का लक्ष्य माली के नागरिकों को देश में व्याप्त अस्थिरता और घातक अंतर-जातीय झड़पों से बचाना है.
सुरक्षा परिषद ने देश में स्थिरता क़ायम करने के लिए वर्ष 2013 में माली में संयुक्त राष्ट्र मिशन (MINUSMA) स्थापित किया. इस अभियान के लिए 12 हज़ार 600 शांतिरक्षकों की तैनाती को मज़ूंरी दी गई और उन्हें "सभी आवश्यक साधनों का उपयोग करने" की भी स्वीकृति मिली.
इस मिशन की ज़िम्मेदारियों में स्थानीय लोगों, संयुक्त राष्ट्र कर्मचारियों और सांस्कृतिक कलाकृतियों की रक्षा सुनिश्चित करना और मानवीय राहत कार्यों को बदस्तूर जारी रखना शामिल था.
जनवरी 2012 में सरकारी सुरक्षा बलों और तुआरेग विद्रोहियों के बीच हुई हिंसा के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने उत्तरी माली पर क़ब्ज़ा कर लिया था जिसके बाद ये मिशन शुरू किया गया.
यूएन शांतिरक्षकों की तैनाती को मंज़ूरी देने के प्रस्ताव के पारित होने के कुछ ही समय बाद शांति अभियानों के संचालन के लिए तत्कालीन अवर-महासचिव अर्वे लैडसूस ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों से कहा कि ये मिशन माली में संवैधानिक व्यवस्था, लोकतांत्रिक शासन और राष्ट्रीय एकता क़ायम करने में मदद करेगा.
यूएन मिशन की उपस्थिति के बावजूद माली में शांतिरक्षकों के लिए स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है.
दिसंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र के एक मानवाधिकार विशेषज्ञ ने सांप्रदायिक हिंसा और सशस्त्र गुटों के हमलों की घातक घटनाओं के मद्देनज़र सुरक्षा स्थिति को "बेहद गंभीर" बताया.
माली में यूएन के विशेष उप-प्रतिनिधि म्बारंगा गसारबवे ने संयुक्त राष्ट्र समाचार के साथ एक साक्षात्कार में बताया कि ये मिशन वृहत्तर साहेल क्षेत्र में आतंकवादी समूहों पर लगाम कसने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है.
इस क्षेत्र में बुर्किना फ़ासो, चाड, मॉरितानिया और निजेर के साथ माली भी शामिल है.
यहां पढ़िए:
बीते दशक पर एक नज़र - दूसरा भाग
बीते दशक पर एक नज़र - तीसरा भाग