हर महीने तीस लाख लोगों को निकालना होगा भुखमरी के चक्र से

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अगर टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के दूसरे लक्ष्य – भुखमरी का अंत – को वर्ष 2030 तक हासिल करना है तो क्षेत्र में अल्पपोषण से पीड़ित तीस लाख लोगों को हर महीने भुखमरी के चक्र से बाहर निकालना होगा. संयुक्त राष्ट्र की चार एजेंसियों की एक नई साझा रिपोर्ट में यह निष्कर्ष सामने आया है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अल्पपोषण से पीड़ित 50 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं और टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के तहत ‘शून्य भुखमरी’ की स्थिति पाने के लिए लगभग एक दशक का समय बचा है.
इस चुनौती की विकरालता को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भुखमरी और कुपोषण के सभी रूपों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया है.
यह पहली बार है जब सामाजिक संरक्षण कार्यक्रमों के केंद्र में पोषण को रखने के लिए क्षेत्र में निर्णायक और समन्वित ढंग से प्रयासों पर ज़ोर दिया जा रहा है.
बच्चों में नाटेपन, कुपोषण और शारीरिक व मानसिक विकास के विषय पर रिपोर्ट में निराशाजनक आंकड़े सामने आए हैं.
रिपोर्ट कहती है, “क्षेत्र में नाटापन और लंबाई के हिसाब से वज़न कम होने के मामले अब भी बहुत ज़्यादा हैं, क्षेत्र के अधिकांश देशों में नाटेपन की दर 20 फ़ीसदी से ज़्यादा है. अनुमान है पांच साल से कम उम्र के सात करोड़ 72 लाख बच्चे 2018 में नाटेपन का शिकार थे और तीन करोड़ 25 लाख बच्चों का वज़न लंबाई के अनुरूप नहीं था.”
इसके अलावा क्षेत्र में बच्चों और वयस्कों में बढ़ता मोटापा और ज़रूरत से ज़्यादा वज़न होने के रुझान मौजूदा स्थिति को और ज़्यादा जटिल बना रहे है. इस वजह से आहार-संबंधी ग़ैर-संचारी रोगों जैसे मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियां होने का ख़तरा बढ़ जाता है.
इन समस्याओं से राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ बढ़ रहा है और उत्पादकता प्रभावित हो रही है.
सामाजिक संरक्षण असमानता घटाने और आपदाओं के प्रभावों को कम करने का एक असरदार ज़रिया हो सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ ऐसे कार्यक्रमों में अगर पोषण को भी सम्मिलित किया जाए तो भुख़मरी व कुपोषण का अंत करने में प्रगति तेज़ की जा सकती है.
इसके लिए सामाजिक संरक्षण कार्यक्रमों का ख़ाका तैयार करने, उन्हें लागू करने, उनकी निगरानी व समीक्षा के दौरान पोषण के सिद्धांतों का ख़याल रखा जाना चाहिए.
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि खाद्य सुरक्षा व पोषण के मामले में एशिया-प्रशांत क्षेत्र ने प्रगति दर्ज की है.
यूएन एजेंसियों के क्षेत्रीय प्रमुखों ने कहा है कि निरंतर आर्थिक विकास से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में बेहतरी लाने में मदद मिलेगी. लेकिन बढ़ती असमानता इस प्रगति को ख़तरे में डालती है और जलवायु परिवर्तन व हिंसक संघर्ष की घटनाएं इसे और ज़्यादा गंभीर बना सकती हैं.