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चीज़ के साथ आलू फ्राई. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल एक करोड़ 70 लाख लोगों की मौत हृदय संबंधी बीमारियों से हो जाती है जिनके लिए इस तरह की खाद्य वस्तुएँ ज़िम्मेदार होती हैं.

अरबों बच्चे और व्यस्क - कम पोषण और मोटापे की चपेट में

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चीज़ के साथ आलू फ्राई. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल एक करोड़ 70 लाख लोगों की मौत हृदय संबंधी बीमारियों से हो जाती है जिनके लिए इस तरह की खाद्य वस्तुएँ ज़िम्मेदार होती हैं.

अरबों बच्चे और व्यस्क - कम पोषण और मोटापे की चपेट में

स्वास्थ्य

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में से हर तीन में से एक देश में कुपोषण की दो चरम सीमाएँ स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर रही हैं. ये हैं – कम पोषण और मोटापा. संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी – विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तेज़ी से बदलती खाद्य व्यवस्थाओं से निपटने के लिए नए तरीक़े अपनाने पर ज़ोर दिया है.  

ब्रिटिश स्वास्थ्य पत्रिका द लेंसेट में प्रकाशित ताज़ा रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया भर में लगभग दो अरब 30 करोड़ बच्चे और वयस्क मोटापे के शिकार हैं, और 15 करोड़ स ज़्यादा बच्चे नाटेपन के शिकार. ये रिपोर्ट आगाह करते हुए कहती है कि कम पोषण और मोटापे की स्थितियाँ कई पीढ़ियों तक अपना असर जारी रख सकते हैं.  

स्वस्थ ख़ुराक़ अनेक तरह की बीमारियों के ख़तरों को दूर कर सकती है जो मोटापे से जुड़ी होती हैं.

रिपोर्ट की प्रमुख लेखक और विश्व स्वास्थ्य संगठन में स्वास्थ्य और विकास के लिए पोषण विभाग के निदेशक डॉक्टर फ्रांसेस्को ब्रेन्का का कहना है, “हम पोषण संबंधी एक नई वास्तविकता का सामना कर रहे हैं. हम अब देशों को निम्म आय वाले और कम पोषण वाले या उच्च आमदनी वाले और जिनका संबंध सिर्फ़ मोटापे से है, ऐसे देशों की श्रेणी में रखकर उनकी पहचान नहीं तय कर सकते.”

“कुपोषण की सभी स्थितियों में एक सामान्य कारक है – ऐसी खाद्य व्यवस्था जो सभी लोगों को स्वस्थ, सुरक्षित, क़िफ़ायती और टिकाऊ ख़ुराक़ देने में नाकाम होती है. इस स्थिति को बदलने के लिए समूची खाद्य व्यवस्था में व्यापक बदलाव करने होंगे – खाद्य उत्पादन से लेकर खाद्य वस्तुएं बनाने तक, व्यापार से लेकर वितरण तक, मूल्य निर्धारण, बाज़ार में बिक्री, खाद्य वस्तुओँ पर जानकारी लिखना, खाद्य पदार्थों का उपभोग और फिर कूड़ा-कचरा तक. तमाम प्रासंगिक नीतियों और निवेश करने के तरीक़ों की क्रान्तिकारी तरीक़ें से समीक्षा व जाँच-पड़ताल करनी होगी.”

फल सब्ज़ियाँ ज़्यादा, माँस कम

रिपोर्ट कम पोषण व मोटापे दोनों ही स्थितियों से बचने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली ख़ुराक़ की अनुशंसा करती है. इसके लिए ये उपाय असरदार साबित हो सकते हैं – बच्चे के जन्म के पहले दो वर्ष तक जितना हो सके ज़्यादा से ज़्यादा माँ का दूध पिलाया जाए, फल व सब्ज़ियाँ, अन्न, बीज, खिलाएँ जाएँ, माँस की मात्रा कम हो और ऐसे खाद्य पदार्थों से बचा जाए जिनमें शकर, सैचुरेटेड चर्बी, ट्रांस फ़ैट और नमक की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है. 

हालाँकि अनेक देशों में खाद्य व्यवस्थाएँ अत्यधिक पकाया जाने वाला भोजन आसानी से उपलब्ध हो रहा है जिसे अल्ट्रा प्रोसेस्ट फ़ूड कहा जाता है.

इस तरह का भोजन वज़न बढ़ने का एक मुख्य कारण होता है. दूसरी तरफ़ ताज़ा फलों व सब्ज़ियों की कम उपलब्धता भी एक बड़ा कारण है.

साथ ही खाद्य पदार्थों का नियंत्रण बड़ी-बड़ी कंपनियों के नियंत्रण में आ गया है. स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचाने वाले भोजन खाने से ग़ैर-संचारी बीमारियाँ होने का ख़तरा भी बढ़ रहा है, मसलन टाइप-2 डायबिटीज़ जोकि अब वैश्विक महामारी बन चुकी है. हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक यानी आघात और हृदय से संबंधित बीमारियां.

स्वास्थ्य कार्यक्रम सटीक नहीं

रिपोर्ट कहती है कि कुपोषण का सामना करने के उपायों में अनेक मुख्य कारकों को ध्यान नहीं रखा गया है. इनमें जीवन के शुरुआती समय में पोषण का ध्यान रखना, ख़ुराक़ की गुणवत्ता का ख़याल रखना, सामाजिक व आर्थिक कारक और खाने-पीने का माहौल.  

रिपोर्ट कहती है कि सच तो ये है कि कम पोषण की स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए किए गए कुछ कार्यक्रमों में तो ग़ैर-इरादतन मोटापा और ख़ुराक़ संबंधी ग़ैर-संचारी बीमारियों के बढ़ने का ख़तरा बढ़ गया लगता है.

ये ख़तरा उन कम और मध्य आय वाले देशों में ज़्यादा नज़र आता है जहाँ खाद्य परिस्थितियाँ तेज़ी से बदल रही हैं.

कम पोषण व मोटापे की स्थितियों से निपटने में सहायक उपायों का ज़िक्र किया जाए तो बच्चे के जन्म के बाद शुरुआती समय माँ का भरपूर दूध पिलाने, सामाजिक कल्याण की योजनाएँ व कार्यक्रम चलाए जाने और नई कृषि व खाद्य व्यवस्था वाली नीतियाँ लागू करने से मदद मिल सकती है.

इन नीतियों का मुख्य लक्ष्य गुणवत्ता वाली ख़ुराक़ सुनिश्चित करना होना चाहिए. 

रिपोर्ट के लेखकों ने तमाम सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र का आहवान किया है कि वो कुपोषण की स्थिति पर पड़ रहे दोहरे बोझ से निपटने के लिए रणनीति तैयार करने के उपायों में ज़मीनी स्तर के संगठनों, किसानों और शोधकर्ताओं जैसे समाज के नए क्षेत्रों को आमंत्रित किया जाए.

डॉक्टर फ़्रांसेस्को ब्रेन्का का कहना है, “खाद्य व्यवस्थाओं में कायापलट करने वाले बदलाव नहीं किए गए तो इस आलस या कोताही की भारी आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय क़ीमत आने वाले दशकों तक व्यक्तियों और समाजों के विकास में रोड़े अटकाएगी.”